SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [९४] ------------- ------------- भाष्यं [२५७०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य PR R AT094dogy प्रत सूत्रांक [९४] A अचरिती ॥२५७०॥ तित्यगरपढमसीस एकची सादयंतों पारंची। अस्पस्सेय जिणिंदो पभवो सुत्तस्स सो जेणं ॥२॥ आसायणपारंची एमेसो वण्णितो समासेण। पडिसेवणपारंची एतो वोच्छं समासेणं ॥२॥ जो पसलिंगे दुट्ठो कसायनिसएहिं सववहजो या रायग्गमहिसिपडिसेवजो य बहुसो पगासो य॥ मू०९५॥३॥ पडिसेवणपारंची तिबिहेसो चषिणओ तु सुत्तम्मि। हादीहि पवेहि समासओह पवश्वामि ॥४॥ हो य पमत्तो या अग्गोण्णासेवणापसत्तो उ। एतेसि विभागं तू बोच्छामि जहकमेणेव ॥५॥ चिहो य होति बुडो कसायो य विसयहो या दुविहो कसायदुडो सपकवपरपक्लचतुभंगो ॥ ६॥ सासवणाले मुहर्णतए य उलगच्छि सिहरिणी घेष । एते सपक्खजुहा एतेसि परूषणा इणमो ॥७॥ सासवणाले लखें गुरु उंदिय साय सवितर कोहो । खामण अणुवसमन्ते गणिं ठवेत्तऽण्यहि परिण्णा ॥८॥ पुच्छतमणक्खाए सोधणयों गंतु कत्व से सरीरं ?। गुरु पुषकहित वाइय पडियरणं वन्तभंजणया ॥९॥ मुहर्णतयमालोयण आणियमुकोस गहित गुरुणा या कुविएण णिसी गर्नु गलए लइओ य पासुनो ॥२५८० ॥ सम्मूटेणियरेणचि गलए लइओ उ तो मता दोऽवि। अन्णो पुण सिबतो अत्यमिए गुरूहि जहमणितो ॥१॥ अत्यमियम्मिचि सिसि उलुगसरिच्छछि तो पदे रसितो । नुह उपखणामि अच्छी खामिजतोऽपि पकिन पसिए॥२॥तो ठविय गणिं गच्छे मनपरिष्णं करेति अण्णगणे। जह पदमी णपरि हं उलुअच्छीउत्ति टोंकेति ॥ ३॥ अवरोचि सिहिरिणीए इंदिय सबाइयतों उम्भिरणा। तत्वेष तू परिण्णा ण गच्छती णकर अण्णस्य ॥४॥जम्हा एते दोसा सम्हा णवि गेण्डियायं गुरुणा। एगरसेव तु सर्व अण्णायायारसीलस्स ॥ ५॥ गहणग्मि विही इणमो जति गहिया मत्तगाल अनुसनेहिं । तेसि णिमंतेन्ताणं अलाहि पजन्तमो ति ॥६॥णिबन्धे योक्यो सबसि गेहए ण एगस्साससिपि ण गेहति मितियाएसेण गहियपि ॥ ७॥ गुरुभत्तिमं जो यमणाणु कुलो, लो गिण्हति णिस्समणिस्सयो वा। तस्सेष सो गेहति णेतरेसि, अलभगाणस्मि व थोच पोचं ॥८॥ सति लामम्मि न गेहति इतरेसिं जाणितृण णिबंध। मुंची य सायसेस 3 जाणति उक्यारमणियं च ॥९॥ गुरुसंसढ़परिव पालादसतीए मण्डलिं जाति। जो अण्णायारमनग गिलाणनुवरिततेऽपि ॥ २५९० ॥सेसाणं संसाईन एम्भई मंडलीपदिमाहए। पत्ने गहितं छुम्मद उम्भासण लंभ मोचूर्ण ॥१॥ पाहुणगट्टा व तयं घरेनु अधि वाहट विनिचंति। णचि मुंजण विहि अविही गह इति गहणेण दोसते ॥२॥ एते सपक्सडा परपक्से उदायिमारगादीया। परपक्ससपपसम्मि य पालकादी मुणेता ॥३॥पालको तु पुरोहितों संदगपमुहाण जेण पंच सपा। पुधि विराहियेणं ति पीलाविता जतिणो॥४॥मुणिमुख्यतित्वम्मी पाएण पराविजो स पुषितु। संदगरण्णो ताहे पावोस पोसमावग्यो ॥५॥ परपक्सो परपक्से सयादी अभिमरा जहा केति। बहपरिणया ब वहगा भणिता यत्तारि कुट्ठते॥६॥ एतेसि चतुदंपी पच्छित्तमहाविहि परस्सामि। जे सासपणालादी लिंगविवेगो भवे नेसि ॥ ७॥ जोऽपि सपक्सो राधावियाण पहपरिणो व बहनों वा। सो लिंगतो पारंची जोऽपि य परिषदए ने तु॥८॥ सप्णी असणी वा जो परपक्से सपनसे दुडो तु। तस्स णिसिद लिग जइसेसी वापि से देना ॥९॥ परपक्रयो परपक्से रायमादीपड़ों जोऽपि भवे। तस्स सदेसे ग कप्पति कपड़ अण्णम्मि उपसंते ॥२६०० ॥ एसो कसायबुद्धो विसयपदुई ददाणि पोछामि। तसवि सपासपरपसओ प चतुर्भगो तह अंग ॥१॥ संजति कप्पठि पढमो सेनातरि अण्णातिस्थिवी बीजओ। परपकले संजतीए उमयपरो होति उचतुत्यो॥२॥लियोण लिगिणीए संपत्ति जति णिगच्छती पायी। णिस्याउगणिपंप आसायणओ अबोही य ॥३॥लिमेण लिंगिणीए संपत्ति जो णिगच्छती पायो । सजिणाणऽजातो संपो आसादितो तेणं ॥४ा पावाणं पायरो बठूण ण वहाए हु(स)साहूर्ण। जो जिणगुंगषमुरं गामिऊण वमेष परिसनि ॥५॥ संसारमणवयमा जातिजरामरणवेयणापउ। पावमलपडलरमा नमति मुदापरिसणेणं ॥६॥ एसो पदमगमंगो पारचियमेश्य होति पच्छिन। वित्तियगर्भगम्मितहा अणुपरयम्मी भने चरिमं ॥ ७॥जस्थुष्पजति दोसो कीरति पारंचिओ स तम्हा उ। सो पुण सेचि असेनी गीयमगीयो व एमेव ॥ ८॥ यसहि णिवेसण बाड़ग साही तह गाम देस रन या कुल मण संघे णिजहणाएं पारंचिओ होति ॥९॥ उपसंतोऽपि समाणो वारिजति तेमु तेसु ठाणेसु । हंदिर पुणोवि दोस नहाणाऽऽसेवणा कुणति ॥ २६१०॥ जेस बिहरति ताओ यारिजति णवर तेसु ठाणेसु । पढमगर्भगे ताई सेसेसुबिताई ठाणाई ॥१॥ इत्यं पुण अधिगारो पदमगभंगेण उभयबुद्धण। उचारियसरिसाई ससाई विकीवगहाए ॥२॥ इति एस अमिहिओत उभयपाहो य रायपहगो या रायामहि सिपढिसेवो उ अहुणा इमो होति ॥३॥ रायस्स महादेवी अहवा जा जस्स होतिहा। सा तस्स होति अग्गा असा पहाणति एगवा ॥४॥ पडिसेचति जोत पुणों पुणो होति बहुससहो उ। लोगपगासो अहवासो पावति चरिमठाणं तु॥५॥ चस्सदा अण्णाणचि जाहासा हुनेसि होजग्गा। जुपरायादीआर्ण तेसिपि जहेब राइस्स ॥ ६॥ इयरमहिलामु चरिम ण विजनी कीस ! एक चोएति। मण्णइ बहुआऽवाया इत्तराखं अप्पणो व ॥ ७॥ रायस्स अगमहिसीएं अप्पणी कुल गणेवसंधे ना। पत्याराई दोसा पागतमहिलामु तस्लेव ॥ ८॥ वतलोचों सरीरे वा दोला ण हु कुलगणादिपत्यारो।एतेण कारणेणं इतराखण होति परिमपदं ॥९॥ दुखेसो पारंपी १०६१ जीनकायमाय - अनुक्रम [९४ VES, RAatoyotatsA करू ~207~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy