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________________ आगम (३८/१) प्रत सूत्रांक [3] दीप अनुक्रम [3] ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित "जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं ) अत्र आलोचना- प्रायश्चित वर्णयते - मूलं [२] आयं [१९] आगमसूत्र - [ ३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं ------- - सहसंवरो निजरा य अवसेस देसम्म ॥ १ ॥ संवरविणिजराओ उभयमची मोक्सकारणं होति मोक्पो हेतु कारणंति एते उ एगडा ॥ २ ॥ एतेसिं दोन्हवि तू तयो पो हेउ कारणं होति । एतत्सविपच्छित्तं पहाणमंगं मुणेत ॥ ३ ॥ जेण तवो बारसहा पछि वितती तु दसमेदे तेण पहाणं अंग तवस्स तू होति पच्छित्तं ॥ ४ ॥ गाहापच्छदेणं तस्सवि जंभगिय जं च णाणस्स । वस्ततिमाहाए सारे तू तं चिमं आइ ॥ ५ ॥ सारो चरणं वस्सा णिवाणं चरणसाइणत्वं च पंच्छितं तेन तये मेयं मोक्खत्थिाऽवस्सं ॥ मू० ३ ॥ ६ ॥ सामाइयमादीयं सुतणाणं बिंदुसारजन्तं तस्सवि सारो चरण चरणस्तनि होति मेशनं ॥ ७॥ मेाणस्स अनंतर चरणं चरणा अनंतरं गाणं णाणविसुद्दीए पुण चारितविद्धया होति ॥ ८॥ चारितविमुद्धीए णेषाणफलं तु पावती अचिरा सा पुण परिससुद्धी पश्छित्ताहीन भावा ॥ ९ ॥ जन्हा एतेऽत्य गुष्मा पच्छिले गणिया तु सुसंधि। तन्हा गाय दहा मो क्खत्पिणा जहिमं ॥७२०॥ तं दसविहमालप्रेयणपडिकमणोमपविवेगबोसम्या त्वचेदमूलमवयाय पारंचियं देव ॥ ०४॥ १॥ आलोयन अरिहंती का मजाजा लोयणा गुरुलगापाव विगडिएर्ण सुज्झति पछि पढमेयं ॥ २ ॥ मिच्छारूढमेरोष व जं मुज्झती तु पावं तु ष य विगडिजति गुरुयो परिक्रममरिहं इषति एवं ॥ ३ ॥ जइतु अणामो खेलादी णिसिरितं तु होजाहि हिंसाइए य दोसे न य आपल्यो तु किंचिदवि ॥ ४॥ जे पाच सेवितूनं गुरुयो विगदिजती सम्मं तु गुरुदि पश्चिम तदुभयमेतं मुने ॥ ५ ॥ किंचिदहितं जहि अप्पं व अहव ऊनं तु विहिणा तु विचिन्ते पति विवेगजरिवं ॥ ६॥ जंकायचेमेतेन निरोतु सुझती पावं जह दुस्लिमिन्ाषीयं पि वियोसम्मं ॥ ७॥ णिङ्गीतियमादीजो उम्मासंतो उ जन्म दिज तु। एवं तयारि ममितं इदानि छेदारिहं बोच्च ॥ ८ ॥ जेन पडिसेबिएवं सिाह जस्स पृष्ठपरिवाओ। तत्तियमे छिनाइ सेसमपरियारखडा ॥ ९॥ जम्मि पडिसेवियम्मी सर्व सून पुशपरियायं पुष्णरवि महवयाई आरोविनंति मूलरि ॥ ७३० ॥ जम्मि पडिसेवियम्मी अणयो कचि काल कीरतु मूल पंचसु चिन्तनो पछ होतृर्ण ॥ १ ॥ वोसोवरयस्स उ महइयावण कीरती तस्स अन एसो एसी पारंचिये पोच्छं ॥ २ ॥ अंषु गतीपूजनयो पारंच गच्छती तु पारं तु तपमादीन कमलो सो लिंगाह चतुधातु ॥३॥ बालप्रेयममादीनं दसन्ह या एस होति डित्यो साने सहाने विमागतो इनमो वोच्छामि ॥४॥ करणा जोगा तेषयुक्त्तस्स निरतियारस्स छडमत्यस्स विसोही जणो आलोयणा मचिया ॥ मु० ५॥५॥ के पुर्ण करा ? जे तिल्यंकरगणहोगा । सुतानुसारबो तू संजम दुफ्लया हेऊ ॥ ६ ॥ जेतिय जे विदिद्वा जुजि जोगे कामादिवा तिमि । जं जीचे जुजयती पेरवती वा ततो जोगा ॥ ७॥ संचय एते मुहपुतियमादि जाच उत्समो विपरायो (इ)समायारी जा अहिवंत सुतमि ॥ ८ ॥ ते तु जया उदउसो असल करे निरतिचारो व जालोयणमेव च सुदी तु मस्स ॥ ९ ॥ छउ कम्मं सम्म माजावर गावरणं मोहणिय अंतराय चउचि होति नाय ॥ ७४ ॥ ते तु जया कर निजे उपयुक्त करेति निरविवारो य म सत्य का सुद्धी? का व अमुदी १ पोति ॥ १ ॥ गुरुराह तत्यचेा जा किरिया मे आसवेनुं था। अब पमाया मुटुमा अतिचार न जानती छतुमो ॥ २ ॥ ते इयारा हुमा आलोयमेत्तया विज्झति । सा आलोय चोय कर पिजा ती जोगेसु ॥ ३ ॥ को कारयो ? जती तू ज साहू समलियो विनिदियो। पंचम गाइ समता गाई छ इयं वोच्छं ॥ ४ ॥ आहाराईगहने तह पहियाणिमेस मेगे। उधारविहारामणिचेयजइदयादी ॥ ६॥४५॥ आहारो जेसिबी सोचा होइमो उ आहारो म पानं लाइम साहिम होती च तु ६ ॥ आदिग्गणं पुण सेजासंचारच त्थपायड़ा। पाउंछणजट्टा वा ओहोपडा वा ॥ | अब गिलाणस्सा जारिए बाल बुद्ध लगाए या दुष्बल सेहे व महोदरे व आजामा ॥ ८ ॥ एते पाप आहारो अब होन सेजादी ओसहाय एमादी होज अहो उ ॥ ९॥ एवेसिं अाए गुरु पुष्छता गुरूचा सासारजो तु उपयुक्त विद्वीप घेतृणं ॥७५॥ जाती गुरुण जं जह गहियं तु मलमादीयं सुत्तानुसारतो तू आलोयणमेत्तयो सुद्धो ॥ १ ॥ सीसाह जई एवं बहिणं होत एव तु तो गणमेव स आहारावीण मा कुरु ॥ २ ॥ योजग जदि एवं तु संजमजोगाउ हाँति संपुष्णा आहारमाइयाण को नाम परिहं कुल १ ॥ ३॥ अच इमो दोसो अग्गहना पावती महंतो उ जायरियादी पत्ता नागादीगं च योच्छेदो ॥ ४ ॥ तम्हा अवस्समहणं आहारादीन होति बिहिना उ आहाराने एमो पादो समत्तेतो ॥ ५॥ निम्म गुरुलाओ जाओ का इज मेगा निगम कुलादिया इन पोच्छामि ॥ ६॥ कुलमसंचे चेहय तरवविणास दुविमेदे एसि निवारणचा गुरु करे निम्मणं ॥ ७ ॥ संचारादीन अहा अपमा पाडिहारीणं । निग्ामो गुरुमूलाओ सीओ वा करेजाहि ॥ ८ ॥ माहापच्छदेणं जं मणितुकारअयचिसो तु जवणी भूमी अम्यति तेन उ उच्चारभूमीठ ॥ ९ ॥ सझायविहारो तु पणीसहिजो विहारभूमी । इदम गच्छे आसन्न दूरं वा ॥ ७६० ॥ आयरिया तु अपुरा अड्या साडू अतीव संचिया वंदनसंशयहे गच्छे वासच दूरंगा ॥१॥ बादीह पोर्ण पुण सड्ढा सण्णाय अडुव ओसण्या दंसणगाण निम्म्म ओच्छणा ॥२॥ एतेहिं व कमेहिं गुरुला निम्मो उसाहूणं गाहा छ समता अरुणा पुणे (२५६) १०२४ जीतकल्पनाये - मुजि दीपरसागर ----- ~ 170~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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