SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध” – छेदसूत्र-४ (मूलं) ----------दशा [४] ------------------- --------------- मूलं [१५] + गाथा:||१-१७||--------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं प्रत सूत्रांक [१५] 49vig गाथा: ||१-१७|| अप्पकसाया जप्पनुमंतुमा संयमबहुला संघरबहुला समाहिबहुला अप्पमता संजमेण तवसा अप्पार्ण भाचेमाणा एवं वर्ण विहरेला, सेले भारपबोहणता, एसा सवेरेहि भगवहिन अहविहा गनिसंपया पणत्ततिमि । १५॥ गणिसंपदध्ययन ४॥ गुर्य में आउसनेणं भगवया एवमक्साय इह खलु थेरेहिं भगतहि दस चित्तसमाविठणा ०.कबरे खळू ते पेरे#ि०१. इमे खलु से दस चित्तसमाहिठाणा पं० २०. नेणं कालेणं वाणियगाम नाम नयरे होत्या एल्थ नगरपणजो भागियो, तस्मा वाणियगामनगरका पहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिमाए दृहपलासे नाम चइए होत्या वेश्यपणओ भाणियो, जियसनु राया, तस्स चारिणी देवी, एवं सावं समोसरणं माणिय जाव पुढपीसित्तापहए, सामी समोसदे, परिसा निमाया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया।१६। अजोति समणे भगर्व महापीरे समणे निम्नये निग्गंधीओ यामंतित्ता एवं पयासी-बह खलु अमो! निम्नयाण वा निर्माधीण वा इरियासमियाण भासासमियाण एसणासमियाणं आयाणभंडमत्तनिवसेवणासमियागं उबारपासपणलेलजलसिंघामपारिद्वापणियासमिया मणस पण कायः मणगुत्तामं वयगुवा कायगुत्ताण गुत्तिदियार्ण गुत्तमवारी आपट्टीचं आयहिया आयजोईण आयपरकमार्ग पक्खियपोसहीए सुसमाहीपत्ता नियायमाणानं इमाई वस चित्तसमाहिठामाई असमुप्पणपुलाई समुष्पजिला.. धम्मचिता चा से असमुप्पण्णपुषा समुपजेजा सर्व धम्म जाणेनए, सणिणाणे वा से असमुष्पापुरे सपुष्पाजेना अहं सरामित्ति अपणो पोराणिर्थ जाई सुमरितए, सुमिणसणे वा से असमुषणचे समुपओज्जा आहातचं सुमिणं पासित्तए, देवदसणे वा से असमुप्पण्यापूर्व समुफलेजा दियं देविहिद दिवं देवजुरं वि देवानुमा पासित्तए, ओहिनाणे वा से असमुषणमुचे समुपजिजा ओहिणा लोपं जानित्तार, ओहिसणे वा से असमुप्पामुळे समुष्पजना ओहिना लोयं पासिलए, मणपणनाचे वासे असमुष्पग्णपुरे समुणनेना अंतो मणुस्ससेनेसु अढाइनेगु दीवसमुद्रसु स्त्रीणं पंचिंबियाणे पजनमार्ण मणोगए भाये जामेत्तए, केबलनाणे वा से असमुष्पग्णपुरे समुष्पजेणा केबलकर्ष लोपालोय जागेत्तए, केवलक्षणे वा से जसमुणणापुरे समुपजेजा केवळकर्ण लोयालोयं पासितए, केवलमरणे वा से असमुपण्णपुरे समुपनेजा समनुक्लप्पाहीचाएर 1१७'ओयं चित्तं समादाय, साणं समणुगासति। पम्मे ठिओ अविमनी, निशाणमभिगष्यति ॥१॥ण इमं विसं समादाय, मुजो लोयसि जायति।जप्पणो उत्तम ठाणं, सनीणाणेच जाणति। २॥ अहातचं तु सुपिन, सिप्पं पासति संबुडे । सर्व वा जोई वरति, तुक्सावा या चिमुचति ॥३॥ पंताई भयमाणस्स, विचित्तं सपणासनं । अप्पाहारस्त दंतस्स, या सनि वाइणो॥४॥ साकामचिरतरस, समतो भयमेवं । नबो से जोड़ी मवनि, संजयस्स तपस्सिणो॥५॥ नक्साऽयहडलेसारस, ईसणे परिसुजाति । उड्ई अहेब तिरिय च रा Sम समपन्सति ॥६॥ सुसमाइलेन्सस्स, अक्तिकस्स मिश्गो । सो चिप्पमुकस्स, आया जागति पमये ॥७॥जया से नाणावरगं, सवं होति खयं गयं । तया लोगमलोमत्र च, जिनो जापति केवली ॥८॥जया से दसणाचरणं, स होति खयं मर्च। तबो लोगमलोग च, जिणो पास केनली ॥९॥ पडिमाए विसुबाए, मोहणिजे वयं गए। असेसं लोगमोगच. पासति सुसमाहिए ॥१०॥ जहा य मत्थयसूई. दयाए हम्मते तले। एवं कम्माणि हम्मति, मोहणिजे सयं गए ॥११॥ सेणावतिमि णिहते, जहा सेणा पणास्सति । एवं कम्मापणसति, मोहणिजे सर्व गए॥१२॥ महीणो जहा अम्मी, सिजते से निरिधा एवं कम्मानिसीयते, मोहणिजे लयं गए॥१३॥ सुकमूले जहा से, सिच्चमाणे ण. रोहति । एवं कम्मा ण रोहंति, मोहणिजे लयं गए॥१४॥ जहा दडवाण बीमार्ग, न जायंति पुर्णकुरा । कम्मचीए वहा दाडे (३० सुबड्बेसु), न रोहति भकुरा ॥ १५॥ चिच्चा ओरालियं बौदि, नामयोनंच केवटी। आउर्य वेवपिनच, छिता मपति नीरए ॥१६॥ एवं अभिसमागम्म, वित्तमादाय आउसो ! सेणिसोपिमुपागम्म, आया सोहीमुबागए॥१तिमिलिसमाधिस्थानाध्यक्ष सुर्य मे आउतिर्ण भमरया एवमक्लायं-वह सलमेरोहिं भगवतेहिं इकारस उपासमपडिमाओं पं., कपराओ ललताओ मेरेहि मगवतेहि इकारस उवासमपरिमाओ पं.१.इमा खलनाजो रेहिं भगतिहि कारस उवासमपटियागो पं०1०-अकिरियावादी यापि भवति नाहियवाईनाहियपणे नाहियदिहीनो सम्मावादी नो णितियाचादी नोसंतिपरलोगवादी णस्थि इहलोए गस्थि परलोए णस्थि माया गरिय पिया पत्ति अरिहंता मस्थि पकड़ी गरिव बलदेवा परिष नासुदेवा गरिय नस्यापरिय नेखया णस्थि मुकदुकडाण करवित्तिविसेसे गो मुधिषणा कम्मा सुचिमकला भवंतिणो दुश्चिष्णा कम्मा दुश्चिष्णफला मति अफले करडाणपायए नी पच्चायति जीचा णस्थि निस्या गरिय सिद्धी, से एवंवादी से एवंपणे एवंदिही एवंदराममिणिनि? जानि भवति, सेब भवति महिछे महारंभे महापरिगाहे अहम्मिए अहम्माणुए अहम्मसेवी बहमिडे अधम्मक्खाई अचम्मपलोई अधम्मजीपी अधम्मपलानणे अधम्मसीलसमुदायारे अपम्मेण व वित्ति कणेमाणे बिहरहण जिंद मिंद विकत्तए अंतके लोहिवाणी चंडाला गुदा साहस्सिया उचंचणमायाणियडिफूडकवासानिसंपयोगबहुला दुस्सीला दुष्परिचया दुरणुणेया दुश्या दुष्पडियाणंदा निस्सीला निग्गुणा णिम्मेरा निप्पचनसाणपोसहोषपासी SI ९८२ दशायुतस्कंघच्छेदमूर्य स-5 मुनि दीपरजसागर दीप अनुक्रम [१५] अत्र दशा-६ आरभ्यते ~145
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy