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________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [१] दीप अनुक्रम [3] "जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं) - मूलं [...]] आष्यं [१९६] - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं __________ मालमाई अवा वा साहुमाचियं जं तु जाऊन तहा विहिना बाजो हु तहिं पठत्सब्वो ॥ ६ ॥ वत्युं पुन परचाई बहुजागमिओ न मावि नाऊणं राया व राममबो दारुणभहस्तभावो या ॥ ७ ॥ एसा उपयोगमई एसो मोच्छामि संग्रहपरिष्वं साथि य चव्विगप्पा तीय विभागो इमो होइ ॥ ८॥ बहुजनजोगं पे खेतं वह पीढफलयोगव्हे। बासागु एते दो काले य समाणए काले ॥ ९ ॥ पूए अहागुरुपिय पडत्य एसा उ संग परिष्मा एसो एकेकीय व इमा विमासा मुणेयच्या ॥ २०० ॥ वासे बहुजनजोगं विस्थिन्णं जं तु पायो मां । पडिले बालदुम्बलगिलाणमादेशमादीनं ॥ १ ॥ सेसे बस व गहिसा वाहे गच्छति ते अन्त्य पीढफलगहने व उ महलती निसिजारी ॥ २ ॥ वासामु बिसेसेणं अ कालं तु गमयअन्त्य । पाणा सीयलकुंयादिजा यतो गहण वासासु ॥ ३ ॥ जं जन्म होति काले काय ते समान तम्मि सज्झायपेह उबही उप्पायनमिक्त्वमावी तु ॥ ४ ॥ अहगुरु जे पावित्र तु जस्स व अहीत पासम्मि अहा अहागुरुल हवंति रातिनियतस्था ॥ ५ ॥ तेर्सि अम्मुडाणं दण्डा तह व होति आयारे। उवहीच्हणं विस्तामणं च संपूणा एसा ॥ ६ ॥ एसा खलु बत्तीसा जाणति जो सो पतिद्वितो एवं पहारे अलमत्यो अहयादि मये इमेहिं तु ॥ ७॥ छत्तीसाए तु ठानेहिं, जो होयऽपरिमिडिओ मलमस्यो तारिलो होति ॥ ८॥ छतीसाए उठाई जो होति अपतिडितो मलमत्यो तारिखो होति बचहारं वचहरिए ॥ ९ ॥ छत्तीसाए उ ठाणेहिं जो हो परिणिहितो जलमत्यो तारिखो होति, बहारं वहति ॥ २९० ॥ छत्तीसाए उ ठाणेहिं जो होइ सुपहडिओ अलमत्यो वारितो होति बबहारं महलिए॥ १॥ जा होती बत्तीसा सम्मी छो विजयपडित चतुमे तो होती छत्तीसा एस ठाणाणं ॥ २ ॥ बत्तीस वणिय थिय वोच्छे उमेय पिडिवलि जायरिथतेवासी जडू विमता मये गिरिणो ॥ ३॥ आधारे सुल विए विविणे व होति बोदडो दोसस्स य निग्धाओ विजए चउस पविती ॥ ४ ॥ जायारे विषय व चविहो होति जानुपुत्रीए संजमसामापारी तवे व गणिविहरणा ये ॥ ५ ॥ विहारे या सामायारी य एस चहा तु एते तु विमार्ग वोच्छामि जहानुपुत्री ॥ ६ ॥ संयममायरा सतं परं च गाइड संजम नियमा। सीयंतथिरीकरणं तचरणं उप ॥ ७ ॥ सो सतरसो ढालियाण पट्टपरियाषणोदवणं परिहरिय नियमा संजमया एस बोद्धया ॥ ८ ॥ पहले ये पोसहेतुं कारेति तर्ष सतं करोतिऽचिय। मिक्लायरियाय ता निर्युजति परं सर्व पाषि ॥ ९॥ सम्यम्मि बारसविहे निजति परं सतं उज्जमति गमलामायारीए गणं दिसीयंत चोएति ॥ २२० ॥ पडिले पक्लोटणालगिलानाइवेय सीठा (छाती जुतो तु एए ॥१॥ एगविहारावी पडिमा पडिए सतं पणं पडिका एवं अप्पा परं च विणएति ॥ २ ॥ जायारविनय एसो जरूर्मपणजो समासेणं एतो उ सुतविजयं जहानुपुच्चि पथक्खामि ॥ ३॥ सुतं अत्यंत हितकर मिस्लेसणं च पाए। एसो चउनिहो ल सुतविणतो होति पायच्यो ॥ ४॥ सुतं गाति जुलो अत्यं च सुनाए पयतेनं जं जस्स होति जोग्यं परिणामममादितं तुहियं ॥ ५ ॥ निस्सेसमपरिसे जाब समतं तु ताय पाएति। एसो सुनियो खलु यो विषवणावियं ॥ ६ ॥ अहिं दिख विहं साहमियत्तचिणं तथम्म ठाव घम्मे तत्सेव हित अम्मु ॥ ७ ॥ विष्वाणाभावमिति विवरण' चिलिनु परसमया ससमने गमभष्मे अद्विधम्मं तुदिता ॥ ८॥ धम्म सहायो सम्महंस जेन पुति म उ लई सो होगा विपुण्यमिव ॥ ९ ॥ जह मायरं व पियरंमिच्छापि गा सम्म विद्धं पुष्यं सावग साहम्मि करे पचाये ॥ २३० ॥ धम्मो धम्मो परितम्माओं इंसनाओं या संठावेति तर्हि चिय पुणोषि धम्मे जहि ॥ १ ॥ तस्सली तस्सेव ऊ मिस्स हेतु बारेऽसादी मिह स हिता ॥ २॥ लोए या हितं तं वर्म मुनेत विरसेयस मोक्लो तु अनुगामनुगच्छए जं तु ॥ ३ ॥ विश्लेषणचिणएसो जमे बणितो समासेणं एतो तु परस्वामी विषय दोसान जिन्याते ॥ ४॥ दोसा कसायमाई बंधो अहयादि जट्ट पथडीजो। निययं वयं वा पाय विनासो य एगट्टा ॥५॥ रुट्ठस्स को विणण साय दोसविनय जंतु कंलियकंतु जायननिहाल उसा ॥ ६ ॥ सीयपरम्मिन दाई मंजुललो वजह व उरगविसं टुस्स तहा कोई पविजेती उपसमेतिति ॥ ७॥ दुट्टो कसायविसयाइएहि मामपय (जेम) माडो या तस्स परिने दोतं मासपर पसर वति ॥ ८॥ कंवा उ मलपाणे परसमए अहब कंल एमाई। तस्स पविणे केलं संलडि अन् य देसेणं ॥ ९ ॥ परगाइमाइए तु अहिंसमक्लो अस्थि जा कला उकारनेहिं विजय जह होइ किलो ॥ २४०॥ जो एएस ण वह कोई (कमिषि) दोसे तब खाए सो होति सुप्यनिहिजो सोमणपरिणामत्तो वा ॥ १ ॥ छत्तीलेयाणि ठाणाणि भणितात जो कुसको एहिं तो वहा समस्यातो ॥ २॥ अङ्कद्दि अट्टारसहि यदसहिय ठाणेहिं जे अपारोक्सा जालोयनदोसेहिं उद्दि व अपारोक्स विन्नेया ॥ ३ ॥ आलोयणागुणेहिं छहिं य ठाणेहिं जे अपारोक्खा । पंचाहि य नियंठेहिं पंचहि य चरितमहिं ॥४॥ अट्ठायारवमादी वयछकादी हति बरस इसविपायच्छिते जालोयणमादिए देव ॥ ५ ॥ जालोनोसेहिं आकंपनमाविहि १०१४ जीतकल्पभाष्यं - मुनि दीपरलसागर ~ 160~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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