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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक
[९३]
दीप
अनुक्रम [१३]
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं )
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मूलं [ ५३ ]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
आसायणयाय होति पडिसेबी एकेकोविय दुद्धिहो जहणओ चे उकोसो ॥ २५२०॥ तप जणवडाऽऽसायण जहण छम्मास वरिसमुकोर्स के पुण आसाएंती! जिणमादी जा महि इदीयं ॥ १ ॥ पटिसेवी अणवट्टो जण सरिसं तु नारकोसा। किं पुण पडिसेपनि नृ? तेण्णादीया पदा सच्चे ||२|| कारणमादिपदा तू उवरि बोच्छि अरुण परिहारं बंदणमादी व पदा समासयो है इमं वोच्छं ॥ ३ ॥ परिहरणं परिहारो आलावणमादि दसहि तु पदेहि सेहादिएवि वंदति सो पुण पनि दणिजो तु ॥ ४ ॥ केरिसगुणसंजुत्तो अणवो कीरती? इमं गुणसुः संघननचिरिय आगमसुत्तस्यचित्तीय उपवेया ॥ ५ ॥ उवरिमतिगसंघयणी सत्रगुणो केवल जियणिही देजा से सहल अणव वाचि पारंची ॥ ६ ॥ वदपुष्कत्यो साइब उग्गमधितिकयकरणो । परिणामसमग्गोत्तिय अब सि दायां ॥ ७॥ एवं तु गुणसमग्गो परिनसेडिं तु गड भिरणं वा पौराणियगुणसेटिं निरवयवं सो तु पुरेति ॥ ८ ॥ सो वंदति सेहादिवि परमतितयो जहा जियो चैव विहरति बारस वरिसे जणवटुप्पो गणे चैव ॥ ९ ॥ तस्स व परिहार पडिवजतस्स कीरउस्सग्गो संघारणभीए आसस जसमत्यकरणं च ।। २५३० ।। कि कारणमुस्सम्म ? भणति हाण जाणणड़ाए भयजणणडाय तहा विया ॥ १ ॥ कापट्टितो अहं ते अणुपरिहारी य एस गीजो ते । पुत्रं फतपरिहारो तस्सऽसतिऽण्णोषि दढदेहो ॥ २ ॥ एस तवं परिवजति न कंचि आलवति मा णु आलवा अन्तचिन्तगस्सा पापातो मे ण कायो ॥ ३ ॥ ताहे व परिहरिजति गच्छेणं सोप परिहरति गच्छं । अपरिहरन्ताऽऽरोण सहि पाएहिं इमेहिं तु ॥ ४ ॥ आलावण पडिपुच्छण परियद्वाण बंदणग मने । हण संघाडग भन्तदाण संभुजणे चैव ॥ ५ ॥ जा संघाडी ता तुलओ मासो तु होति गच्छस्स लगा य भगदाणे संभुंजण होतयाता ॥ ६ ॥ संघाओ तु जाव गुरुओ मासो दस तु प्रयाणं भत्तस्स दाण संभुंजणे य परिहारिए मुरुगा ॥ ७॥ कितिकम्मं च परिच्छति परिणा पडिपुच्छ देतिय गुरु से सोऽविय गुरुवचिति उदन्तमवि पुच्छितो कहने ८ ॥ एवं वनाए उविधाएं भयं तु क कि नु मए एक णित्थरिपनि कालो ९॥ नाहे आसासनी आयरिओमा तु एवं सेवी अणुपरिहारी एस य अहवा कापड़िती एसा ॥ २५४० ॥ किंचि पाहि समएस काहिहिंडिसीय अणुपरिहारण बसदि । १ ॥ एवं भणि तु संतो सासति में चाहे रिति किं पुण होआसासो भणति इणमो सिामेहि ॥ २ ॥ जह कोति जगद्रपटि जति भाति एस हा मतो करतो तो मुंचति अंगाई पच्छा मरती य सो ताहे ॥ ३॥ अह पुण भणति एवं मा बी एस आणिया रज्। उत्तारिजसि एवं आसासों से पति नाई ॥ ४ ॥ एवं दिवुज्झते राया रुढी व कारती होता। सोनि जति विषोसिनि भए तो विराएजा ॥५॥ अह भनि मा बीभेराया असमिक्लिए अकले या। गवि किचि करेगी मोइजेहिसि व जाससति ॥ ६ ॥ एवासासो तस्सवि होती आसासियम्स संतस्स इस पविणो सो ऊ बहइ हूँ उम्मं तवोकम्मं ॥ ७ ॥ तो उम्मेण तवेर्ण सो जा लादुम्बनसरी ण नरेद्राणादी कार्ड ताहे इमं मणति ॥ ८॥ उद्वेज निसीएला भिक्स हिडिल मंडगं हे कुविततिबंधवाविव तुसिणी संघाड़ी तो कारे ॥ ९ ॥ वितियपय अच्छा पेसेजा बंद अयातो गेलणे उभयस्स व कुजा करणिज जयणा ॥ २५५॥ गच्छा गुरु गुरुअणुपरिहारिए समप्येति अणुपरिहारी परिहारियरस देतेस जया तु ॥ १ ॥ सोया करेल ते जगाद परंपरेण एमेच गुरुणो एमागिस्स व अण्णऽसतीए करेजाहि ॥ २ ॥ साह निणिकुलादपितो की तु उपठाण न भवे केपी मिहिषेस कानूणं ॥ ३ ॥ मिहिनेतमकाऊ उपवेन्ते होंति चउगुरुगा आणादिणों व दोसा पाव अहवा इमे दोसे ॥४॥ वत्थंएगे व्हाणविवम मेन परिसा धम्मं गुणेश कणा पुणी दिवसा ॥५॥ किं तस्स तु मिहिने किं परथकिंतु किंवा परिसा धम्मो से कहिए त ? ॥ ६ ॥ ओमामिला ण कुञ्चति पुष्णोषि सो तारिखं अनीयार होति भयं नेहाण व गिहिए धम्मया चैव ॥ ७ ॥ नित्यगर पचयण सुतं जायरिय गणहरं महिद्दीयं (दृढाई)। आसाएन्तो बहुसो आभिणिदेसेण पारची ॥ मृ० ९४ ॥ ८॥ हि पुण आसाएती अबाया यह जं सिं केरिस तु अण्णो ? भण्णइ इणमा निसामेहि ॥ ९॥ पाहुडिय उवजीवति जाणतो कि भोगं? अजुस्थित अतिकक्सड देसिया परिया ।। २५६० ॥ अव एवमादी अनि परिमानितिलोग महियाणं जनि भगति कीस कीरति कारमादीयं ॥ १ ॥ जोषियों ने सर्व अति अकुतो चंद्रमादीयं नित्यमरासायना एसा ॥ २ ॥ अनादिसंघमहिला संघपरिणीए अमेि संघा सियाटिकादी ॥ ३ ॥ काया क्या यने थियने व पमाय अप्पमाया य मोक्लाहिगारियाणं जोतिसविज्ञाहिं कि वो? ॥४॥ इडिटरससानगया परोवदेसुजया जहा मखा जत्तपोसणारया आयरिया जह दिया चैव ॥ ५॥ अजय विहारं देसेन्ति परेसि सतमुदासीणा उवजीवंति व इटि भीगा मांनिय भणति ॥ ६ ॥ गणहर एवं महिदी महावस्सी व वादिमादी या तित्थगरपदमसीसा आदिम्हणेण गहिला वा ॥ ७ ॥ सा दुह देस सबै सम्मी एगदेसमादीया जं वयनि सउदो ससि वाच सदेसी ॥ ८ ॥ तित्थकर संघ या देवावि असणं आसाएन्ते चरिमं सेसे तुगुरू देसे ॥ ९ ॥ स वाऽसानो पावनि पारचितं तु सो ठाणं एवं पुण सचरिती से स य (२६५) १०६ जीनकन्यायं -
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भाष्यं [२५२०]