SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (३७) प्रत सूत्रांक [४१] दीप अनुक्रम [94] “दशाश्रुतस्कन्ध" छेदसूत्र-४ (मूलं ) दशा [१०] मूलं [४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं - - . - ~ 151 ~ ---- ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ जाणकरं जुतामेव उपद्वावेहता मम एयमाणतियं पचविणाहि तते नं से जानसालिए सेजिएवं रण्णा एवं ते समाणे जाहिये जे जाणसाला तेणेव उपागच्छता जाणा अनुपसि सा जानं पशुवेक्स सा पचोरुमति सा जाण संपमाइ ता जाणवं पीनेति सा जान संघ ला दूसंपवणेति सा जाणाई समोह सा जाणार मंडमडिया करे ता जेणेच बाणसाला तेच उपागच्छद्दता बाणसाल अणुपविशति ता बाणाई पशुविनखति ना वाहणाई संपमा सा बाणाई अप्फाल ता वाहणाई नीति ता से पचतिता वाहणाई अलंकारेति ता वाहणाई परामरणमंडियाई करेति ता जान जोएति सा हिमोगाति सा ओमलाई पयोगधरए य सर्व आरोह सा जेणेव गिए राया व उपागच्छ सा करयल जाप एवं वदाली जुते से सामी धम्मिए जाणपवरे, आइडा भदंत गुगाही ४१ व सेलिए गया मासारे जानवालियरस अंतिए एयम सोचा निसम्म हलु जा पर अनुपविसह जाय कप्पखए ये विसिएनजिओ डिनिक्समति त्ता जेणेव बेहना देवी मेच उपागच्छ देवी एवं दासी एवं लघु देवापिए सम मग महावीरे आदिगरे वित्यगरे जावा चरमाणे जाव संजमे तवसा अप्पा भावेमा विहरनि तं महा देवापिए तारूपाणं अरहंताणं जाय तं गच्छामो देवापिए समणं भगवं महावीरं वदामो नमामो सकारेमो संमाणमो का मंगलं देवयं चेयं षाम एवं व्ह भवेय परभये य हियाए सुहाए समाए निस्सेसार आनुगामियत्ताए भविस्सति । ४२ । तते सा फिरणा देवी सेशियल्स रम्णो अंतिए एयम सोचा निसम्म जान पडि सुति सा जेणेव मजमपरे तेणेव उपागच्छता व्हाया कयमलिकम्मा करकोउयमंगलपायचा किं ते १, करपाययत्तने उरमणिमेह-बहाररहय उचिचिकटगस्लदृएगालिकंठमुरजातिसरयतचरलयहेममुत्तवकुंजवियाणणारपणमूसियंगी चीर्णगुयवत्यपवरपरिहिया गुलकुमालकंतरमतिर सोयसुरभिकुसुमसुंदरस्यपलं सोहतकंतरिक संतचित्तमाला वरदणचचिया पराभरणभूसियगी कालागुरुविया सिरीसमाणसा बहूहि जाहि चिलानिया जान महत्तरगादिपरिक्खिता जेणेव बाहिरिया उपद्वाणसाला जेसेजिए राया येणे उपागच्छ । ४३ तए से सेजिए राया चिणाए देवीए सद्धिं परिमयं जानपरं दुरूति सफोटिमदामेण उणं परिलमागेणं उपचाइयगमेणं जाव पास एवं जान महत्तरनादिपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे लेणेच उपागच्छति ता समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति सा सेणियं रायपुरको कार्ड ठितिया पातितणं समने भगवं महावीरे सेणियस्स रण्णो भासारम्स चिलाए व देवीए तीसे महतिमहालियाए परिसाए जइपरिसाए इसि मुनि देव० मणुस्स० [देवी० असा जाव पम्म कहिजो परिसा पढिगया, सेणिओ राया पढिगज ४४ तस्येगतियाणं निग्र्गवाण व निम्न य सेवियं राचिणं देवीं पासिता इमेवारुचे अ थिए जान कप्पे समुपजित्था अहो में सेलिए राया महटिए जान महासोक्ले जे व्हाए कयपलिकम्मे कयको उपाय साकारला देवीए सदि उसलाई भोगभोगाई भुजमाणे विहति न मे दिट्टे देवे देवलोगंमि, सक्ख अयं देवे, जइ इमस्स तवनियमवासरस फलवित्तिविलेले जत्थि तथा वयमवि आगमेस्साए इमाई उरालाई एवारुचाई माथुरगाई भोग भोगाई जमाणा विरामो से साहू, अहो चिया देवी महिदिदया जाय महालोक्खा जाणं व्हाया कलिकमा जान सालंकारविभूलिया सेचिएणं रचा सद्धि उरालाई माणुस्साई भोग भोगाई मुंजाणी विरह, न मे विडाओ देवीओ देवलोए, सक्ख इयं देवी, जइ इमस्स सुचरियरस तवनियमभचेरवास्फतिकिससे अस्थि वयमवि जागमिस्साणं इमाई प्यारुवाई उरालाई जान विरामी से साहूणी । ४५॥ अलोति सम मग महावीरे पहने निधाय निम् पीओ य आमंतिता एवं नवासी मियं रामं हि देवीच पाहित्ता इमे एवारूने अज्झथिए जान समुप्पा अहो लिए या महिदिए जब से हो विद्यादेवी मदिया सुंदरा जाव से तं साणी से पूर्ण जो जत्थे समड़े ? दंता अस्थि एवं खलु समगाउलो मम्मे मे निचे पाय सबै अणुसरे पहिने केलिए समुदे आउट सहमत सिद्धियो मुत्तिमन्ये निजाममोनियाणमध्ये अतिविधि सम्यदुक्खणाणमय इत्यं लिया जीवा सिति युज्यांत ति परिनिव्याइति सव्वदुक्वाणयं करेति जस्स नं धम्मस्स निचे सिखाए उबडिए बिरमाणे पुरा दिविछाए पुरा पिचासा पुरावालाहि पुढेहिं विवरूयेहिं परिसहोषसग्गेि उदयकामा पहिरेगा से य परकमेला सेय परकममाणे पासेला जे इमे उम्गपुता महामाया भोगपुता महामाया तेसि णं अन्यतरस्स अनिजायमाणस्स वा निजायमाणस्स वा पुरओ महं दासीदास किंकरकम्मकरपुरिसपदाय परिक्लितं उत्तभिंगार महाय निमाच्छति तदुतरं न पुरजो महाजासा आसरा उसको तेसि नागा नागवरा पिइओ रथा रथवरा स्थगिती से उदरियसेयले जम्भुग्गयभिंगारे महियालष्टि पविसेय चामत्यालवीयणीए अभिक्खणं २ अतिजातिय सप्पमा, सावरंच महाए कमल जायसवालंकारविभूलिए महतिमहालियाए कृडागारसाला महतिमहालयंस सिंहासनंसि जाव सारातिएण जोड़ना झियायमाणं इत्थमुपरिडे (२४७) ९८८च्छेद दस-२० मुति दीपरत्नसागर
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy