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आगम
(३८/१)
प्रत
सूत्रांक
[५]
दीप
अनुक्रम [ ९५]
"जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं )
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भाष्यं [२६२०]
मूलं [१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं
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भणितो अदुवा पमत वोच्च्छामि सो कलसविकहाविकटे इंदिय विहाय पंचविहे ॥ २६२०॥ कोहाति च कसा विका पुण इत्यिमादिया चउहा पुन्माला पियडं इंदिय सो यादिए पण ॥ १ ॥ पोग्गल मोदग फरुसग दंते वडसालगंजणे चेय बीनदी आहरणा वोच्छामि विभागमेतेहि ॥ २ ॥ श्रीणदिमहादोसा अण्णोष्णासेवणापसत्तीय परिमाणाव नि बहुसोय पजए जो उ । मू० ९६ ॥ ३ ॥ जह उदमम्मि घर वा वीणम्मी गोलम्भए किंचि इदं चित्तं भणति से चीणं तेन भीणी ॥ ४॥ पिसितासि पुचमहियं विगिचियं दिम्स तत्थ णिसि गंतुं । अण्णं तु खायति उवस्सतं स ति ॥५॥ मोद्गमत्तमल मंतु कवाडे परस्स णिसि खाइ माणं च भरतृणं आगजो आवासए विवडे ॥६॥ अपरोऽनि फरसमुंदो मतियपिंडे व छिदिउं सीसे एमन्ते पबिन्धति पासुत्ताणं वियडणा य ॥ ७ ॥ अवरोषि पाडिओ मत्तत्थिणा पुरकवाड मंतृणं तस्खणित दन्ते वसही बाहिं विपडणा तु ॥ ८ ॥ उष्मामग वडाले पट्टिओ कोइ पुर्व वणहत्थी बसालमंजणाऽऽणय उस्सम्गाऽऽलोयण पभाए ॥ ९ ॥ तरसोदयकालम्मी हवती जं केसवरस अदबलं। गवि देति अणनिसेसी लिंग अपि केवली होजा ॥ २६३० ॥ मातम्मि पणजित मुय लिंग णत्थि तुज्झ पारितं । देसवय दंसणं वा गिव्ह इच्छं रमणि ॥ १ ॥ अह च्छति तो संघ लिंग हरई ण हरति सि एगो मा गच्छे पदोस उइडेन्तसती पासुतं ॥ २॥ दिपमत्तो एसो पारंची लिंगतो समक्खातो कुणमान अण्णमण्णं पारंचीय अतो वोच्छं ॥ ३ ॥ करणं तु अष्णमण्णं समणाण ण कप्पती सुचिहियाणं हि करण अष्णमण्णं ? भण्णति इणमो णिसामेहि ॥ ४ ॥ आसयपीसयसेवी केई पुरिसा दुवेदगा होन्ति तेसि लिंगवियेगो कानको होत शियमेणं ॥ ५ ॥ चरिमं अंतं भणति तं पुण पारंचियंति गात पारंचियावराहे पुणो पुणो सजए जो तु ॥ ६ ॥ चीणदिमादियाणं सोहि कोच्छे पुणोवि सज्ञेसिलिंगाणं कमसो एत्वं इमा हाँति गाहाओ ॥ ७॥ सो कीरति पारंची लिंगाओ लेत कालओ तवतो संपागडपडिलेवी लिंगाओ श्रीणगिही य ॥ मू० ९७ ॥ ८ ॥ यहिणिवेसणवाडगसाहिणीओ पूर देसरजाओ। खेत्ताओ पारंची कुगणालयाओ या ॥ मू० ९८ ॥ ९ ॥ जत्थुप्पण्णो दोसो उपस्थिति व जत्थ गाऊ तनो तत्तो कीरनि सेनाओ खेनपारंची ॥ मु० ९९ ॥ २६४० ॥ जन्तियमेतं कालं तवसा पारंचियस्स उ स एव काल दुनिगण्यस्सवि अणवटुप्पस्स जोऽभिहितो ॥ मू० १०० १॥ आसातण पडिसेवण दुह अणव जो भने कालो । पारंचिएव सो चेन होति उकोसग जहणी ॥ २ ॥ पारंचिया उ एते तिष्णिवि सामण्णयो विणिहिद्वा एतो जो जारिसतो बिसेसमेसि चोडामि ॥ ३ ॥ दुद्वे य पमने या अण्णी
सेवणास य एतेसि निहंपी बिसेसमेतो पत्रक्खामि ॥ ४ ॥ तहियं तु विसयदुझे सपक्वपरपक्वतो व जो होजा सो कीरति पारंची सेनेणं नृण लिंगेणं ॥ ५ ॥ अणुवरमंतो कीरति सेसो जियमेण लिंगपारंची से लेण य लिंगेण य पारंची अनिहिता एते ॥ ६ ॥ किं एते चिय भेया पारंबीए उपाहु अण्णेऽवि ? भनि नवपारंची अष्णो हु केरियो स खलु ? ॥ ७॥ इंदियपमापदोसा जो तू अवराहमुत्तमं पत्तो सम्भावसमाउदो ज य गुणा से इमे होंति ॥ ८॥ वइरोसहसंपतणो वितीय जो कुसामाणो णवमस्स नविस्त इत्येहिच जोहो ॥ ९ ॥ खुसीहतवादीहिं भावितो जो य इंदियकसाए णिग्धेत्तृण समत्यो पवयणसारे अभिगतत्य ॥ २६५ ॥ तिस्स सिमेोवि जस्स णय भावो । णिजुहणाए अरिहो ऐसे हिना पि ॥ १ ॥ एयगुणसंपत्ता पावति पारंचियं तु सो ठाणं एयगुणचिप्पमुळे नारियम्मी भये मूलं ॥ २ ॥ पारंचियं तु पावति आसाएन्तो तब पडिसेबी एकेको होति बुढा जहरण उकोसओ चेव ॥ ३ ॥ आसायणो जष्णो उम्मासुकोस पारस तु मासा पास पारस वासा पडिसेवी कारणे भविओ ॥ ४ ॥ जति होला आयरिओ तो गणणिक्लेवमित्रं कर्तुं गंणं अण्णगणं दशादि सुभे विगटणा तू ॥ ५ ॥ एागी खेत्तवहिं कुणति तवं सुविपुलं महासत्तो अनलोचनमायरिओ पतिदिणमेगो कुणति तस्स ॥ मू० १०१ ॥ ६ ॥ ओलोवर्ण गवेसण मायरिओ कुणति चिकाचि खेतबहिचिट्टियस्सा इमेण विहिणा पवच्खामि ॥ ७ ॥ उभयस्मि दातृण स पाढिपुच्छ, वो सरीरस्सय पमाणि आसासनित्ताण तोकिलतं तमेव गच्छं पुणरेन्ति घेरा ॥ ८ ॥ असहू सुतं दाउ दोषि अदा व गच्छति पदेवि संपाडो से मतं पार्थ या गातिमग्गेणं ॥ ९॥ पारं चियस्स तहियं तं वह्माणस्स होत गेलणं ताहे से पडिकम्मं ताहे पयले काय ॥२६६०। आहरति भत्तपाणं उब्वत्तणमाइयंचि से कुणति सतमेच गणाहिबई वेयाचचं जहत्थामं ॥ १ ॥ जो उ उबेहं कुशा आयरिओ केणती पमाएणं आरोगण तस्स भये गिलाणमुत्तम्मि जा भणिया ॥ २ ॥ अह पुण ण तरेश गुरु गंगेलणमादिहिं तहिये। कालुहे दुवा कुलादिकज्ञेणवणेण ॥ ३ ॥ अभिसेयं तो पैसे अण्णं गीयं व जो हि जोग्गो पुट्ठो व अपुडी या सोविय दीवेति तं कज्जं ॥ ४ ॥ सो य समत्यो होजा संपाडेतुमिहं तस्स फणस्स । स्वीरादिलद्धिजुत्तो विज्ञादिगजतिसएहिं च ॥ ५ ॥ जाणता माहत्यं सतमेव गुरू वदंति तं जोगे। अस्थि मम एत्थ विसतो अजाण ते व सो बेति ॥ ६ ॥ अच्च महाणुभावो जहागृह गुणसागरी संघो गुरुपि इमं कर्ज में पप्प भविस्सए लहूयं ॥ ७॥ अभिहाणहेतुकुसलो बहुसु अणिराइओ विदुसमासु मंतृण रायमवणं भणाइमं रामदारिहं ॥ ८॥ पडिहाररूपी ! २०६२जीकायं -
मुति दीपरत्नसागर
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