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________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [२] ------------- ------------- भाष्यं [६६०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सूत्रांक भण्णा गुणसंपण्णे जारिसए ने सुणेहति ॥६६॥ पश्यनजसंसि पुरिसे अणुग्यह(हिय)विसारए तबस्सिस्मि । सस्सस बहस्सयस्मि य विवकपरियागविम्मि ॥१॥ एतेस धीरपरिसा पुरिसजाएम किंचिखलिए। रहिए विहासत्ता जहादि देन्ति पच्छितं ॥२॥रहिए णाम असन्ते आतिम्मि वपहारतियगम्मि। ताहे बिहारइत्ता पीमसेतृण जं भणियं ॥३॥ परिसस्स उ अबराहं विधारहत्ताण जस्स जं मणित। न देन्ती पति के देन्ती उसे सुणसु ॥४॥ जो पारिश्रो सुखत्यो अणुशोगविही य धीरपुरिसेहि। आतीणपतीणेहि जतणाजुत्तेहि दंतेहिं ॥५॥ आलीणा जाणादिसु पद पद लीजा उ होन्ति तु पलीणा। कोहावी वा पलयं जेसि गया ते पालीच्या तु ॥६॥ जतणाजुत्तो पयत्तव देतो जो उपरतो तु पावेहि। अहवा दन्ती इंदियदमेण नोइंविएणं च ॥७॥ एरिसया जे पुरिसा अत्यधरा ते मवंति जोगाउापारणक्वहारजू पवहरि धारणाकुसा ॥८॥ अहवा जेणं या विट्ठा, सोही परस्स कीरती। तारितयं च पुणो, उप्पणे कारणं तस्स ॥९॥ सो सम्मिच बरे खिले काले च कारणे पुरिसे। तारिसर्य अकरेन्तोष सो आराहो होति ॥६७० ॥ सो तम्मि घेव बजे खिले काले य | कारणे पुरिसे। तारिसय थिय मूतो कुतोऽऽराहओहोति॥१॥अहवावि इमे अन्णे घारमवहारजोग्गवमुति। धारणववहारेण जे बबहारं क्वहरति॥२॥ याबकरो वा सीसो वा देसहिंडो वापि। दुम्मेहत्ताण तर अवधारे बहुं जो तु॥३॥ जस्स उ उदरिऊन अत्यपयाइंतु देवि बायरिया। जेहि कोहि की ओहारे बाराहि)न्नो तु सो देसं ॥४॥धारणपयहारो। खल जहरूम बणितो समासेणं। जीतेणं वनहार सुनवच्छ! जहरूम बोच्छ॥५॥वसमतपरत्तो बहुसो आसेवितो महाषण। एसो उजीतकप्पो पंचमयो होति ववहारो॥६॥वत्तो णामं एकसि अणुक्त्तो जो पुणो वितियबारे। ववियष्यारपवतो परिग्गिहीनो महाणे ॥७॥बहुसो पहुस्सुएहिंजो पत्तो ग य णिवारितो होति। वत्तणुपपत्तमार्ण जीएण कतहमति एवं ॥८॥ जो आगमे य मुत्ते य सुण्णतो आण धारणाए या सो वहारजीएणं कुणती बत्तामुक्त्तेचं ॥९॥ असुतो असुपत्थकतो जह असुयस्स अमुएण पहारो। असुअत्यषिय तह को असुतो असुएन ववहारो॥६८०॥तवणुकनंतो पवहारविहिं पर्युजति जहुतं । जीतेण एस मणितो बहारो चीरपुरिसहिं॥१॥धीरपुरिसपण्णत्तो पंचमयो आगमो विदुषसत्यो। पियधम्मऽवमभीरूपरिसजाताणुविष्णो य ॥२॥ सो जह कालावी अपटिकंतस्स णिविगायतु। मुहर्णतफिडियपाणगअसंवरेएषमादीम् ॥३॥ एगिन्ति गन्तबजे घट्टण तावेऽणमाद गाडे या णिविगतियमावीर्य जा आयामन्तमुरपणे॥४॥ विगलिंबनवपदमपरियारणगाडगाढवणे। पुरिमाविकमेण उमेत जाव खमणं तु॥५॥ पंचिदिपाहतावणणगाढमाटेतच उडवणे। एगासणमायाम समर्णवह पंचकहाणे ॥६॥ एमाबीजो एसो भायो होति जीयवहारो। अगाविसोहिकरो संविग्गणगारचिण्णोति ॥७॥ जं जीतं सावजण जीएण होति ववहारो। जंजीयमसावतेण उजीएण ववहारो॥८॥केरिस सावज केरिसयं वा मये असावा केरिसयस्सवादिजाति सावज वाचि इयरं वा ॥९॥ खार पबि(बी) हरमाला पोरेण व रिंगणं तु साकन। बसविद पायचित होइ असामाजीचं तु ॥६९०॥ जोसम्णे पहुबोसे निबंधस पक्षपणे य हिरवेपखे। एपारिसम्मि पुरिसे विजाति सावज जीयं तु॥१॥ संविग्गे पियधम्मे य अप्पमते या कामीबम्मिकन्ही पमायललिए देयमसायम जीयं तु ॥२॥जंजीयमसोहिकरण तेण जीएण होति वहारो। जजीचं सोहि तेण उ जीएम चहारो॥३॥ जंजीयमसोहिक पासस्थपमत्तसंजयाचिच्या जवि महापाचिन म तेण जीएण महारो ॥४॥ जंजीयं सोहिकर संकि. मापरायण बंणा एकेणविजाइण वेच उजीएमबहारो॥५॥ एवं जोक्सहस्स पीरविधुदेसितष्पसत्यस्त। निस्संदो वषहारस्स एस कहितो समासेण ॥६॥को विस्परेण यो. सूण समत्यो भिरवसेसए अत्ये। महारो जस्ल ठितं जीवाण मुहे सतसहसं? ॥७॥ किं पुष गुणोक्देसो क्वहारस्स तु विदुप्पसत्यस्त। एत में परिकहियं बालसंगल्स गवणीयं ॥८॥ बम्हारे पंचसुत्री विजत केण तु क्वारेमा बागमनहारेण तस्स अमाचा सुतेच तु॥९॥ सुतवहारजमाने महारं वमहरेज आणाए। जेणे सो उ सुतस्सा अणुसरितो एगदेसेणं ॥ ७० ॥ जाणाएँ अभावामओयवहार बहरेज धरणाए। जेणेसावि सुवस्सा कात एमबेसम्मि ॥१॥धारण गंतर जीयं एवं पुण जीयकष्ये पगर्य तु जेणेसो सावक्खो अणुसमा जाय तिस्पंति॥२॥अण्णचव खेतं काठ भावं पुरिस पडिसेवणासोयाचिति बल संघवर्ण वा बाक्खावि जीयकप्पो उ॥३॥ एस पर्सगामिहितो चोयगवयणाओं अहण जीवरसा वोच्छामि सोहर्ण तृ परमं सुसमाहितो एविं४॥'जीवति पानधारण' पाणा पुण आउमावि मिड्डिा । आबा जीवा जीविस्सा य जीवति हो जिनो ॥५॥होर विसोहण सोहण जह तू वस्वस्स तोयमावहिं। तब कम्ममलखाउरवियरस जीवस्स पच्छितं ॥६॥ एवं पुण पच्छितं परम पहाणति होति एगई। कस्सेयं परमती जीधस्स उ होड पच्छितं ॥ ७॥ संबरविणिजाराओं मोक्खस्स पहो सपो पहो वासि। तसो य पहाणंग पचिठतं जंचमानस्स मू०२॥८॥ संकर घहम पिहणं एगई सो य संक्रो दुविहो। वेसे सो यतहा एमेच य मिनरा विद्या ॥९॥ संबरियासपवारो नपकम्मोषजनमा पुषभितस्स सपर्ण विनिज़ारा सा उ माया ||७१०॥ सेलेसि पनिषत् एचरिमसमयम्मि बामाणे या तह १०२३ जीतकल्पभाय - गुनि दीपरतसागर अनुक्रम ~169~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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