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________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [९...] ------------- --------------- भाष्यं [८६१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सूत्रांक तो सप्पो॥१॥ उम्घाहिए यदिडो आउदो बेति मिच्छकार च। समिताऽसमिता एते उकोस जहष्णया होन्ति ॥२॥ उच्चारं पासवर्ण खेलादि अण्णपाणमहिय वा। सुनिइए पदेसे णिसिरंतो होह समिबो॥३॥ इत्यपि ते बिय मंगा तहेव समियो तु अंतिमे होति। आहरण धम्मरुती परिठावणसमितिमुजुनो ॥४॥ काइयऽसमाहि परिठावणे य महितो अ. मिग्गहो तेणं सकपसंसा अस्सरहाण देवागम विडो॥५॥ सुबह पिपीलियाओ बाहाहा याचिकाइयऽसमाही। अण्णो थकाइयाए उपद्वितो यजं असह ॥६॥ जयं तुकाइयाडी र परिव समाहिमा अच्छा निम्मच णिसिरे जहि जहि पिपीलिया उसरे सत्य ॥७॥ अहसाह किलामिजाताहे पीती य चरिता देवेचा मा मा य णिसिदोजीमा पिय देवो । बाजो।दावविच गतो देवी समितीस एवं होति जतिताई। एत पसगाभिहित आसारण म बोच्यामि ॥९॥ गुरुखो आवरिया तणावादीओ उ होड आयारो। आयरण पर सवणया वा सो सिमाजसाणा ॥॥तीय विमासा इनमो वासातण दुपरवयणमेयन्तिा आयो य सातणाव आया उसाडणाजा उ॥१॥सा होती आसातण आओ लाभो. ति आगमो याचि। जाणावीणं साया सायण सो विणासोसि ॥२॥आतस्स साढणती बकारलोचम्मि होडासयणा । आवरियाणं णमा आसवणा होइमेहिन॥३॥डहरो अकुलीणोतिषम्मेहो एमग मंदबुदिति। अवि अप्पलाभलबीसीसो परिभवा आयरियं ॥४॥ अहवांचि पदे एवं उपदेस परस्स देन्ति एवं तु वसपिह बेयापर्य काया सयंण कुवंति ५॥ अहव तिहा मासायण मणवाकाएण मणपदोसादी। बायाए आसायण अंतरमासादि कुरिना ॥६॥काएणं संपट्टण जमलित पुरतो व पचती पथे। अहना आसायणमो तुसिभीमादी मुणेवा ॥ ७॥आलसे पाहिले वाचारिय पुचिठए णिसट्टे या। गुरुवयणा पंचेते सीसस तु का इमेकेके ॥८॥तुसिणीए हुंकारे कितिवकिपड़गर करेसि?लि। कि णिपुर बदेसी? केवायं वापिरहसिति॥९॥ एवं छा आलले तुसिणीमादी उ हॉति णातबा। बाहित्तादिप उचिव एकेकपयश्मि पोदना ॥८॥ गुरुत्रासायण भणिया एतो वोच्छा| मि विणय गं तुागविह अम्भूठाणे अभिगहे आसणे चेव ॥१॥ आसणवाणं सकारणा य सम्माणणाय कितिकम्मे। अंजलिपग्महणं अणुगती व ठितपनुवासणता ॥२॥ जते पडिसंसाइण आसणमावीदिहोति सकारो। सम्माणो उवहीए जोगं जं जस्स ने कुजा ॥३॥ कप्पो संचारो वा जहिं बेहो अच्छाई तु आपरिजओ। णाचागमस काल पडिलेहिय घेतुन अच्छे॥४॥कितिकम्म परणय हस्युस्सेहो पिडालदेसम्मि। अंजलिपम्हमेत सेसा उपयाहु कठोता ॥५॥ एमादी पिणर्य जोणवि कुणती उपरिषमादीण विणयम्भंगो एसो | सत्तविहो अहवामाणादी ॥६॥माणे सण चरणे मण वह काबोवयार सत्तविहो। एतेसु अपहले समासओ एस मंगो तु॥७॥ विणयम्भंगो एसो ओहेच समासओ समक्खायो। उच्छादी वसहा तूअकरनेणमोतू (णमेते तु)बोच्छामि ॥८॥इच्छा मिच्छा तहकारो, आगसिया य मिसीहिया । आपुच्छणा व परिपुण्डा, दणा य निमंत्रणा ॥९॥ उवर्स-2 पया बकाले गच्छादिअकरणया उ वसहेसा। लहुसमुसाबादादी एतो उसमासतो वोच्चम् ॥ ८९०॥ पयलाउहो मए पथक्साणे य गमण परिवाए। समुदेस संखडीओ मुड्ड्य परिहारिव सहीओ(स्समुही)॥१॥अक्स गमणे दिसाय एमकुले चेव एगदधेयाएमादी तु पदेहि मुसं तुलस गए साहु ॥२॥ पयलासि किं दिवाण पयलामिरहू चिनियणिण्हवे गुरुतो। अण्णबाविय णिचापि बागा गुरुगा बहुतरार्ण ॥३॥णिवणे निवणे पश्चिात बदई ऊजा सपर्य । लहगुरुमासो सुहमो बहुमादी बायरो होति ॥४॥ कि पचसि पासण गचिट गणु पासचिवको एते। मुंजती मिह माया कहति गणु सहगेहेसु ॥५॥ मुंज पथक्खाणं महंसि ताखण प जियो पुट्टो किरण मे पंचविहा पचरखाना अविरतीओ ॥६॥ बचासि ? णाई पच्चे तक्रवण पच्चंत पुचिको भणति । सिद्ध कवि जागहणणु गम्मति गम्ममाण तु॥७॥ बस एयरस य मजा य पुच्छितों परियाग मे तु कलेण । मजा भवति यदिए भणार पंचमा दस उ॥८॥बह तुसमुसो कि अचाह' कत्य' एस गवर्णमि । वहन्ति संखडीओ घरेस गणु याउखंडणया ॥९॥ सुबमजणणी उ मुया परुष्णों ठियात्तिएव मणियमि। माता साजिया भबिसु ने समायाने ॥२०॥ ओसणे बठूर्ण बहा परिहारियत्ति हुकहने। कत्युनाणे गुरुत्री अदिङ बिहे यलगुगा ॥१॥ छात-- गाउ नियने आलोएतम्मि उम्गुरू होन्ति। परिहरमाणा विकह अपरिहारी भवे दो ॥२॥ वाणुगमाई मूल सब्जे तुम्भेऽहंति अणवडी । सचे उबाहिरा पक्यणस्स तुम्मेति पारंची॥३॥मण पय विद्वणियहे आलोपार्मति घोडगमुहीउ। किमगुस्सी सम्वेगो सके बाहिं पवयमस्स ॥४॥ मासो लाओ गुरुओ बउरो मासाहतिगुरुगा। उम्मासा लहुगुरुगा दो मूल ब च॥५॥ गच्छसि मताव गच्छ तक्खण वर्चत पुच्छितो भना। बेला ताबन जाया परलोग वाचि मोक्रस वा ॥६॥ कतरि दिसि गमिस्ससि पुर्व अवर गतो मनति पुहो। विवाहोति पुवाइमा दिसा अवरगामस्स७॥बहमेगकुलं गच्छ वह बहलपवेसने पुहो। मणति कई बोणि कुले एनसरीरेण पविसि ॥८॥ पाह एवं पेभेगमा पुच्छितो भणति। गहर्ष तुलसणं योग्गलान भन्ने सिनेमेगं ॥९॥ पयादी तुपदा खलु एमेवे पग्निया समासेगा लड्गुक्या जाच मुसलासगमेयं मुणे. १०२७ जीतकस्यमाय - मुनि दीपरासागर अनुक्रम परलोग काम गरओ चउरो । सो कार सगुणा ~173~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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