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________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [१५९७] दीप अनुक्रम [१५९७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... “पंचकल्प” – छेदसूत्र- ५ / २ ( भाष्य ) भाष्यं [ १५९७ ] [ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं ....आगमसूत्र निओ पकप्पो | तेण परेण विकल्प एसो उहि तु वच्छामि ॥७॥ तिचि उ भणिया कप्पो अतरंगा विपणा पकप्पविही। उप्पायगवजाणं तिट्टाणारोवणा भणिया ॥ १०४॥ ८॥ गणनाथ पमाणेण य उपपिमाणं दुहा मुणेय मगणाएं जिणा तू एको दो तिणि या कप्पा ॥ ४० १०५॥९॥ दो पनी संडासो सोत्थीओ नावि होति आयामोहंदा दि ए माया ॥ ० १०६ ॥ १६० ॥ दो सोमिओन्निएको वेराणं निष्णि हाँति गणणाए आयामायपमाणा दुहत्य अहं च विच्छिन्ना ॥ ० १०७ ॥ १ ॥ एसो उ भवे कप्पो को मिलाए गुरूणं या पटसन यात्रि पाउण माणऽतिरितं च धारेजा ।। ० १०८ ॥ २ ॥ कारणे पप्पी होती विकल्पो निकारणे मुणेयो उप्पायगो पचिली साबतिरंग घरेजाहि ॥ ३ ॥ गणणाएं पण गडाए तं पमोत्तृणं जो अण्णी अतिरेगं परेइ सोही उ तस्स इमा ॥४॥ चाउम्मासुकोसो मासिय मज् य पंच व जहणणे तिचि हम्मिपि उबहिम्मि अतिरेगारोवणा भणिया ॥ ५ ॥ अतिरेगउवहिदारं संखवेणोदितं अह इयाणि परिकम्मदार बच्छं अपरिकम्मो जिणावधी ॥ ६ ॥ कारणविही पप्पी घेराणं अविहीए विकल्पो उ। परिकम्मणा उ एसा मंडपायं तो वो ॥ ७॥ गाग महणं ज् व जहासंखेणिमे गुणायचा पुरिसे पडिमा उवही तिथि तिगा भावसुदाई॥१०५॥३८॥ गागो यो पुरिसो नियमेण होइ गायडो उहिमादियाहिं महणं परिमाहि भणितं तु ॥ ९ ॥ तवो वही खलु निणिनाऽऽहारउबहिसिजति तिष्णिवि निविसुद्धा उगममादीहिं नियमेणं ॥ १६१०॥ एगेण चैव गहणं कप्पी दोहि भयेको निष्पभिति तु विकल्पो भन्ने पाले नहा उपही ॥ १ ॥ आदितिएण उ ग्रहणं वितियद्वाणम्मि अण्णा । हंदि परिहारको (हाकरो ॥१०६॥ २॥ आदिनि होनि कप्पो निगतिगआहारउपजाओ तु होनि तिहिं उम्मममादी तिगत्रिसुदं ॥ ३॥ वितियद्वाण पक तत्व गिरमेव तव असतीय अण्णा पहाणीए असुपि ॥ १०९ ॥ ४ ॥ केण पुचकारणे उम्गमादीहि पेप्पति भण्णनि गुणस् कारणमिणमा समासे ॥ ११० ॥ ५ ॥ स्यणाकरोड जम्हा जागरो होइ सुक्खाणं नाणादीण य पनवा ततो य मोक्खो व तो रक्खे ॥ ७० १११ ॥ ६ ॥ आइना महाणो का सिम सप ओदो मादी ) सो आदिनिगर्भगगेणं महणं भणितं पप्पम्मि ॥ १०७॥ ४० ११२ ॥ ७॥नियनमा अणुवासी व कारणनिमिनं परिकम्मण परिहरणे उबही अतिरिनगपमाणो ॥ ८ ॥ गच्छ साली गिलाणसेहादिएहि आनिष्णो एसो व महाणी तू नस्स तु दुर्लभं निगदिदं ॥ ९ ॥ कालो सिमी दुक्तिमादि दोसा सपक्लओ उ इमे पासरवादी बने ओमाणतो त होति ।। १६२० ॥ अव असंविग्गाची जह महराको हाइगा केई मायाए उगमती सदा अविकवि नवि जाणे ॥ १॥ एएहिं कारणेहिं अलते जाइतिगर्भगगणं तु आदितिगामादी भंगो तू संसणा होनि ॥ २ ॥ कारणतो निविपी माणं तु अतिकमेज कदादि किं पुण तिहि मार्ग ? भन्नति इणमो निसामेह ॥ ३ ॥ वति पमाणपमानं तपमानं व कालमाणं च एवं विवि प्रमाणं अनिकमो सिमी होति ॥ ४॥ अनिरंग पमाणेण नि परे (य के पि णाम गिजा सेन अतिकमो तू परतोषि दुगाउया मध्ये ॥ ५ ॥ कापमाणानिकमे कुला पाउरण अकालेऽवि वसती कालानी अभिवादवासणं एवं ॥ ६ ॥ परिकम्मणमविहीए बलियऽहम्बलग्मि कुजाहिदा सीतेण अदिओ उक्षिय पैनो ॥ ७॥ अतिरितपमान वा धारिज कारणेहि एएहिं सो सो को निकारणओ विकल्प ॥ ८ ॥ संकल्प इदाणि सोय पोय पोय एसि दोन्ही पण होनिमा कमसी ॥९॥ दणाण चरिने पाटण पत्थणा पसरथो इंद्रियविसयकसाएस अप्पसन्धी संप्पी १०८ १६३० ॥ समभावमा सम्बाई कम है जो (ईएस संकल्प दंसणे होनि ॥ १॥ नाणइयारंण करे कच नाणं अहं अहिलेला इति नाणे चारिते सुद्धपरिनो कह [होना]!] ॥ २ ॥ उन्नरउरिएहि पारिनगुणेहिं कह णु विहरेज्या ? एसो तु परिम्मी को सत्यगो भणिती ॥ ३ ॥ सदादिदियत्थान पत्थना नह व रागगम कोहादिकसाया होति अपत्यं ॥ ४ ॥ एसो को एनामऽहं तु उपकरणं उपकप्पती करेति उपणे व होति एमट्ठा ॥ ५ ॥ मते व पाणेण व उपकरणेण व उपग्ग कुगतिक गुणधारी उवकल्पं तं वियागाहि ॥ ६ ॥ सुहिओ पिवासिओ वा सीनभिभूतो व तरती पढिनुं तस्स करेइ उवग्ग पटवकूटस्स वा घृणा ॥ ७ ॥ जो उप्पाएँ समाहि चहि नाणदंसणे चरणे। तत्तो य तवसमाहि नरस समे निजरा होति ॥८॥ पणे उपकरणे व उग्गहितदेहो जो कृणइ सि समाहि तस्मावरणं हृणति दाता ॥ ९ ॥ भत्ता व पाणस्स व उपकरणस्स व उपग्रम्स जो कुण अंतराय नसावरणं पवइनि ॥ ० ११३ ॥ १६४ ॥ एवकप्पी मणिओ एतो वो अहं तु अणुकल्पं । अणुसदो तू नहियं पच्छामा मुणे ॥ १॥ नाणचरण इदयाणं पुढायरियाण अणुकिति कुणइ अणुच्छ गणधारी अणुरूपं तं वियाणाहि ॥ २ ॥ गुणसयसकलियाण गुणुअमिता जे खेतालाला जोमाणि भवे ॥ १०९ ॥ ३॥ गुणयदि जम्मो मोखो व गुगुरी मुणे पो सामापारीहाणी तु जोगहाणी मुणेयच्या ॥४॥ सेनाऽसती अदाण उचखिनम्मि काल निक्ले भावे गेलणादिसु सुद्धाभावे तु जदसुद्धं ॥ ५ ॥ गेहेजाऽऽहारादी नानादी व उज्जमण कुजा असणमादी व सर्व (२७४) १०९६ भाष्य - मुनि दीपरजसागर ---------- ~ 243 ~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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