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________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------------- भाष्यं [१५४६] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [१५४६] दीप अनुक्रम [१५४६] किदसाराणं पुन्वभवाई निवदाई॥६॥ ते काऊणं तो सो पाडलियुत्ते उपहितो संघ । बह कर्त मे किंची अणुग्गहहायतं सुणह ॥ ७॥ तो संघेण पिसंत सोऊण य से पढिपिछतं तं तु। । तो तं पतिहित तू मगरम्मी कुसुमणामम्मि ॥८॥ एमादीणं करणं गहणं णिजूहणा पकप्पो ऊ। संगहणीण य करणं अप्पाहाराण तुपकप्पो ॥९॥ संभोगो संगमनगहता य बच्छाव | पीड बहुमायो।साहारण कुलगणसंपठवण अणविकमणमेय.१०१०१५५०॥ मुत्तत्यतभयादी हिं संगहोवाहो उ भत्तादी। बच्छत मुकगिलागे एचमादीसु जहकमलो ॥१॥ एगस्य भोवणं पीती भवतिकमाणजिमितत्ति । बहुमानापिय कुबति सहापगतं च तेणेष ॥२॥ केई बलविसंता ण सर्मति सलविया विय लमंति। ज लवं सामर्थ संभोगामितो ताई. ति॥३॥ कुटमणसंपत्पेरा मज्जायाओ ठनि हिंडता। जह सकुले परितामों (कुसलेऽव परिणा) मत्थी उचसंपया ॥४॥ कुलमणसंपतषणा जाजोवकताओं सहिंतु घेरेहि। कुलबहुमनायाविव वाओ यमाकमिनति ॥५॥कलेस सिंगभूतं कर्म तू सिंगणाइयं होड। तं बतिसाहुसंजा होनाहि सगन्यापरमच्छे॥६॥ पुण होजाहिकतं कोइ भणेजाहि संजर जवा। मजस दुनसरी कहति सो पुच्छिओ आह॥७॥कीतो मेर पडो हार्डवा आणिो घरेलू वा । वारे वा से जातो अहवा सजाइपलाची ॥८॥ अकमिऊणं जानुं वासाणि करेउ अहा लोभे । पत्यासणमादीहिनत्य पमादोण कायद्यो॥९॥ गठस्स स्क्खणड्डा चारिसठिते अपरा काय पहरा तू मजाला गच्छरस उ फेडिया होड ॥१५६०॥ आणाएँ जिमिदाणं अणुकंपाए पचरमजुत्तार्ण । परमच्छे बसमच्छे सापयत्तेग काय अणवस्थचारणहा उपविद्वतजो कुसीलेऽपि। लिग अणुम्मुर्वते जीवहितऽ. बुबधम्मो य॥२॥ अगुसही धम्मकहापनविजओ जहन मुंचती पायो । लाहे अतिसत्तीए इमाई कुजा उ करणाणि ॥३॥ अंतवाणी जोसोपनी व पासायकंच यालं । अभिओगS पंम संकम जावेसण वेयणकीय।..१०२४ा अंतवानं कार्ड हरेति ओसोवर्ण चकाऊणं। वेवालमुहवेट मेसेति तग अमुचंत ॥५॥ अमिनोग पसीकरणं विना संकामणं च अन्नत्या भस्स कंपणं वा आवेसे मेसेति ॥६॥साहम्मियवच्छ कुणमाणेणं तु एवं कत होहअण्णे य गुणा उइमे हति ते मे निसामेह ॥ ७॥मिच्छत्ता संमतं सम्मदिही चरितओस भा चरितहिते चिरतं मलणा य पभावणा तित्ये ॥८॥ तम्हा साहुनिमित्त सापयतेण एव काय । अहुणा चेतिनिमित्तं जं काय वगं वोच्छं ॥९॥चोदेड चेदयार्ण खेचहिरणे बगाममाचादी। लगतस्स पजाइणो तिकरणसोही कहं भवे?॥१५७०॥ मन्नाह एत्व विभासा जो एवाई सय विमम्मेजा। तस्सग होती सोही अह कोई हरेज एयाई ॥१॥ तत्य करेंत उबेहं जा सा भणिया उ तिमरणविसोही। साबण होइ अमत्ती य तस तम्हा निवारेजा ॥२॥ सवस्यामेण सहि संपेणं होलमिया तु।सचरितऽचरिताण तु सबेसिस एवं कर्ज तु॥३॥ तत्व पुष कयादि मियो जन्नत्य हचिन तत्व उपर्यतो। लिंगत्येहि समयं का मजाता भवे नहियं ॥४॥ भत्ते पाणे सयणास पसेजोपहीए सज्झाए।वायणपडिमाणासु य सुहसीले अत्तसंहारो॥५॥ जहिवं तु साक्यादी कोई कोजाहि संघम तुसहियं नुन मेण्हेजा क य वस उदिसेनासु ॥६॥ पाणभत्तादीसंग व संपादोज याचि ने सुसे। बाहितिजासचिव जयंती एव उसो ॥ असेज मे उपहिण देति मेहति पाप संघाई। समायपि ण मेल्हे म पहिच्छे चोयए वापि ॥८॥ मोतं राउलाज उपएसंवा मुएजजव एवं। अन्नत्य उदासीणो एसो खल म(अ)नसंचारो ॥९॥ परिवार दिति नहिं रायकुले विन्नविनितेष । जदि वा होज समत्वो मंतजा तो सयं चेव ॥१५८०॥ जो पुण बंधनहाविस उरणचरितमंसरोहे वा। णित्रणो समस्योग करेइ नहि विसंभोगो ॥१॥ कोई पहचादी साहुम करेज अहव देवकुल। पारिज परिमभंगच करेजा कोइ पडिणीओ ॥२॥ अहवापि निमित्त अकहेमाणोतु कोई मिजा। मिरलंपणमगिलाणो ओरसक्जिादिसु समस्यो ॥३॥ जइच्छति मोदेठे समसभोर्य करेति तो(यो) समणं । | परितावणादि जैते पाती तेच पाचद य॥४॥ केनाइयं पुण काल संधादिगताण तेसिसमणाणं। काय तुमइमता? भनाइणमो निसामेह ॥ मजायसंक्रत्ते चिरमचि कायवमयरिततेण। मनायविपरणे सउवालंम सतिं करणं ॥६॥ जदि अपराहे महिओ भण्मति मोएम जदि पुणो ण करे। एसियमम्भुनगते मोवेर्ड पधुवालमे॥७॥ इहपरलोग चाकुवंवेतारिमाणिजे इहई। ते पाविताई पोय लोए दुइसयाई॥८॥ एवं उचालभेत्ता मोदउँ जइ पुणो कोमाणो। पेषेज उदासी हकेज ते बाहि(रि)या समणा ॥९॥ एवं तु समासेर्ण एस पकप्पो मए समक्खाओ। एतो उसमासेणं वोच्छामि विकल्पमहणा उ॥१५९०॥ अतिरेग परिकम्मण तह मंडपायणायचोदया। एमादि विकप्पी उसस्थजरेगे हम हो ॥१॥ एगेण अलेषकर्डकयो संघाडलेवम पकप्पो। तिप्पमितविकम्पो मत्तमभोगो यऽणवाए।...१०३३२॥ पादेगेण अलेख गन्हे जिनकप्पिया उसो कप्पो।राण दोषि पादा संघाडेर चरितारातत्वेगपडिग्गहए मत लवादपि मेड़ति। एमत्य व मत्तम दोपी रित्तम पकायो॥४॥ तिप्पमिति हिंस्ती निवारण मत्तएम वा मिले। सो होट किप्पो वत्व य सोही इमा होई॥५॥जदिमायणमावहती सति मासा अविदिशा उजागेती। वाचाया तमामा चिनियाए रोषणा भणिया ॥६॥समणीण तिन्ह कप्पो पउपचन भ१०९५पत्रकल्पमाष्य - मुनि दीपरतसागर ~242~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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