________________
आगम (३७)
प्रत
सूत्रांक
[ ४६ ]
दीप
अनुक्रम [१०३]
“दशाश्रुतस्कन्ध” – छेदसूत्र- ४
-
दशा [१०]
मूलं [v]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... .....आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं
--------
(मूलं)
-
~152~
महचापनयी पचाइपतीतलतादिषषणमुगमहल वाइपरवेर्ण उसलाई माणुस्तगाई भोग भोगाई भुजमाणे विहर, तरस में एगमानि आममामरस जायाच अता व अतिमाह देवामुनिया कि करेमो ? कि आइरेमी कि उपमेमो? कि आधिामो? किं मे पिच्छ किं ते आसगस्त सदति १ नं पासिता निम्मांचे निदा करेति जइ इमस्त तवनियमन साहू एवं सममाउलो निग्ये निदान किया तस्स टायरस अगालोइयपडिते कालमा कार्य किया अरे देवलो देवताए उपचारो भवति महिदिए जान चिरदिए से सत्य देवे भवति महिदिए जाय चिरडिए, तो देवलगाओ आठवणं अनंतरं पर्यचसा जे इमे उम्मा महामाया भोगपुत्ता महामाया सिगं अन्यतरंसि कुलसि पुसताए पचायाति से गं तत्य दारा भवति कुमालपाणिपाए जाव सुरू, तो से शरए उम्मुला - परिणमते जोगमनुष्यते सयमेव इयं दायं पविति तस्स अजायमाणस्स वा निजायमाणस्स वा पुरओ मई जान दासीदास कि ते आसगस्स सदति है, व पारस पुरिसजायरस तहारूने सम वा माइने वा उनका वलितं धम्मं आइक्लेजा है. हंता आइक्लेजा से पहिला मो इम समझे, अभरिए से त धम्मस्स सणयाए, से य भवति महिच्छे महारं महापरिम्म अम्मिए जाय आगमेसाणं भवोहिए यानि भवति एवं खलु समाउसो तस्स निदान इमेवारूपा विषाणो संचाएति केवलितं चमं पडित ४६ एवं खलु समाउसो भए पम्मे पं० ० इनमेव निम्ये पावणे सजाय सम्रदु करेति जस्त धम्मत निधी सिम्लाए उपड़िया विहरमानी पूरा दिगिछाए उदिष्यकामजाया पिरेशा, साय परकमेला सा प परकममानी पालेजा से जाइमा इथिया मति एमा एगजाया एवामरणािणा तेलपेलाइ संगोरिया बेललाइन परिहिया स्वणकरंगसमाना तीसे में अतिजायमानीए वा निजायमानीए का पुरजो मई दासीदास जाब किं ते सगस सति पासिता निधी निदाणं करेति जति इमस्त तवनियमनचेरा जमानी विहामि सेतं साहुणी एवं खलु समजाउलो निम्यांची निदान किया तस्ठागरस अणालोय अपदिकता कालमा कालं किया अन्तरे देवलोएस देवताए उपचारो भवति मदिए जाप सातत्य देवे भवति जायजमा विद्वन्द, सा ताओ देवलोवाज आउक्साए अनंता जे इमे भवति उता महामाउगा भोगपुत्ता महामाया एतेसि में अतरंसि कुलंसि दारित्ताए पचायाति सातत्य दारिया भवति सुकुमाल जाय सुरुवा, तते में तं दारियं अस्मापिय उम्कामा विययपरिणयमित्तं जोडणरामगुपतं परुिवेणं सुकेणं परुिवस्स भत्तारस्त मारियताए दति खाणं तस्स मारिया मदतिएगा एगजाया इड़ा जाय रयणकरंडनसमाणी, सीसे जाय अतिजामाणीए वा निजायमाणी या पुरजो मई दासीदास जाय किं ते सदति १ ती तप्यगाराए हथियार व्हारूने समये वा माहने या उमजोका केवलिपण धम्मं आलेला ता आलेला सामंते पडिसुजा, जो इमडे सम अनविषाणं सा तस्स धम्मस्स सणया साय भवति महेच्छा महारंभा महापरिमहा जाय दाहियामिए नेइए नागमिस्साए लोहियन्ताए मति एवं खलु समजाउलो !
निदान इमेयाचे पाचफलविया जं जो संचाएति केवलियन्तं धम्मं पडिणित 1४७ एवं खलु समणाउसो भए पम्मे पण इणमेव निचे पाय तह चैव जस्स धम्म निचे सिक्लाए उबडिए पिहरमाणे पुरादिविछाए जान से व परकममागे पासेजाइमा इत्यिका भवति एगा एगजाया जा किं ते सदति पासिता निर्णये निवाणं करेति दुक्खं मला जे इमे उता महामाया भोगता महामाया एवेसिं गं अण्णतरे उच्चायएस महासमरसंयामेसु उच्चावचाई सत्याई उरसि व परिसंवेदेति तं पुमत्तगार इत्यीत साहु जति इमस्स तवनियमचम चेरवासास फलविनिविसेसे अस्थि चयमवि आगमेस्साणं जाव इवाई उसलाई इपी भोगाई भुजिस्सामो साहू एवं समाउस निर्माचे निदान किया तस्स टायरस अणालोपटिकते जाव अपविजिता कालमासे काल किया अन्यतरेतु जान से तत्य देवे भवति महि दिए जाय विहरति से ताओ देवलगाओ जाउलए जाव तरं चइता अन्तरंसि कुलसि दारिया पचायाति जायते से दारियं जाव मारियता इसति सा नंतरस मारिया भवति एगा एगजाया जान तहे सर्व भाषिय, तीसे अतिजायमानी वा जाय कि वे आसमस्त सदति १ सीसे तपगाराए इत्यिकार तहाचे समणे या महा धम्मं आइक्ला ?, ता आइजा जाय कि पडिसुजा १, यो तिष्ण सम, जमविया णं सा वस्स पम्मस्स पढिसपणयाए. साय भवति महिच्छा जायगामिएरइए. आगमिस्सार्ण दुलभमोहिए यानि भवति एवं स समणाउसो तस्स निदाणरस इमेयारूचे पापविद्या भवति पो संचाति केलिपण धम्मं पति ४८ एवं समाउसो ! मए पम्मे पक्ष इममेव निजाम अंत करेति जस्त में धम्मस्त निधी सिक्खाए उपद्विया विहमानी पुरादिनिछाए जान उदिमकामाया पिरेजा, साय ९८९
दरसा-१०
मुति दीपरसागर