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________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [१] दीप अनुक्रम [3] "जीतकल्प” - - छेदसूत्र -५/१ (मूलं) मूलं [...]] आष्यं [१४६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं __________ देति पछि बेन्ति अण्णत्य सोय ॥ ६ ॥ ण संभरति जो दोसे, सम्भावा ण व मायया पचक्ली साइए ते उ. माइणो उण साहई ॥ ७॥ जति आगमो व आलोयणा य दोणिवि सण त्रिपाई हुदैति उपच्छिलं आगमववहारिणो तम्स ॥ ८ ॥ जति आगमो य आलोयणा य दोष्णिवि समं विताई दिति ततो पच्छिलं जागमववहारिणो तस्स ॥ ९ ॥ को पुर्ण पायच्छिदाय अणरिहो व अरिहो वा ? भष्णइ इणमो पुणसू अरिहो जो वा अणरिहो उ ॥ १५०॥ अङ्गारसहि ठाणेहिं जो होतिऽपरिणिडिओ नलमल्यो तारिखो होति, हारं वदनि ॥ १ ॥ अहारसहि ठाणेहि, जो होति सुपरिद्वितो अलमत्यो तारिखो होति वपहारं क्वहरितए ॥२॥ अहारसहि ठाणेहि जो होइ अपतिद्वितो नऽलमत्यो तारिखो होति वचहा वहतिए ॥ ३॥ अङ्गारसहि ठाणेहिं जो होति सुपतिड़ितो अलमत्यो तारिलो होइ, पत्रहारं वहतिए । ४ वयछक कायक, अकल्पो गिहिभायणं । पलिक(गोयर ) णिसिज व्हाणे, मूसा अहार ठाणेते ॥ ५॥ परिविडियो परिणाया पतिड़ितो जो डिओ उ तेसु हुने अनि सोहि ण पाणति अहितो पुण अण्णा कुता ॥ ६ ॥ बत्तीस तु हिजो होइऽपरिणिडितो मत्था तारिसी होइ पवहार वलिए॥ ७॥ बत्तीसाए तु ठाणेहिं जो होनि परिणिद्वितो अलमत्यो तारिखो होति, बवहारं बबरिनए ॥ ८ ॥ बत्तीसाए उ ठाणेहिं, जो होति अपट्टितो मत्यो तारिसी होति वच्हारं वहरिए ॥ ९॥ बत्तीसाए तु ठाणेहिं जो होति सुपतिडितो अलमल्यो तारसो होति, वत्रद्वार वरिन ।। १६०॥ अडविहा गणिसंपय एकेका चउचिहाउ बोदवा एसा खलु बत्तीसा ते खलु ठाणा इमे हाँति ॥ १॥ आधार मुय सरीरे वयणे वायण मती पतोगमती । एने संपया अमिया संगपरिणा ॥ २॥ एसा अडविहाल एकेकाए चडब्बो मेदो इणमो उ समासेणं वोच्छामी आणुपुथ्वीए ३॥ आयारसंपयाए संजमधुवजोग जुन्या पदमा वितिय असंयाहिया जणिययचित्ती भरे ततिया ॥ ४ ॥ तत्तो य वुडसीले आधारे संपया चउदेसा चरणमिह संजमो तू तहियं शिवं तु उपउत्तो ॥ ५ ॥ आयरिओ अ] स्यनत्र सिजमाइएहि व मदेहिं जो होति अणुस्सितो सो तु असंपाहीउति ॥ ६ ॥ अणिययचारी अणियतविली अग्रिहो य होति जो अणिसोयिसहायच गावोइडसीलोनि ॥ ७॥ बहुत परिजितसुते विचित्तमुत्ते य होति बोद्ध घोसविशुद्धिकरे या चउहा सुतसंपदा होति ॥ ८॥ बहुत जुगप्पहाणे अभ्यंतर बाहिरं च जाणे होति चहाणा चारिपी सुचयं तु ॥ ९ ॥ सगणामं व परिजितं उकमकमयो बहुवि कमेहिं ससमयपरसमएहि उस्सग्गऽववातयोविवि(जितं ॥ १७० ॥ पोसा उदानमादी हि पितुपोपरिद्धं एसा सुतोत्रसंपय सरीरसंपयमतो बोच्छे ॥१॥ आरोहपरीणाहो तह य अणोत्तपया सरीरस्स परिपुष्णिदियमाय संघतणथिरे व बोदो ॥ २॥ आरोहो दिप विभो होति नितिया (पिलया) चेत्र आरोहपरिणाहो य संपया एस नादव्या ॥ ३ ॥ तपु लजाए धातु अणिजो अहीणसव्वंगो होति गोपख अि कहंदी] तु परिपुष्णो ॥ ४॥ पदमादीसंघयणो बन्दियसरी थिरो मुजे एसा सरीरसंपय एतो वयणम्मियोच्छामि ॥ ५॥ आएन महवयणे अणिसियत्रयणे नहा असंदिदे ।' आदिन को अत्यवगार्ट भने महरं ॥ ६ ॥ अहवा अफरसचयणो खीरासदलदिमादिजुतो वा जहवा सूसरम्हगगंभीरजुओ महत्वको ॥ ७॥ णिम्सिओं को हादीहिं रामोसेहि वाजं पय होति अणिस्तियवयणो जो पयती एयवहरितं ॥ ८॥ [असं] अडतं अत्यमहुता व होति संदिद्धं विवरीयमसंदिदं वयणेसा संपदा चहा ॥ ९ ॥ वायणभेदा चतुरो सिमा समुहसणओ व परिणित्रिया बाए जिवणा चेव अत्यस्स ॥ १८० ॥ तेन गुणेणं तू वायच्या परिक्लितुं सीसा उदिसई विजिणे जे जस्स तु जोग तं तम्स ॥ १ ॥ अपरीणामगमादी वियाणिमभाषणे ण वाएति जह आममहियपडे अंबे व नए खीरं ॥ २॥ जदि छुम्मई विणस्सति णस्सति वा एवमपरिणामादी गोहिस्से छेद समुखियाऽचि तं चेत्र ॥ ३ ॥ परिविविया बाए जत्तियमेतं तु तरति तुपे जागवितेणं परिजिएं ताहृष्ण उद्दिसति ॥४॥ जियो अन्यस्सा जो उपजाति अत्यो गुत्तस्स । अत्येविहित अत्यपि कति जं भणितं ॥ ५ ॥ महसंपय चडभेदा उग्गह ईहा अवाय धारणया उमाहमति उम्मेता तत्य इमे होति उम्मेया ॥ ६ ॥ विखप्य वा मिस्सित तह य होयऽसंदिदं जोगिण्हति एपीहा अवायमिति धारणा चैव ॥ ७॥ परवाइण सिस्सेण व उच्चारितमेतमेव ओगिन्दे तं विप्पं बहु पुर्ण पंचछवसन यसता ॥ ८ ॥ बहुविऽपचारं लिहति पहारए गणेऽचिय अक्वाणगं कहेति इ सहसमूहं वऽणेगविहं ॥ ९ ॥ णवि विस्सरइ पुर्व तं अनिस्सियं ण पोत्यए लिहिन अणुभासिय हति निस्संकित होअसंदिदं ॥ १९०॥ उग्गहियस्स तु ईहा ईहिए पच्छा अनंतर अचायो अबगते पच्छा धारण ईय विलेसो इमो नवरे ॥ १॥ बहु बहुवि पोराणं दुद्धरति नहव असंदिदं । पोराण पुरा वजितं दुदर गयभंगविला ॥२॥ एतो उपयोगमती पबिदा होति आणुपुडीए आय पुरिसं च तं वत्पुपि पतंजए वातं ॥ ३॥ जाणति पयोग मिसजो वाही जे णाऽऽउरस्स छिनति । इय वाज व कहा वा जियसत्ती गाउ कातव्या ॥ ४॥ पुरिसं उदासगाई अवावी जाणगाइयं पुरिसं पुष्षां तु गयेऊन ताई बाओ पाउलो ॥५॥ नं १०१३ जीनभायं - मुनि दीपरजसागर ~ 159~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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