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________________ आगम (३७) प्रत सूत्रांक [१९] दीप अनुक्रम [३६] - “दशाश्रुतस्कन्ध” – छेदसूत्र- ४ अत्र दशा- ७ आरभ्यते (मूलं) दशा [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३७], छेदसूत्र [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं - - ~ 147 ~ --- मूलं [१९] गमिनिषिद्धे आपि भवति से भवति महिच्छे जान उत्तरगामिए नेरइए पक्लिए आगमेसा सुलभवोहिए याचि भवति से तं किरियवादी १९ सम्म याचि मचति तस्स बहू सीलगुणत्रयवेरमणपबक्लानपोसोक्साईनो सम्मं पचितपुवाई भर्चति एवं साओ पदमा उचालगपडिमा २० जहाचरा दोना उपासगपडिमा धम्मपा भवति तस्स बहू सीलवयगुणवयवेरमणपञ्चवाणपोसहोवपासाई सम्मं पविताई भवंति से णं सामाइयावासिय नो सम्म अणुपालिता भवति, दोबा उपासगपडिमा । २१ । अहाचा तथा उदासगपडिमा सबधम्म वापि भवति, तस्स णंबई सीलवयगुणश्रमणपचखाणपोसोवासा सम्म पट्टपिता मति से नं सामाइयदेसावासिय सम्मे अनुपालिता भवति से गं चउदसमीउदपुण्णमासिणीस परिपुष्णं पोसहं नो सम्मं अनुपालेता महति तथा उपपडिमा २२ अहावरा पडत्या उपासगपडिमा सह धम्मरु याचि भवति, तस्स में बहू सीलन जान सम्म पचिता मति से सामाइयावगाशिवं सम्मं जपाला नवह से चारसमिरिपुष्पमासिणीस पडि पुष्णं पोसहं सम्मं अनुपालेला भवति से एमराइयं उपासगपडिमं नो सम्म अणुपालेला भवति, यत्या उपासगपडिया २३ अहावरा पंचमा उदासगपडिमा सह भवति, तस्स बहु सीलवय जाय सम्म अणुपालेला ( पडिलेहियाई) भवति से णं सामाइय राहेव से पाउदसि सहेब एगराइयं सम्यं अणुपालेता भवति से अभिणाणए विडभोई मलिकडे दिया भवारी रति परिमाणको से एारुणं विहारेण विहरमाणे जह एमा वा दुवा वा तिया वा उकासेणं पंच मासे विहरिला पंचमा उपास डिमा २४ अहाराझ उपासगपडिमा सबधम्मकई याचि भवति जान से में एमराइयं उपासमपडिमं अणुपालिता भवति से णं असिना विडभोई लीक दिया था ओवा बंगारी, सविताहारे य से परिणाए न भवति से र्ण एयारूपेणं विहारेण विहरमाणे जह० एवाई या दुबाई वा जान उको छम्मासा विहरिजा, छडा उपासगपडिमा । २५ । अहावरा सप्तमा उदासगपडिमा सम्म यानि भवति जाय राज वा नयारी सचिताहारे से परिणाए भवति जारंगे से अपरिणाए भवति से एयारूपेणं विहारे परमाणे जह एमा वा दुपाई वा जान उको तल मासे निहरिजा, सत्तमा उवासमपडिमा २६ जरा अट्टमा उपासपटिमा समस्यावि भवति जाय राजो या भारी समिताहारे से परिणाए भवति आरंगे से परिणाए भवति, बेसारं य से अपरिणाए भवति से गं एयाणं विहारेण विहरमाणे जाएगाई वा दुबाई या जान उको अड मासा विहरि से जमा उपासपटिमा २७ अहावरा नवमा उपासगपडिमा सम्मयी यावि भवति जाय राज (राज) मयारी समिताहारे से परिणाए भवति जारंमे से परिणाए मवति पेसारं मे से परिष्णाए भवति उदिम से अपरियाए नयति से णं एषारूपेण विहारेण विहरमाणे जह एमा वा दुवा या जाउको न मासा हिरिजा से नवमा उपासगपडिमा २८ अहावरा दसमा उपासगपडिमा सम्म यादि भवति जाय उभिने से परिष्याए भवति से सुरमुंड वाला था स् आम (इ) इस्स वा समाभइस्स वा कप्पंति दुवे भासाज मासिए सं०-जाणं वा जान अजाणं वा नो जायं से णं एयारूपेण विहारेण विहरमा जएगा वा दुबाई बाउको दस मासा हिला दसमा उवालगपडिमा २९ अहावरा एकारसमा उपासगपडिमा सम्म जान उभिने से परिष्णा भवति से सुरमुंद वा तरिए या गहिया चारभंडगनेवत्ये जारिसे समणानं नियाणं पम्मे पं० तं सम्मं कारण कामाचे पालेमाणे पुरओ जुनमायाए पेमाणे दट्ट् नते पाणे उबर पाए रीएजा साहर पाए जा वितिरिष्ठं वा पार्थ कट्टु एजा सति परमे संजनामेव परमेा नोउयं गच्ा केवल सेना अभवति एवं से कप्पति नायविहिं एनए, तस्य से पुत्रार्णा चाउमिलिंग कम्पति से बालोद पडिवाहितए नो से कप्पड़ मिलने पडिगाहित्तए तत्य से पुवागाउने मिलिंग उचाउ पति से मिलिंगसूचे पडिगाहिलाए नो से कप्पति पाउलोद पडिगाहिलए तस्य णं से पुष्वागमणे दोषि पुढाउलाई कम्पत से दोषि परिमाहिलाए, तब से पुणे दोन पच्छाउलाई नो से पति दोष परिमाहिनए तत्व जे से शाम उसे कप्पति पडिगाहिए. जे से तस्य वागणं पच्छाउने नो से कप्पड़ पडिगा निएतत् गाहाकुलं विपडियाए अनुपविस कप्पद एवं वलए समणोपासगस्स पडिमा भिक्लं इलय एवा हिरेहरमा के पासिता आउ तुमत्त लिया समोवास पडिमं पडिवजिते जमसीति सिवा से एारुणं विहारेण विहरमा जएगा वा दुयाई वा नियाई वा उक्को एकारसमा विरेना. एगारसमा उपासगपडिमा एताओ ताओ रेहिं भगवतेहि एगारस उपारागपडिमा पण्णत्ताओतिमि ३० ॥ श्रपपतिमाध्ययनं ६ ॥ सूर्य आउ भगवा एवमनखायें- इह तु पेरेहिं भगवते वारस भिक्खुपडिमा पं० कपराओ खलु ताओ जाप ०१ इह वा मासिया मिस्तुपडिमा दोमासिया भिक्खुपडिमा [तिमासिया भिक्खुपडिमा चडमालिया पंचमासिया उम्मासिया सत्तमालिया पढमा सतराईदिया दुधा सतराईदिया तथा सतराईदिया अहोराई (२४६) ९८४ दशनच्छेदसा-89 मुनि दीपरत्नसागर ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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