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________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदस अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [२२] +गाथा:||६४|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत सुत्रांक [२] A गाथा ||६४|| अर्णवे आऊजीये खयं जति ॥४॥ संधुकणजलगुजालमेण उनोचकरणमादीहिं। बीयफमणउम्भावणेहि सिहिजीवसंघाय ॥५॥ जाइ खर्य अमेऽपिय जीवनिकायमइगए जीये। जलणी सुदुइजोविर्संभक्खाइ दसदिसाणं च ॥६॥वीयणगतालियंटयचामरतक्रसेवहत्यतालेहि। धावणडेवणलंघमऊसासाईहिं पाऊणं ॥७॥ अंकुरकुहरकिसलयपालपुष्कफलकदलाई। हत्यफरिसेण बहले जतिसर्य पणफई जीवे ॥८॥गमणागमणनिसीयणसुयणुद्धाणअणुषउत्तयपमत्तो । वियतिति विविपापदियाण गोयम ! सर्व नियमा॥९॥पाणाइ. पायविर्स सिक्कलया गिहिऊण ता धीमं । मरणावयमि पत्ते मरेन चिन खंडेजा ॥७॥ अलिययणस्स चिरई सावर्ज सबमविन भासिजा। परदब्रहरणविरले करेन दिन्नेचि । मा लोभं ॥१॥ धरणं दुद्धरमवयस्स काउं परिग्गहणायं । राईभोयणबिरई पंचिंदियनिग्रहं विहिणा ॥२॥ अन्ने य कोहमाणा रागदोसे य (आ) लोयणं दाउँ। ममकारअहंकारे पयहियो पयनेणं ॥३॥जह नवसंजमसज्झायमाणमाईसुसुदभावहिं। उनमियाई गोयम! विजुलयाचंचले जीवे ॥४॥ किंबहुणा' गोषमा! एस्थ, दाऊणं आलोयणं । पुढविकार्य निराहेजा, काय गंतुं स सुज्झिही? ॥५॥ किंबहुणा गोयमा ! एत्यं, दारुन आलोयण बाहिरपाणं ताहि जम्मे, जे पिए कत्थ मुज्निही ? ॥६॥ कि उण्हवा जालाई जाओ.फसिओ 13 वा कस्थ सुझिही? 10 कि० बाउकार्य उदीरेजा, कत्थ गंतृण सुजिाही? ॥८॥कि०। जोहरियतणं पुष्कं बा, फरिसे कत्थ समझिही? ॥९॥फि० अकमई बीयकायं जो, कत्थ सज्ािही ॥८॥ किंचियालेदी (बितिचड) पचिदिय परियाये, जो कस्य स सुज्झिहि ॥१॥ कि०। छकाए जो न रक्खेजा, सहमे कत्यस सुज्झिही? ॥२॥किंबहुणा गोयमा ! एत्थं, दाऊण आलोयर्ण । तसचापर जो न रक्से, कत्थ गंतुं स सुजिमही?॥३॥ आलोइयनिंदियगरहिजोपि कयपायच्छितणीसत्रो। उसमठाणमि ठिओ पुढचारंभ परिहरिजा॥४॥ आलोइ। उत्तमठाणमि ठिओ, जोईए मा फुसावेग्जा ॥५॥ आठोइ० संविग्गो। उत्तमठामि ठिओ,मा वियावेज अत्तार्ण ॥६॥ आलोइ० संविग्गो। छिपि तणं हरियं, असई मणगं मा फरिसे ॥७॥ आलोइया संचिगी। उत्तमठामि ठिओ, जावजीचंपि एतेसि ॥ दियतेंदियाउरोपंचिदियाण जीवाणं । संघहणपरिवाचणकित्सवणोदयण मा कासी॥५॥ आलोइ. सैविम्यो । उत्तमठाणमि ठिो, सावज मा भणिजासु ॥१०॥ जालोइय० संविग्गो। लोयत्येणपि भू महिया मिहिउक्तिविउ दिना ॥१॥ आलोइनीसाहो । जे इस्थी संलविना, गोयम ! कस्य स सुज्विाही ? ॥२॥ आलोइया संचिम्गो। चोदसयम्मुवगरणे, उद मा परिगह जा ॥३॥ तेसिपि निम्ममतो अमुभिधी अगदिदो र दद हरिया। अह कुना उममता सुदी गोयमा! नस्थि ॥४॥ किंबहुणा' गोयमा! एवं दाऊणं आलोयण रयणीए आलिए पाणं, करच गंतुं स सुमिही?॥५॥ आलोइयनिदियगरहिओवि कयपायच्छित्तनीसतो। छाइकमे ण स्ले जो, कत्थ सुदिलमेज सो ॥६॥ अपसत्ये यजे भावे, परिणाम य दारुणे । पाणाइवायरस बेरमणे, एस पढमे अइकमे ॥७॥ तिवरागा यजा भासा, निदरसरफरसकासा । मुसावायरस बेरमणे, एस बीए अइकमे॥८॥ उपमाहं अजाइत्ता, अचियत्तमि उपगहे । अदनादाणस्स बेरमणे, एस तहए अहकमे ॥५॥ सदा रूया रसा गंधा, फासाणं परियारणे। मेहुणस्स बेरमणे, एस चढत्ये अइकमे॥१०७॥ इच्छा मुच्छा य गेही य, रखा लोभे य दारुणे। परिमाहस्स बेरमणे, पंचम गेसाइकमे ॥१॥ अहमताहार होइत्ता. सूरक्षितमि संकिरे। राईभोषणम्स वेरमणे, एस छहे अइनमेशा आलोइयनिदियगरहिओवि करपायश्चित्तणीसहो। जयणं अयाणमाणो, मयसंसार भमें जहा सुसदो॥१०॥ भया को उण सो सुखदो? कयरा या सा जयणा' जमजाणमाणसणं तस्स आलोइयनिदियगरहिलो(वरसा)वि करपायपिछलस्साचि संसारं णो विणिहियंति?, गोयमा! जयणा गाम अट्ठारसद सीलंगसहस्साणं सत्तरसविहस्सणं संजमस्स चोदसण्इं भूयगामार्ण नेरसम्म किरियाठाणार्ण सपज्झम्भनरस्स गं दुवालसविहस्स वोऽणुद्वाणस्स दुवालसन्हं भिक्षुपडिमाणं इसपिहस्सा णं समणधम्मस्स णपणहं पेष भगुत्तीणं अट्ठण्हं तु पपयणमाईणं सन्नाह चेव पाणपिंटेसणाणं छहं तु जीवनिकायाण पंचवहन महायाण सिहं तु घेय गुत्तीर्ण जायणं तिण्हमेच सम्मासणनाणचरितार्ण भिक्खू कतारभिक्लायंकाईमुणं सुमहासमपन्नेस अंतोमहलायसेसकंठगयपाणेपिणे मणसापि उसंदणं निराहणं ण करेजा ण कारवेजा ण समणुजाणेजा जाचणं नारभेजा न समारंभेजा जाकजीवाएत्ति, सेणं जयणाए भत्ते से गं जयणाय धुवे से जयणाएपदक्खे से जयणाए पियाणएत्ति, गोयमा ! सुसढस्स उण महती संकहा परमपिम्हयजणणी या२२ चूलिया पढमा एगंतनिजरा, चू-१०७॥ से भयर्थ! केणं अडेण एवं बुबह, तेण कालेण 1 तेणे समएणं सुसढनामधेजे अणगारेह भूय, तेणं च एगेगसणं पक्सस्संतो पभूयवाणियाओ आलोयणाओपिदिन्नाजी सुमहंताई चअबंतचोरसुबुकराई पायश्चित्ताईसमणुचिन्नाई तहावि तेणं वरएणं विसोहिपयं न समुबलदंति, एतेणं अद्वेणं एवं बुधइ, से भयर्व केरिसा उणं तस्स सुसहस्स बत्तत्रया ?, गोचमा! अस्थि इह चेव भारहे वासे अबसी णाम जणवओ, तत्व | य संयुके नाम खेडगे, तम्मि य जम्मदरिद निम्मेरे निकिने किविणे णिराणुकंपे अाकरे निकलुणे नित्तिसे रोहे चंडरोपयंडवंडे पाये अभिग्गहियामिच्छादिट्ठी अणुचरिखनामधेजे ११६६ महानिशीपच्छेदमत्रं, aint-s मुनि दीपरतसागर सलामणे, एल दीप अनुक्रम [१४४३] 9 अत्र सप्तमं अध्ययन/(चूलिका-१) समाप्तं अत्र अष्टम अध्ययन/(चलिका-२)- "सुषढ-अनगार कथा" आरब्धः ~314~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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