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________________ आगम (३९) དྡྷིཙྪིཡཱ + ཛཡྻཱཡྻ ||१२३|| [८२४] “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं ) अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [-], · मूलं [१८] + गाथाः || १२३|| - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं ---------- - ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ ~ 292 ~ - नकुलुप वा से गोयमा जे केई आयरिएह वा मयहरएइ वा गीयत्वे वा जगीयत्वे वा आयरियगुणकलिएड या मयहरगुणकलिए वा भविस्सापरिएड वा भविस्समयहरएड वा लोभेण वा गारवेण या दोन्हं गाउपसयाणं अभ्यंतरं पडावेजा से गोयमा पक्कमियमेरे से णं पयणवनिकारए से णं तित्यवोच्छित्तिकारए से णं संपत्तिकारए से यणाभिभूए से णं अदिपरलोगपबनाए से णं णायारपरिने से णं अजवारी से णं पा लेणं पायपाये से णं महापावपावे से णं गोषमा अभिग्गाहियचंद कूरमिच्छादिडी १८ से भय के अर्ण एवं बइ, गोयम! आयारे मोक्तमगे णो णं णायारे मोक्खमग्गे एएणं अडेग एवं वुबई से मय कमरे से र्ण आधारे कमरे वा से णं अथाबारे ?, गोयमा! आयारे आणा, अणायारे गं नप्पडिवक्खे, तत्य जेणं आणापडिक्क्ले से णं एतेणं सङ्घपयारेहिं सहा बजाणिजे, जे गंणो आणापडिया से एगणं सपयारेहि सहा आयरणि नाणं गोपमा जं जाणिजा जा एस णं साम राजा से सावित्रा १९ से भय कह परिक्खा, गोयमाणं जे केइ पुरिसेइ वा इत्थियाओ वा सामर्थ परिवसिकामे कंपेज्जा या परहरेज पा निसीएज्जा उटि वा पकरेज्ज सगणे वा परगणे वा आसाएड वा साए वा तदहुतं गच्छेज्जा वा अलोइन वा फ्लोइज्ज वा सगह दोइजमाणे कोई उपाए या अहे दोनमने वा भला से णं गीयन्ये गणी अन्नयरे वा मयरादी महया नेउन्नेणं निरूवेजा, जस्स नं एयाई परं तजा से गं को पद्मावेजा से गुरूपडिणीए विजा से णं निम्मसब भजा सम्या से पधारे केवल एगते अकरणजए भवेजा से जेवावा व विणेण वा गारचिए भवेज्ञा से नं संजईम्स चउत्पचपडणासीले भवेज्जा से बहुरुवे भवेजा | २० से भयवं कमरे से बहुरूपे युद्ध ? जे आसन्नविहारीणं ओसने उज्यविहारीणं उपधिहारी निद्धम्मसबलाणं निद्धम्मसकले बहुरूपी रंगगए चारणे इव गडे 'खणेण रामे यखणेण लवणे, खणेण दसगीवरावणे लगेणं। टप्पयरकनदंतुरजराजनगर सर्वच भरिए विदू ॥ १२३ ॥ खणेणं निरियं च जानी, मंनकेसरी जाणं एस गोषमा तहा णं से बहु ॥ १२४ ॥ एवं गोवमा जे असई कमाई केइ चुकखलिए पढावेजा से णं दृरदाणवपहिए करेजा से णं सन्निहिए गो घर से आयरेगणी जावेजा से णं मनोवगरणे नो पहिनेहा से न सत्यं तो उदिसेज्जा से तस्स गयसत्यं नो अणुजाणेला से णं तस्स सर्दि गुज्रहस्वा णो मंतिया एवं गोयमा जे केई एदोसविप्यमुक्के से णं पाजा नहा नं गोयमा मच्छप अनारियणी पवावेज्जा एवं सामु न पडावेजा एवं गणना एवं विग एवं विकपियकरचरण एवं छिन्नकन्ननासी एवं कुवाहीए गन्न्रमाणसह एवं पंग सूयबहिरं एवं अकडकार्य एवं बहुपास एवं पणरामदास मोहमिच्छनमनत्यवलियं एवं उज्झितयं एवं पोराणनिक्स एवं जिनालगा इव देवचीकरणभौयं परं एवं चरणन (मार) चारण एवं बज चरणकर मज जडकाणी पाज्जा एवं तु जा नामहीण धामहीन जाइहीणं कुलहीणं बुद्धिहीणं पन्नाहीणं गामउमपहरे या गामडहर वा अपचा निदियामीजाइयं वा अविनायकुसहा गोयमा स दिखेोपावा एएसि तु पया अन्नपरपए खलज्जा जो सहसा देणपुषकोडीन गोयम २१ एवं हनिपातं तहब (ज) जहा (भणियं) स्यमनमुको गोयम! मुक्लं गएऽर्थतं ॥ १२५ ॥ गच्छेति गमिस्संतिय समुरासर जगणमंसिए धीरे भुकपापजसे जहणिवगुणहिए गणिनी ॥ १२६ ॥ से भयवं जे पी कई मुणियसमयसम्म होल्या चिहीएड वा अविहीएड वा कस्स रामंधम्मस् वा उनीसहित सप्पमेयनानदंसण चरिततीरियाचारस्सामाणसा या बायाएका कारण वा कहिचि अक्षरे ठाणे के साहिबई जायरिए वा तदपरिणामेव होता अस पोकेज वा खवा]माणे या अणुमा वा से आहगे उषा जणाराहगे ? गोयमा अणाराह से भवयं के अड़े एवं पुबइ जहाँ गं गोधमा अगाराने गोयमाणं इमे दुवा] सुनाने अणय अणानि सम्भूयत्यपसाने अणाइससिदे से णं देवददा अतुलवीरएसरियसत्तपरकममा पुरिसायारके तिदितिलाच साइकल या अनागीण समुदाणं निवणं अणादसिद्धाणं अपना माणसमयसिज्जामाणार्ण अन्नेसि य आसन्नपुरकडाणं अनंताणं सुमहिनामधेनार्थ महायसाणं महासत्ताणं महाणुभागाणं तिषणिक लोकनाहाणं जगपचराणं जमेकपूर्ण जगगुरूणं णं सद रिसी परवश्यम्मतित्राणं अरहंताणं भगवंताणं भूयभविस्साईयणागपट्टमाणनिखिलासेसक विदियसम्भावार्ण असहाए पर एक सेणं सुननाए अन्थनाए बनाए सिपि में जडिए वपन्न जड़िए पनि जहडिएव मासज्जे जड़िए चैव वाणिज्जे जहडिए रुज्जिहड़िए चैव वायर जडिएकहज्जे से में इसे दुवाल चिपि पि ददाणं णिखिलजमचिदियस सजग आग (इति) हासबुद्धिजीचाइतले जानए वत्सहाचा अणिजे अइक्कमणिज्जे अणासायनिज्जे नहा चेपइमे दुवासंगे सुचना सहजगज्जीपण भूयसत्ताणं एते हिए महे समे नीसेसिए जणुगामिए पारगामिए पसत्ये महत्वे महागुण महाणुभावे महापुराणुचिन्ने परमरिसिदेखिए दुक्लक्लवाए कम्मक्खयाए मोक्खयाए संसारुनारयाएनिकट उपसंपरिजनानं विहरिं किमुतमन्नसिंनि, नागोयमाणं के अमुचियसमयसम्भावे वा विश्यसमयसारे वा अविहीएड वा गच्छाहिवई वा आपरिएड या अंतोविदपरिणामेव होत्या. गच्छावारमंडलमा उत्तीसही आगारादि जाव णं अरवा आ गाइकरणिजरस पत्रयणसारम्स असती चुके वा खले या ते गं हमे बालसंगे सुचनाणे असा पथरेजा, जेणं हमे दुवासंगपणाणनिवदंतरोग एवं पयअक्वरमपि अमहा पयरे से गं उम्म पसेजा, जेणं उम्मग्गे पपसे से थे अणाराहगे भवेज्जा, ता एएवं अद्वेणं एवं बुवाई जहा णं गोवमा एतणं अणाराह २२ से अथ कई जणमिणमो परमगुरुणपी अलंणिज्जं परमसरणं फुटं पड़े पदपय परमका कसिणकम्महदुक्खनिषणं पण अइमेज्जा पकमेज्ज वा पेज वा खंडेज्ज वा विराज्य या आसाइज्ज या से मणता वा वयसा वा कायसा या जाय णं पयासी १. गोयमाणं अपनेणं कालेन परिवमाणं संपयं दस अच्छे तत्थ असलेले अभ असंखेज्जे मिच्छादिट्टी असंलेज्जे सासायने लिंगमासीय सच्छंदत्ताए डंभेण सक्कारिते एच्छेए पम्मिगतिकाऊ पहने अकिलाने जणं पयणमरम्मति (२८६) १९४४ महानिशा मुनि दीपनसागर 1
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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