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________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) --------------- भाष्यं [२१५१] -------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [4/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [२१५१] दीप अनुक्रम [२१५१] दुपडिजम्गो उठाइसु मणिमो पर पत्तिय तह नामोसो॥१॥ जच्चादिमाविएहिं करेति गई त परिभवति अर्चनाणादरीया मम्मो परुणा असहा तेसि ॥२॥नाणादिस सीबतो न सुद्धमग्गं तु जो परूवेति। एसो मग्मच्छादो वइयती दाहसंसारं ॥३॥ एनेसित बिवेगो मग्गधरा खलु कुलादिया थेरा । तेहिं उपल्याण उवावियाणं गुरु चाउरो (मासा) ॥४॥ वाला बुदाणं मिक्समाईण पेस सबसि । संखवेण महत्थो उपएसो कीरई इणमो ॥५॥ कप्पे सुत्नत्यविसारएण धामावहारविजदेण । भत्तादिलभालने सकारजण होय ॥..१४४॥६॥ कति बेरकप्पे सुत्नत्यविसारएण साहूण। सत्रत्येसू सबलं ण गृहिया समस्येण ॥ ७॥ आहारमादिएहिं उठें धीयारमादि पूजते । साहू अपुजमाणे ण एवं मणमा विचितेजा ॥८॥ पूजती अजया वयं तु साण्णुमरगमोइण्णााहा कहणुन पुजामो? न करे मणदुकर्ड एवं ॥९॥ सकारपुरकारे परीसहे उ अहियासक एवं । जूरते गहियासिजों तम्हा सुमणेण होय ॥२१६०॥ बीसइचिहकप्यो ऊ एसो खल वणिओ समासेणं। बाबालकप्पमहुणा गुरूवएसेण वीच्छामि ॥१॥ दवे भावे तदुभय करणे वेरमणमेव साहारो। निवेस अंतर णयंतरे य ठिय अहिए १०व।...१४५॥२॥ठाण जिण बेर पजुसणमेव सुते चरित्तमायणे । उदेस यायण पडिच्छणा य२० परिवहष्णुप्पेहा ।।...१४६॥३॥ जायमजाए विष्णमचिणे संघा(ठाणमेव चयण य। उववाय णिसीहे या ३० ववहारे खेत्तकाले य...१४७॥४॥ उचही संभोगे लिंगकप्प पडिसवणा य अनुवासे । अणुपालणा अशुष्णा ४० ठपणा काये ४२ य योद्ध।..१४८॥ एतेसिं तु पयाणं पत्तेय परूवर्ण पवस्वामिासहियं तु दवकप्पो दणमो उसमासओहोति ॥६॥ पंचण्हं असणादीण पणुचीसति हि भवे विसोहीओ। अहवापि उ चउदसया एनो निगवदिया सोही असणं पाणं बत्थं पार्य सिज्जा य पंच एनेसि । मुदी पचीसच्या उम्गम नह एसणाए य॥८॥ सुयणाण. पमाणेण उ गहिय असुपि होइ सुदो उ। अहवाविउ उसया सोसस उपायणादोसा ॥९॥ एएसि सबेसि हणपयणकिमादिणवहिं कोडीहिं । कयकारियाणमोदिन एसा निगरदिढया सोही ॥२१७॥ दसणनाणचरिने नवपक्यणसाम(ब)समिनि तिहिं गुनो।हतरागदोसनिम्ममखमदमनियमडिओ निचं॥१॥ तभयकापो अरणा एने चिय दवभावकप्पा उ। दोणिवि मिलिया एते तदुभवकषो इमो सो या आहारे अविहे सेनोचहि पंच पंचग विसोही । ईसणचरिनगुत्तो नपसमितिगुणेहि सोहे(हो)नि॥३॥ असणादीओ पहा उपकारि चाबिहो य तस्सेव। एसडविहाहारो परुवणा तम्सिमा होइल०१४५॥४॥ असणं तु ओदणादी तदुवकारी उसीरकुसणादी। पाणं तु पाणमेव उ कष्परादी 3 उवकारीला १४६॥५॥ साइम कलाइयं न सुनारण्ठा)दी होनि नदुपकारी उ। साइम तयोलादी चुण्णादी नदुवकारी उ ॥ ०१४७॥६॥ एवं आहारादी उम्गमउपायणेसणासवे । उपाए दसणादीहि जुनो अहवा तदहाए ॥७॥पिरती प अपिरती या विस्याविरती व तिचिह करणं तु । एकेक होइ दहा ओहे य अनिग्गहे चेय।.१४९॥८॥ चिस्तीकरण आहे पंचेच महत्या भयंती उाहोनि अभिमहकरणं पिंडविसुदादि रोगविहं ॥५॥ जहवा आहे संजमा विभागओ होइ सनरसभेदो। अविरति असंजमोहे अद्वारस अभिग्गहे इणमो ॥२१८०॥ पाणइचाए मोसे अदन मेहुण परिगहे चेन। कोहमाण(मय)मावलोभे पेजे दोसे तहा कलहे ॥१॥ अभक्खाणे पेखुन्न अरति ई पेप मायमोसे या मिठाईसगसते अद्वारस अभि माहे एस ॥२॥ विस्ताविस्तीए पुण ओहेण अणुण्या भवे पंच। उत्तरगुणा अभिग्गह दति सिक्खावता सत्त॥३॥ एल्यं पुण अहियारो विस्तीकरण हो दुषिहणं । जह तेसु अतीयारोन होति तह ऊ पयतिय ॥४॥ उज्जामरक्सियाण महामार्ण कओ हपनि पीला ? मनति आहारादिहि निहिं पीटा होतऽसदेहि।।.१५०॥ल.१४८ ॥५॥ उजम उनोओ खल एणं रक्सियाण उपवान। पीला उपचाजो साल भवति कह पुच्चाती सीसो ॥६॥ भण्णति आहारोवहिसेजा एतेहि लिहि असदेहि। उमामदोसादीहि उ पीला संजायनि बयाणं ॥ तम्हा उ उम्गमादीदि पिसुद्धाऽऽहारमादिया कजा। वेरमणकप्प एसो एती साहारणं बोउं ॥॥ सेजुबहिज्झाय आहारमेव साहार नह य अणुकंपा। आदिपणगं तु नातं भाइयं अणुसासणाए उ॥...१५१॥९॥ सेजुबहिसायजाहार पसिवा एने हॉति चत्तारिश साहारणकापी पुण मूलगुणा उत्तरगुणा य॥२१९० ॥ साहारणनि किं पुण से जादुप्पाद गाण सोसि। सामग्णगुणा ने ऊ सम्हा साहारणं जाम ॥१॥ आदिपणगं तु तानि जाण सेजाति जाब साहार। ठियमद्विवाण दोण्हवि एए खलु होति तुला उ॥२॥ अहया निपणग मूल्यण पंचेते होति दीड तासा उ। समणान व समणीण व तम्हा साहारणं जाणे ॥३॥ मायमणुसासमंती अणुकंपऽणुसासणन्ति एगद्वारा कोई कदाइ अणिउणो ण तरति अणुसासणं काउं॥४॥ सुहमारिवत्तर्ण होति बिसुद्धो य अंतरप्पा से। तस्सदिहाति बताई पंचविसाहारणाई तु॥५॥ आणा नित्यगरार्ण सामण्णा संजयाण ससि। सहमेविनापमाए अणुसासणय कुणड जो उ॥६॥ तेण अणुकंपिया णिच्छएण जम्हाणुस(उउ)द्विता होति। तेणऽणुकंपऽणुसही (सऽणुसणुकंपा) एमट्ठा होति नायबा ॥७॥ साहारकप एसो बहुणा बोच्छामि णिपिसणकर्ष । जह निषिसति समणा सम्मं गुरुवाएसेर्ग ॥८॥ नाणं च दसर्ण वा तहा परित्तं च समितिगुत्तीजो। एकासीतिपदेहि निविस निवेसणाकप्पो १०५ पत्रकापभाष्य - मुनि दीपरनसागर ~252~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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