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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदस -------अध्ययन [६], ------------- उद्देशक [-1,---------- मूलं [१...] +गाथा:||६४||------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
प्रत
गाथा
||६४||
देवत्ता, चहऊर्ण गोयमा!ऽऽसडो। रासहताएं निरिच्छेसं, नरिंदघरमागओ॥४॥ निचं तत्य वढयाणे, संघट्टपदोसा नहिं । बसणे वाही समुप्पण्णा, किमी एल्थ समुच्छिए॥५॥ तओ किमिएहिं खजतो, वसणदेसंमि गोयमा!। मुकाहारो खि लेडे, वियपत्तो ताव साहुणो ॥६॥ अरेण पोलते, बठूर्ण जाई सरेनु य । निदिई गरहि आया, अणसण पडिज्जिया ॥ ७॥ कागसाणेहि खर्जतो, सुदभावेणं गोयमा!। अरहताणंति सरमाणो, समं उग्मिय सं वर्ण ॥८॥ कालं काऊण देपिंदमहापोससमाणिओ। जाओ त विसं इडि. समणभोर तो चुजो ॥९॥ उपवनो सत्ताए, जा(न)सा नियटी ण पटिया । तोचि मरिकणं बहू, अंतर्पते कुलेऽटिओ ॥ ७० ॥ कालकमेणं महराए, सिपादस्स रियायो । राजी होऊर्ण पडिबुद्धी, सामों का निगुडो ॥१॥ एवं ने गोयमा ! सिई, नियडीपुंजं तु आसई । जे य सानुमुहमणिए, पयर्ण मणला चिर्डपए ॥२॥ कोइलेणं सियार्ण, उणं दिसएहि पीडिए। सच्छंदपायच्छिण, ममिओ भवपरंपरे ॥३॥ एवं नाऊणमिकपि, सितिगमालावर्ग। जाणमालो हु उम्मग्गं, कुजा जे सेविया ण हि ॥४॥ जो पुण सायन्नार्ण, अईस पा पवर्णपि वा। णचा पएज मग्गेणं, तस्स अहो ण बाई, एवं नाऊण मणसावि, उम्मगर्ग नो पञ्चत्तए ॥५॥ति बेमि, 'भय! अकिचं काऊण, पश्चिम जो करेजवा तस्स । लट्टयर पुरओ, जं अकिञ्च न कुबई ? ॥६॥ ताऽजुलं गोयमा ! मिणमो, ययर्ण मणसावि धारिउँ । जहा काउमकत्तव्यं, पच्छितेणं तु सुमिह ॥ ७॥ जो एवं व्यर्ण सोच्चा, सहहे। अणुपरेइ पा। भहसीलार्ण सचेसि, सत्यवाहोस गोयमा ! ॥८॥ एसो कार्यपि पश्छित्त, पाणसंदेहकारणं। आणावराह दीवसिहं, पविस सलमो जहा ॥९॥ भया ! जो पालं पिरिय. पुरिसवारपरकम । णिगृहंतो न घरह, पण्डिनं तस्स किं भवे ॥८॥ तस्सेय होइ पच्छितं, असदभावस्स गोयमा! । जोन धाम बियाणेत्ता, वेरी सन्तिमपेक्सिया ॥१॥जो पलं 17 पीरिय सन, पुरिसयार निगृहए। सो सपचिछत्तपछित्तो, सदसीलो नराहमो ॥२॥नीयागोयं दुई धोरनरए सुशोसियहिति देतो तिरिजोणीए. हिंडेला चउगाएं सो ॥३॥से & भया! पावयं कर्म, पर वाय समुद्धरे । अणणुभूएण गो मोक्वं, पायच्छितेण किं तहिं ? ॥४॥ मोयमा! बासकोटीहि अणेगाहिं संचियाले पमित्सरवीपई, पार्य तहिण व पिरतीयह ॥५॥ पणपोरंपयारतमतिमिस्सा, जह सूरस्स गोयमा ! | पायच्छित्तरविम्सेयं, पावं कम्मं पणस्सए ॥६॥णवरं जहत पवितं. जह भणिय तह समुबरे। (बलपीरिय) असढभाषी अणिगृहियपुरिसपारपरकमे ॥ ॥ अन्नं च काउ पच्छिन्नं, सब णमणुबरे जो। दरुवियसाडो यपुष्पेसो. बीह चाउम्गाइयं अटे ॥८॥ भययं ! कस्सालोएना?. पच्छिल को व देज बा| कस्स व पण्ठितं देजा, आलोयावेज वा कह?॥९॥ गोयमालोयणं ताव, केवलीण बहसुवि। जोयणसएहिं गंतूण, सुद्धमावेहि दिनए ॥९॥ पउनाणीगं नयाभावे. एवं ओहि मईसए । जस विमलयरे नस्स, नास्तम्मेण दिजाई ॥ १ ॥ उस्सगं पन्नर्वितस्स, उस्सम्गे पड्डियरस य । उस्सगणो वेव, सवभावसरेहि ॥२॥ उपसंतस्स तस्सी संजयस तपस्सिणी समितीगृत्तिपहाणस्स, दढचारिनस्सासम्माविणो ॥३॥ आलोएजा पटिन्जा , दिजा दाविज पा परं। अहन्निर्स तदुहि. पायधिस अणधरे ॥ ४॥ से . भया ! किनिय तस्स, पश्छिल हबद निच्छियं?। पायच्छिनस्स ठाणाई. केवइयाई ? कहे हि मे ॥५॥ गोयमा ! जे सुसीलाणं, समणाणं दसव्ह उखलियागयपति , संजई नव-21 गुण ॥६॥ एका पावड पच्छित्तं, जासुसीला श्या । अहसील विराहेजा, ता तं हवइ सयगुर्ग | आतीए पंचेंदिया जीवा, जोणीमो निवासिणो। सामर्श नव लक्साई, सोम पासति केवाही ॥८॥ केवलनाणस ते गम्मा, पोऽकेवली ताई पासती। मोहिनाणी बियाणेए, णो पासे मणपजयी ॥९॥ता पुरिस संचईती, कोण्हगंमितिले जहा। सोस सुसरावे. तुं मत्ता महानि(ति)या॥१०॥चकम्मतीव गाढाई.काइयं बोसिरतिया। बाबाइजा यदो तिनि, सेसाई परियाबई ॥१॥ पायप्लिम्स ठाणाई, संखाईयाई गोयमा ! अगालोइतोह एपि, समवसरणं मरे ॥२॥ सयसहस्सनारीणं, पोई फालिन निग्विणो । सत्तमासिए गम्भे, परफटते णिगिताई ॥३॥ ज तरस जत्तिय पाचतित्ति । नवं गुणं । एकसि स्थीपसगेणं, साह बंधन मेहुणे ॥४॥ साहुणीए सहस्सगुण, मेहुणेकसि सेबिए । कोडीगुणं तु विजेणं, तहए मोही पणस्सई ॥ ५॥ जो साह इस्वियं ददळ, निसपही रामेहि बोहिलामा | परिजनी कर पराओस होही? ॥६॥ अथोहिलाभियं कम्म, संजो अह संजई। मेहुणे सेविए आऊोउकाए पपंधई ॥ ७॥ जम्हा तीसवि एएस. अबरजती र गोचमा। उम्मम्ममेव सहारे, मार्ग निहबद सबहा ॥ ८॥ भगवं ! ता एएण नाएणं, जे गारन्थी माउकाडे । रतिदिया ण छड्डति, इत्थीयं तस्स का गई ? ॥९॥ ते सरीरं सहत्येणं, विदिऊणं । तिलनिलं । अग्नीए जाविहोमंति, तोऽपि सुदी ण दीसई ॥११०॥ तारिसोचि णिनिति सो, परवारस जई करे। सावगधम्मच पालेख, गई पावेह ममिमं ॥१॥ भय सवारसंतोसे. LM
जा भो मजामं गई। ता सरीरेऽयि होमतो, कीस सुदि ण पावई ? ॥२॥ सदारं परदारं वा, इत्थी पुरिसो य गोयमा! । रमतो बंधए पार्य, णो णं भवद अबंधगी ॥३॥ साराधर्म जहुनं जो, पाले परदारगं चए।जाचजीच तिनिहेर्ग, तमणुभावेण सा गई ॥ ४॥ मनरं नियमविहूणस्स, परदारगमण(ग)स्स या अणियत्तस्स भवे मंच, णिविनीए महाफलं ॥५॥ २१५०/महानिशीपच्छेदसूत्रं, मन्न -5
मुनि दीपरनसागर
दीप
अनुक्रम [१०००]
... अत्र सूत्र-क्रमांक ९०९ एव वर्तते, परन्तु मया स्खलनत्वात् १००० लिखितं | ...(मैने मेरे मूल संपादनमे भूलसे ९०९ के स्थानमे १००० लिख दिया था, आगे भी सूत्र-क्रमांक १००१, १००२, १००३...इसी तरह छपे थे, इसिलिए सभी प्रकाशनोमे यहीं गलति जारी रक्खी है।)
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