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________________ आगम (३७) “दशाश्रुतस्कन्ध" - छेदसूत्र-४ (मूल) ---------- दशा [७] ---------------------------------------- मल [३१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३७], छेदसूत्र - [४] "दशाश्रुतस्कन्ध" मूलं प्रत सूत्रांक [३१] KIरिया एमांदिया निक्सुपडिमा।तामासिवन निरुपहिम पहिचस अगमारस्म नि बोसहकार चियत जे जसमा उपजति --दिशा ना माणसाला तिरिक्त जोणिया वा ते उप्पणे सम्म सहति समति तितिक्रति अहियालेति, मासिय मिक्सुपडिम पढिवण्यास अणगारस्स कप्पड एगा दत्ती भोषणस्स पडिमाहितए एगा पाणमस्स, अण्णाउंछ सुद्धोपहर निहिता बहवे उपपवउपपसमणमाइणअतिहिकिविणपणिमगा, कप्पा से एगस्स मुंजमाणसा पढिगाहित्तए, गो हुई जो निष्ई यो चउई को पंच जो गुपिणीए पो चालवच्छाए णो दारग पेजमाणीए नो अंवो एनुयस्त दोषि पाए साहद वलमाणीए नो बाहि एलयास दोवि पाए साइर इलमाणीए. एणं पाए अंतो किवा एणं पार्य बाहि किया एल्यं चिपसंभाला एवं दलपति एवं से कम्पति पतिमाहितए,एवं से नो बलबति एवं से नो कम्पाइ पडियादितए, मासिय न मिषसुपडिम पडिषण्णस्स अणगारस सओ गोयरकाला ५०० आदिमे मज्झिमे परिम, आदि घरेजा जी मनो चरिना को चरिमे परिजा, मो चरेना नी आइ परेजा नो चरिमे परेजा, परिमं चरेजा नो आविर्म 151 चरेजा नो मजमे चरेना, मासिय भिक्खुपडिम पडिवण्णास्स अणगारस्स बिहा गोयरचरिथा ५००पेला अवपेला गोमुत्तिया पर्वगवीथिका संयुकासा गर्नुपश्चागया, मासिब भिक्खुपडिम पडिवण्णस्स अणगारस्स जस्य केद्र जाणति कप्पा से तत्व एगराइयं नासित्तए, जत्य केह न जाणइ से कम्पति तत्य एगरार्य का तुरायं वा वसितए, नो कप्पा एगरायाभोवा दुरापाओ वा परे पत्याए, जसरथ एगरायाओचा दुरायाओ वापरं वसति से संवरा छेदे या परिहारे पा, मासिन भिक्सुपदिम पडिवणस्स कप्पति पत्तारि भासाबोल भासित्तए २० जायणी पुच्छणी अगुणवणी पुदस्स नागरणी, मासियं णं मिक्सुपडिमं पढिवण्णस्स० कप्पति तो उपस्सगा पडिलहितए ने अहे आरामगिहसि वा अहे चियाडमि. हसिवा अहे रुक्समूलरोहंसिया, मासियं णं भिक्षु० कप्पन्ति तो उपस्सगा अणुग्णवित्तए २०-अहे आरामगिह अहे चिवडगिह अहे रुक्लमूलागिह, मासिया कणा ताओ उपस्सया उपायमापित्तए ने चेष, मासिय गं. कापहनजी संचारमा पडिलेहित्तएन०- पुढीसिलं ना कहसिलवा जाहासंघहमेष, मातिय मिक्सुपडिम पडिवण्णस कप्पा तो संघारा अणुव्योत्तएर, मासियंकापति नजओ संधारा ओचायणावित्तए ने चेच, मासियं० इत्थी उवस्मयं उपागछिना से इत्थी एवं पुरिसे गो से कप्पा तं पच निपसमित्तएका परिसि. नए पा, मासिर्व जाच पडिचण्णास्त के उपस्सर्य अगणिकाएण सामेणा नो से कप्पड़ तं पटुब निक्समित्तए वा पविसित्तए वा, तत्व के धाय असि नहाय आगच्छेजा जाब FI से नो कप्पर पहुच आलंपित्तए पा पलंबितए बा, कापड से आहारिक रीइनए, मासिय मिक्युपडिम जाच पासियावा करए वा हीरए पा सकरा वा अणुपक्सेिजा नो कपद से नीहरितए वा विलोहितए वा कम्पा से आहारिय रीइतए, मासियं णं जाप अपिंकसि वा पाचाणि वा पीयाणि वा रए वा परियावनिजा नो से कम्पनीहरितएवापिसोल हिनए वा, कम्पह से आहारीय रीइनए, मासियं जस्षेत्र मृरिए अत्यमेज नरव जलंसिया पलंसि वा दुम्मसि वा नियंसि वा पश्यसि चा विसमंसि वा गडाए या वरीए पा कप्पड से तं रणितस्येव उपायणापितए, नो से करपा पदमवि गमित्तए, कप्पह से कल पाउपनायाए रयणीए जाच जलते पाईनामिमुहसा वा वाहिणाभिमुहस्स वा पडीणामिमुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स या आहारीय रीइनए, मासिय पं० नो कप्पा अणंतरहियाए पुढवीए निहाइनए वा पयलाइए पा, केवली प्या-बादाणमेयं, से तत्व निहायमाणे पार पवलायमाणे वा हत्येहि भूमि परामसेजा अहाविधिमेव ठाणं ठाइत्तए निक्लमित्तए वा, उचारपासवणेर्ण उम्बाहिजेजा नो से कापड ओगिव्हित्तए, कप्पह से युज्यपडिल्लेहितए थशिले उचारपासवर्ण परिडवित्तए, तमेष उपाय आगम अहापिचि ताणं ठाइत्तए, मासियानो कप्पा ससरक्वेहि पाएदि (काएहिंघ.) गाहापात भत्ताए वा पाणाए वा नि० पवि० जह पुण एवं जाणेजा-स सरक्ले से अत्ताएपा जाएनाए वा मालनाए वा पंकनाए वा विदत्य परिगए) कप्पा गाहापरकुलं मनाए पा पाणाएगा निक्स पवि०, मासिय नोकच्या सीओदगाषिवदेण वा उसिणोदगविषटेण वा हत्याणि वा पापाणि वा इताणि वा अच्हीणि या मुई वा उच्छोलिलए या पचोपित्तए वा गण्णास्थ लेवान्लेवेण वा, मासियं ० नो कप्पड आसस्स वाहत्यिसमा गोणसना महिसरसा फोहत्सवासानस्सा (कोलसुणगस्सा)सवा पायरसना आवमानस्सा पदमपि पचोसफितए, जइस आपनमानसकन्यति जगमित्तं पच्चोसकिनए, मासिय शं नो कप्पा छापाओ सीपति उष्टं इत्तए उच्हाओ उहंति नो छार्य एत्तए, ज जत्थ जया सिपा ने तत्व अहिवासए, एवं स्खल एसा मासिया | मिलनुपडिमा अहासुर्त अहा अहामम् अहान सम्र्मकाएगं फासिता पालिता सोहितातीरिता किहिता जाराहिता जागाए अणुपालित्ता भवति । ३२।दोमासियं णं भिक्युपडिम नि बोसहकाए तंत्र जाप दो दली. तिमासियं निषिण दलीओ चाउमासिय- चनारि वत्तीओ पंचमासियं पंच उनीओ उमासिब छ बत्तीओ सत्तमासियं सत्त दनीनो, जस्थ जत्तिया मासा तत्य तत्तिया बत्तीओ।२३। फार्म सत्तराईदियं णं मिक्लुपतिम पडिवाणस्स अणगारस्स नि बोसिहकाए जाप अहिवासेक कप्पा सेवउत्र्ण ९८५ दशाभूतस्कवच्छेदमूर्व -9 मुनि दीपरलसागर अनुक्रम [४८] ~148~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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