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________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [३५...] ------------- ------------- भाष्यं [१५६७] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [9/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [३५] श्रीप कण्णसमजाला। सत्तमए समतीया अणतरा होति सत्तमुवी ॥ ७॥ पारंपर पिहादिसु अगणीपट्टादि वत्य दोसा । भपणा तु जंतचुलिस इणमो तु नहिं मुणेयत्रो ॥८॥ पासोलित कडाहे परिसाटी गरिय तंपिय विसाल। सोविय अचिरच्दो उच्डरसो गाइउसिणो य॥९॥ गहणमघट्टिय कपणे घट्टित कारादिपडन अग्गिवहो। उसिणोदमस्स गुलरसपरिणामिय गहणणचुसिणा ॥१५७०॥ दुविह विराहण उसिणे उड्डण हाणी व भागभेदो या अचुसिणातोंण घेपनि जंतोलित्तेस जयणा तु॥१॥वाउक्खित्तागंतर पप्पडगादीतु होति । णाया। परिषइनिपूरिओवरिपनि ट्ठिय परंपर होति ॥२॥ हरियादि अणंतर पूरिया पारंपरे पिडमादी । गोणादिपिड पूवादर्णतरे भरगकुतिगितरं ॥३॥ सर्व ग कप्पएवं णिविसत्त समासतो समक्वान । पुटवादीण एनो आवसी दाण चोच्छामि ॥४॥ पुढवादी जाच तसे अर्णतवणकाय मोनु णिक्खिते। संति अजंतर लहगा परंपर होति मासलाई ॥ ५॥ चतुलहुए आयाम मासलह दाण होति पुरिमइटे। एवं सचित्तम्मी मणियं मीसे अतो चोच्छं॥६॥ एतेसु चेव पुढवादिएस मीसे अणंतरे लहुओ। होति परंपर पण दाणं एतो तु वोच्छामि ॥ ॥ लहुमासे पुरिमइडे पणगे पुण दाण होति णिविगति। वणकायमणंतेसु आवत्ती दाण वोच्छामि ॥ ८॥वणकायजर्णतेमु णिक्खित अणंतरे तु चलुगुरुगा। होति परंपरि गुरुओ दाणं तु अतो तुवोच्छामि ॥५॥ चतुगुपए तु चउत्थं गुरुमासे दाणमेगभनं तु । आवत्ती दाणंपिय पिहियम्मि अतो उ बोच्छामि ॥१५८० ॥ पिहिवार्णनाणंतरपरंपरे थेय होति गुरु पणगं। बहुपण तु परिने दोसुपि वाणं तु णिविगती॥१॥ आवत्ती दाणं या पुढवादीणिक्विवंत मणियं तु एनो समासयो बिय पिहिनदार पवस्वामि ॥२॥ सवितादिसु अधिनपिहिय चनुभंग नह य संजोगा। जह भणिया णिक्विले तह चेव य होन्ति पिहितेवि ॥३॥ सवित्त मीस एको एक तोऽचिन एष चउभंगा। आदितु पटिसेहो तनिए भंगम्भिर माणया ॥४॥ अस्मित्त सचिनेणं अतिर सतिरं च जं भवे पिहितं । पुढवादिएसु उस्मुवि लोहादी अतिर पुढबीए ॥५॥ पच्छियपिडडादि निरं ओगाहिमगाविऽणतरं होति । वद. णियादि परंपर अगणिकाए इमं होति ॥६॥ अतिरं अंगाराई सहियं पुण संतरो सरावादी । वत्येव अतिर वायू परंपरो पस्षिणा पिहिते ॥ ७॥ अइरं फलादिपिहियं पणम्मि इतरंतु पछिपिटादी। कच्छव(त्यहसंचारादी अतिरतिर पपिछयादीहि ॥८॥ तइए भंगे मग्गण भणिएस पउत्यभंगभयणा तु। अचिन अचित्तेण पिहिए का भयण ? मुणसु इमा ॥९॥ बनुभंगो पिहिएणं गुरुयं गुरुएण गुरुज लहएणं । लड़यं गुरुएण नहा लहुएण चरिम तहिं गज्मो ॥१५९०॥ पुढवादीणं कमसो आवनी दाणजह तु मिश्विने। आयधिराहण गुरुयनिका गवरं तु चउगुरुया ॥१॥ एत्य उदाण चतुत्वं एनो बोच्छामि साहरणदारं । साहरण उकिरण विरेवणं चेच एग? ॥२॥ मनेण जेण दाहिति नन्य अवेज तु होज जं वर्ष। तं साहरित अपयहि मनेणं देव साहरणा ॥३॥ सा पुण छस् णातवा सचित्त मीसा तहेव अचित्ता। एत्यविजह णिक्खिने मंगा संजोग नह व ॥४॥ सविनमीस आदिशाएम दुसु माथि मम्गण विवेगो। तनियम्मि मग्गणा तू उस भोमादीम साहरणे ॥५॥ चरिमे भंगे भयणा जं दुहमचित्त का तहि भयणा । भण्ड मुणम् तहियं चउभंगो होति णमोतु ॥३॥ सकेसक पदम सुके उाई तु विनियओ भंगो। उाडे मुकं नइओ अ उ पाउत्थो तु॥७॥ एकके पउभंगा मुकादीएसुचाउसु मंगेस्। यो थोपं थोवे बहवं बहु योर बहु बहुगं ॥८॥ जन्यतयोये थोष सुक्खे जा चहुभति तं गर्म। जति ननु समुक्खिनुं थोपाहारं वलड मनं (अन) ॥९॥ सेसेसू नीसुषी दाना भंगम होनि गातयो। थोष बहुं पहुग थोषो यह बहूगो चेर णमो तु॥१६००॥ उक्लेवे णिकसने महाडभानम्मिलना वह डाहो। उकायवहो य सहा अचियर्न चेव बोच्छेदो॥१॥ थोचे यो छुट सुक्खे उप न डा. सुक्लं तु। बहुर्गतु अणाइण्णं कडदोसो सोनि कानूणं ॥२॥साहरणेय भणिय आपत्ती दाण जह तु णिक्विने। दायगदारं जगा समासोऽहं पपखामि ॥३॥बाले बुड्ढे मने उम्मने विए यज जरिए या अंधलए पगलिए आरुढे पाउयाहिप॥॥हत्यदुणियलब विनिए बेच हत्यपाएहि तेरासि गुपिणी बालवच्छ मुंजलि पुसलेली ॥५॥ भजेन्ती यवलेन्ती कडेन्नी व नह य पीसन्ती । पिजती संचती कलंनी पमरमाणी य॥ ॥ उकायवाहत्या समणा णिक्विवितु ने येव । ने योगाहेन्ती सपनाऽऽभंनी य ॥ ७॥ ससनेण तु वरेण - लिनहत्था य लिनमत्ता या आयत्तन्नी साहारणं च देन्तीय चोरिवयं ॥८॥ पाहुडियं च ठवेन्ती सापश्चवाया परच उदिस। आभोग जणाभोगेण वळती पाणिजा उ ॥९॥ एनेसि डायगाणं गहणं फेसिथि होति भइया । केसिंधी अग्गाहण नप्पडिवावे भवे गहणं ॥१६१०॥ एते दायगदोसा एनेहि दिनमाण णचि कप्पे । जे न अकारणे गेल्हे पस्छिन नेसि | बोच्यामि॥१॥बाले बुदे मले उम्मले वेषिए बजरिए या एतेसि मासला आपत्ती वाण पुरिमइद ॥२॥ अंधेलपगलियादी जापन दानबालवानि । पनेय चतगुस्या दाणं पुण होषऽभत्त९ ॥३॥ भुजण घुमुलेन्लीए आपत्ती चतुलहू मुणेया। दाणं आयामती भजणमादी अनो बोच्छ॥४॥ भजन्नी बदलेली जाच न उकायमगहन्यत्ति । समगट्ठा ते चेव तु णिक्विष ओगाह पहन्ती ॥५॥ एथत विसरिसदाणं पच्छित्तं होति कायणिफण्णं। सेसेमू दारेसु चानुयुगा दाणमाया ॥६॥एने दापम मणिता एनो उम्मीसयं पपरसा१०४१ जीतकन्यभाष्य मुनि दीपरतसागर I अनुक्रम [३५] ~187~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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