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________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------------- भाष्यं [२२००] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य 48 प्रत सूत्रांक [२२०० क दीप अनुक्रम [२२००] ॥९॥छमिहकायादीया बायालंता उ पंचवी एते। मेलीणा उ मवंती एकासीयं भवे मेवा ॥२२००॥ नवरं छबिहकप्पे बीसतिकप्पे च णामठवणाओ। मोतुं सेखा सरे एकासीई तु मेळीणा ॥१॥ एए सो सम्मं निविसमाणस निषिसमकप्पो। एतेसि पुण कतरो महिडिओहोद सझेमि? ॥२॥ सवेऽविहुचरणचिसोहिकारगा तहवि अस्थि विसेसो। सरहणा. चरणाए महतं पुण पालणाए उ॥३॥ सहहणाकम्पो या आचरणा व दो पहाणतरा। अहवा सहण बिय सदहिउं जो ण आयरति ॥४॥ मइयमणुपालणत्ति य सहहिउर्णपि ण ताई कोई। अशुपालेउ अजा तम्हा खलु सोण पहाये ॥५॥ णिविसणकम्पों एसो एलो वोच्छामि जंताराकायं। संखेवपिंटियर्थ गुरुपएसं जहाकमसो ॥६॥ पंचट्ठाणमसंवा पारसगं र तिम्णिवि तियाण अत्यनाणकरणद्वयाएँ सो अंतराकम्पो ।.१५२॥७॥सामादिसंजतादी पंचह चरणं तु तेसि एकेका संजमठाणमसंवा एकेके तत्व ठाणम्मिा होति अर्णता चारितपजचा ताणऽसखगुणियाणिा एक संजमर्कदम कंडगसखा यछदाणा ॥९॥छट्ठाणाऽसखेगा संजमसेदी उहोर मोबासामादिदसंजमठाणा असंखेजा ॥२२१०॥ परिहरिसंजमठाणा ताहे लगति तेऽविउ असंखा। गंतृण हॉति छिचा ताहे तत्तो पुणो परजो॥१॥ बड्दंति जा असंला सामाइयाछेदसंजमडाणा सामादिछेवठाणा ताहे छिना मर्वती उ॥२॥तो सहमरागठाणा तेऽपि असंखेज गंतु मोडिना । तस्स अपश्चिमठाणं अर्गतगुणवहिदयं नियमा ॥३॥ एक परमचिमुच होड अहक्खायसंजमड्डाण। पंचमसखति गतं | बारसगं बार पडिमानो॥४॥ सुबपरिहारचउरो अणुपरिहारीवि णवम कम्पठितो। एते विधि तिया खलु एतेसि एकमेकस्स ॥५॥ अंतरसंजमठाणा होति असंखा उतेसि समेसि। होड इचिहाउसोही करणे अमात्यो पेष ॥६॥ता दोषियकायमा नाणडाए सुतोषउत्तेण । एसो अंतरकप्पो णयकप्पमियाणि बोच्छामि ॥७॥ससिपि गपाणं आदेसणर्यतरपि सहाणे। एस नयंतरकप्पो पुषगतविसालमादीसु॥..१५३॥८॥ सोविजेगमादी आदिस्सति जो गयो उ साऽऽवेसो। णयतो अनओपिनो गयंतरं होड नाय ॥९॥सहाणे सट्टाणे सके बलिया इति सविसते। एसो गयकप्पो ऊ पुषगवम्मी समक्खाजो॥२२२०॥ उप्परपुल विसाळले आदि काउसव्वपुष्वेसु । मणिमओ य णयविभागो एवं चोदेति अह| सीसो॥१॥कहा कालियसुतेन नपापि समोयरति ? कह वाणयविगल होति साइण मोक्सस्स उ१ मणति सुणाहि॥२॥ जयचजिमोनिअल दुरखक्सयकारओ जहजणस्सा चरणकरणाणुजोगो तेण उ पढम कर्य दारं ॥३॥ आधारपकप्पपरी कम्पनवहारपारओ अनो!। जयसुत्तमिजोऽपि गणपरिषट्टी अणुण्णाओ ।।..१५४॥४॥ पच्छिनक रण अणुपालणा य मणिया उपचपहारे। एएण अत्यचारी गणधारी जो चरणधारी ॥५॥ अजोती आमंतण निदेसे वा यस्स मुत्ताई। जाई तु दिहिचाते पण्डित दिजए वह उ॥६॥ तेहि पिणावि जागा आयारपकपधारजो जहा। तन्हा उ अणुचाओ गणपरिबट्टी उ सो नियमा ॥७॥करणाणुपालगाणं तु पनवकसिणं समासओ मार्ग। करणाणूषालणतं पजवकसिणं भवे तिचिह..१५५दा दुतिपणयककमयंतरेसुसोलसहवंति ठाणाई।करणहाण पसत्या करणड्डाणा उजपसस्था...१५६॥९॥एवाई ताणाई दोहिविगाहाहि जाईमणियाई। तेसि पकवणमिगमो समासो होइबोदरं ॥२२३०॥करणं तु किया होई पदिलेगमादि सामयारी उापालिजइनानेणतं च दुविहं मुणेय ॥१॥ पजवकसिमसमासो पजवकसिणं तु चोरस उ पुरा। सामाइयं पकायो होइसमासो मुणेयरो॥२॥ गजवकसिणं तिविह खुत्ते अत्येतदुभए वा एमेव समासोऽचि हुतेहिउ पालिजए चरण ॥३॥ तस्स णएहिं मग्गण ते उ समासेण होति दुविधा उ। दधद्विपजवहित गया तु अविसे सितविसिद्धा ॥४॥ षण्णादिसमुदियं तु दाही दयमिए णियमा। चेप पजवणो दवाइवि. सेसियं इच्छे ॥५॥ अहवारि तिमिविया दबद्वित पनवहित गुणही। पजावविसेसश्चिय सुहमसरामा गुणा होति ॥६॥ एगगुणकालगादिसु परिसंलगुणद्विो उपायो। बाजो गुणाऽणपणे गुणा विसेसत्तिएगहा॥७॥आदिडा तिषिण णया एको भितिजो यहोइ उजुसुओ। सहादि तिणि वेको तिषिण गया होति एवं वा ॥८॥अहवापि निगमसंगहववहा. कल्सएँ होति परे । सरणय तिथि एको पंच गया होनि एवं तु॥९॥ अहवापि होज छ जिगमो संगाहिजो असंगाही । संगाहितों संग त पवहार पविद्धसंगाही ॥२२४०॥ सम्हा उसंगहलो पहारो पेष होइ उजुसुओ। सही प सममिरुदो एवंभूजो य उकणचा ॥१॥ एते पुण सोनी एग तिग पण उक मेलिया संता। सोलस जयंतराई समासओ होति एयाई ॥२॥ जा कुणह दवियकम् एतेहिं णयंतरेहिं त चिसुदं। करणड्डाण पसत्या वे खलु होती मुणेयचा ॥३॥अकरेंवे अपसत्या करपे सणयंतरे समक्खाओ। कणे ठितमठिते पुण बोच्छामज्हुणा समासेणं ॥४॥ संघयणनिमोनिक्सक्खयकारओ पणम जाओ। संघयणसमगस्सवि अजाय पाउरो अमोक्लाए ॥५॥ पंच उ महायाई पण तेसि तु जो करे पयर्स। जाओ जो निष्फमो अजाओ पियमा अनिकरणी ॥६॥ठितमहिते व कप्पे संघपणेणापि जो निहीणो उ। सो कुणा एक्समोक्लं जो पुणण करे पयतं तु॥७॥पंचसु महपएसं संघयणेनं तु जइवि संपयो। सो चउगइसंसारे भमई ण व पावई मोक्वं ॥८॥अहुणा उठाणकप्पो उबहाणाइओ मुणेयो। ठियकप्पसंजयस्सविडणुण्णाओ अद्वितस्मावि ११०६ पशकल्पमाप्पं - VENTORE E ~253
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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