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________________ आगम (३३) "मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया) ------------------------- मूलं [६१०]------------ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[३३]प्रकीर्णकसूत्र-[१०] "मरणसमाधि मूलं एवं संस्कृतछाया प्रत सूत्रांक ||६१०|| पइक्य- एक्माईहिं । देवावि समभिस्या तेसुविप को मुहं अधि? ॥६१०॥ १८४५॥ ७। एरिसयदोसपुण्णे खुत्तोलोकस्व संसारसायरे जीवो। वाइचिरं किलिस्सहतं आसवहेजअं सई ॥ ६११ ॥ १८४६ ॥ रागोसपमत्तो इंदि- भावाश्रयी मरक्स- यवसओ करेइ कम्माई । आसवदारेहिं अधिगुहेहिं सिविहेण करणेणं ।।६१२॥ १८५७ ॥ धिधी मोहो जेणिह माई हियकामो खलु स पावमायरइ । नहु पावं हवह हियं विसं जहा जीवियस्थिरस ॥ ६१३॥१८४८ ॥ रागस्म य दोसस्स य घिरत्थु जं नाम सदहतोऽवि । पावेसु कुणइ भावं आउरविजय अहिएK ॥ ६१४ ॥ १८४९॥ लोभेण अहव घत्यो कजं न गणेइ आयअहियपि । अइलोहेण विणस्सह मच्छुछ जहा गलं गिलिओ ॥६१५॥ ॥१८५०।। अत्थं धम्म कामं तिपिणवि बुद्धो जणो परिचयह। ताई करेह जेहि उ (न) किलिस्सह इहं परभवे य 1॥६१६ ॥ १८५१ ॥ हुँति अजुत्तस्स विणासगाणि पंचिंदियाणि पुरिसस्स । उरगा इव जग्गविसा गहिया ॥१४॥ दीप अनुक्रम [६११] -*-9829 ६१० ॥ ईटगदोषपूर्ण मनः संसारसागरे जीवः । यदतिचिरं हिश्यति तदाअवहेतुकं सर्वम् ।। ६११ ।। रागद्वेषप्रमत्त इन्द्रियब-18 शगः करोति कर्माणि । आश्रयद्वारैरविगृहितैसिविधेन करणेन ॥ ६१२ ॥ धिग् धिग् मोहं येनेट् हितकामः खलु स पापमाचरति । नैव पापं भवति हितं विपं यथा जीवितार्थिनः ॥ ६१३ ॥ रागं च द्वेषं च धिगस्तु यन्नाम प्रधानोऽपि । पापेषु करोति भावमातुरवैद्य | वाहितेषु ॥६१४॥ लोभेनाथवा प्रस्तः कार्य न गगवति आत्माहितमपि । अतिलोभेन विनश्यति मत्स्य इव यथा गर्ल गिलितः ॥६१५ अर्थ धर्म काम त्रीनपि बुधो जनः परित्यजति । तानि करोति यैस्तु (न) विश्यतीह परभवे च ॥६१६॥ भवन्त्ययुक्तस्य विनाशकानि पञ्चे ॥१३८॥ JAMEhutimanmadina Free ~99~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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