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________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [२६१२] दीप अनुक्रम [२६१२] भाग 27 Stitchessgvvvvv “पंचकल्प” छेदसूत्र -५/२ ( भाष्य ) भाष्यं [ २६१२] [३८/२], छेदसूत्र [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं १११४ भाष्यं -------- - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... ..... आगमसूत्र तो पच्छा पतंतुवसंपादे पञ्च तु एगपक्लम्मि ॥ २ ॥ पहलाएं सुतेन य चतुमंगो होति एमपक्लम्मि पुशाहिदवीसरिए पढमासति ततियभंगेणं ॥ ३ ॥ सहस्सवि कायां निच्छयोकिं कुठं व अकुलं वा? कालसभाषममते गारवखाएँ] काहिति ॥ ४ ॥ एसऽणुपाणकप्पो अडणाऽणुष्णातो दिसुतेहि सिद्धो अणुतकप्पो णवरेगद्वाणि योच्छामि ॥५॥ किमणुन ? कस्सऽणुता? केवतिकाल पत्तियाऽणुचा ? आपरियन्त सुतं वा अणुष्णच जं तु सागुना ॥ १७९ ॥ ६ ॥ कस्सी सीसस्स गुरुगुणजत्तस्स होयऽणुष्णा उ केवइकालपविती आदिकरेणुसभसेस्स ॥ ७ ॥ एगडियाणि तीय उ गोचाई हवंति नामभिजाई बीस तु समासेणं पोच्छामी ताणिमाई तु ॥ ८ ॥ जणुष्णा उष्णामणा णमण णामणि ठवणा पभावना बिदा (ता) रे। तदुभयहिय मज्जाता कप्पे समय पाए य ॥ १८० ॥ ९ ॥ संग्रह पर निजर थिरकरणमच्च्छेद जीव (त) बुढिपयं एपचरं चैव तहा वीस अणुष्णा णामाई ॥ १८१ ॥। २६२० ॥ अणुणवतऽणुष्णा उष्णामिय उसिमंति उष्णमणी गिहिसाहिं णमिज तम्हा ऊ होइ नमणिन्ति ॥ १ ॥ सुतधम्मचरणथम्मे णामपती जेण णामणी तुम्हा ठपिओ आयरियन्ते जम्हा उ तेण उणन्ति ॥ २॥ विज गणाहिवत्ते होइ पमू तेग पमयो सबेसिं नागादी होती पत्र पति एमा ॥ ३॥ आयरियते पमविए वेन वियारो दिजइ गमो से तदुभयहियति नभइ इहपरलोगे व जेण हियं ॥ ४॥ गणधर मे घरेली जम्हा ऊ तेण होनिक कप्पोतियप्पो कसमणे (करण) गं ॥ ५ ॥ नामादि मोक्खमग्गो सुत्त (सोव)म्मि तितोति तो भवति मग्गो जम्हा उ माचकारी गाओ वा एस तो जातो ॥६॥ दवे भावे संगहो दहे आहास्यस्वमादीहिं। भावे नाणादीहि उ संगैव्हति संगही तेण ॥ ॥ दुविहेण संचरेण इंडियनोईदिएहिं जम्हा उ अप्पाण गणं च वहा संचरयति संचरो तम्हा ॥ ८॥ गणधारणमागिलाए कुणमाणो निजरेड कम्माई अन्य निजरावे तम्हा ॐ निरा होइ ॥ ९ ॥ वारिता उता इव पर्कपमाणाण तरुणमादीर्ण होइ चिरादईयो त थिरकरण ते तु ॥ २६३० ॥ जम्हा उ अवोच्छिती सो कुणई नापचरणमाईणं तम्हा ललु अच्छे गुणप्पसिद्धं हषति णामं ॥ १ ॥ तित्यकरेहिं कयमि गणधारीणं तु तेहिं सीसाणं ततो परंपरेण आयमिगं तण जीयं तु ॥ २॥ ब य नामचरणे गणं तु जम्हा उ तेग बुद्धिपदं परं पहाणमेयं सचेसिं रायदेवाणं ॥ ३ ॥ इति एसऽमुलकप्पो जहाविही बचिओ समासेणं ठवणाकणं एतो वोच्छामि महाणुपुत्रीए ॥ ४ ॥ तिविहोठवणाकप्पो कुले गये चेत्र तह व संधे थे। एतेसि रुपयं वच्छामि जाणुपुत्री ॥ ५॥ कुलमेरेहिं गणेण व जा मेरा ठापिता भये नियमा सो कुलवणारूप्पो एवं गणे होइ संघे ॥१८२॥ ६ ॥ केरिया पुण बेरा कुलगणसंघाण होंति उ पमाणं ? भण्णइ गुणसू इणमो जेहिं गुणेहिं तु ते जुत्ता ॥ ७॥ कप्पाकप्पविहिष्णु सुत्तत्यविसारया मुतरहस्सा जे चरणकरणजुत्ता ते सुद्धनयाण उपमानं ॥८॥ कप्पाकप्पविहिष्णू सुतत्यविसारया सुपरहस्सा जे चरणकरणहीणा ते सुद्धणयाण मइया ॥९॥ नेवा खलु क (अ)जा असती परणहियाण पेराणं होणोषि सुसमिदो मज्झत्यो होइ उ पमानं ॥ २६४ ॥ कह पुण ठापिते ते उ पमाणं तु ते ठाणे कुलगणसंघा पेरा ? मग इणमोनिसामेहि ॥१॥ इच्छंकारनित्तो पियधम्म तिन्ह कोइ एकतरो सो होति विगत्येरो तिमचरितवियाणओ वी (पी) रो ॥२॥ नाऊण गुणसमिदं जोगं तु कुलादिये ठाणस्स काऊणिच्छाकारं कुलादिनो बेति तो इणमो ॥ ३ ॥ उन्मे हो पमाणं कुरा राणोगं तु एवं तु कुलादीहिं तिगवेरा ऊ ठक्जिति ॥ ४ ॥ तिगचरितं जाणइति चरित मजायमेव एगडा तं तु तहाविहि जाण तिपि कुलादिणाणं ॥ ५ ॥ पासपोसकुसीलठाणपरिरक्खतो दुपक्वेषि सो होति निगत्येरो तिमथेरगुणेहिं उक्उत्तो ॥ ६ ॥ पासत्यादीठाने पती एस रक्खाओ होइ अहवा सति सदा (यससी) ए पासस्यादीचि पालेह ॥ ७॥ परिजने रागादि रखने साहुसाहुजिदुपले अहवा अप्पाण परे तिगधेरो संघधेरो उ॥ ८ ॥ एसो ऊ लिमयेरो तिमथेरगुणेहिं होति संपन्नो अडणा वीसुं वसुं कुलादियेरे पक्क्वामि ॥ ९ ॥ चरणकरणे समम्यो जो जन्य जदा कुलपहाणो । सो होइ कुलत्थेरो कुलपरियवियारओ धीरो ॥ २६५० ॥ पासत्यासन्नकुसीलठाणपरिरक्खतो दुपकखेवि सो होइ कुलत्ये कुलथेरगुणेहिं उडतो ॥ १ ॥ चरणकरणे समम्गो जो जत्य जरा गणपाणो । सो होइ गणत्थरो गणचरियवियाणओ बीपी)ओ ॥ २ ॥ पासत्यासन्नकुसी उठाणपरिरक्लओ दुफ्क्लेचि सो होइ गणत्वेरो गणयेरगुणेहिं उपउत्तो ॥ ३ ॥ चरणकरणे समग्गो जो जन्थ जदा जुगप्पहाणो । सो होइ संघधेरो सीनपरसमो पुरिससीहो ॥४॥ एसो उ मूलसंघों आपुच्छणगमणकरणसहित निस्सेसको कुलप्पणी देव ॥ ५ ॥ दंसणनामचरिते जा पुत्र परूवणाऽऽपरण्या व एसो उ मूलसंघो तिविहा मेरा करणजुता ॥ ६ ॥ विपि प विजा आयारादीसुविचारितं सम्ममापरतो बति तु संचों तहा बेरी ॥ ७॥ जो सो हीण परितो अण्णस्स असतीत पुष्ठभणितो कुहयेराति उज्जिति तस्वदेसो इमो होइ ॥ ८॥ हो पसणसंपतो सरीरमार्थकता अस हुओ वा । चरणकरणे असतो सुद्ध मगं परुविना ॥ १८३ ॥ ९॥ वस बाजीमादी मूलजरादी तु होइ आतंको घितिसारीरवलेणं हीणी असह मुणेयो || २६६० ॥ एएहि कारणेहिं अकम्पपडिलेवणं करेंलो | सुद्धा परुये अप्पाहणिया अजो एन्तो ॥ १ ॥ कापपणयस्त भेदा सोचा गया तब चेन्नूगं चरणकरणे विशुद्धे आवरणपरूवणं कुह ॥ २॥ आयरिसमासाओ सोचा गया य चेतुमत्येणं हियए क्वत्थयेउं आयरण परूषणा कुजा ॥ ३ ॥ कम्पपणगस्स भेदो परूविओ मोक्खसाहसाए चरिकण सुविहिया करेति दुक्खक्स्वयं धीरा ॥ ४॥ पंचविहमुत्तकप्पाण विभासा वित्यरं पमोत्तूर्ण गहिया सीसहिया अोच्छिलया चेव || २६६५ ॥ समूहमयी वामकरम्महियपोत्थया देवी। जक्लकुहंडीसहिया दंतु अधिग्धं माणं ॥ १ ५०॥ ) जैनसाहित्यसुधापानपीन श्रीपुष्यविजयजी विहितादर्शात्कीर्णमिदं पंचकल्यच्छेदभाग्यं सिद्धातिलहडकागत श्री आगममंदिरे वीरविमोः २४६९ मुनि दीपसागर पंचकल्प छेदसूत्र [५/२] 'मूल' परिसमाप्तः मूल संशोधकः सम्पादकश्च पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब किंचित् वैशिष्ट्य समर्पितेन सह पुनः संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागरजी [M.Com. M.Ed., Ph.D. बुतमहर्षि ~ 261~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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