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आगम (३८/२)
“पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
--------------- भाष्यं [१४४८] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प” संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
प्रत सूत्रांक [१४४८]
दीप अनुक्रम [१४४८]
सूरो इव तेयसा जुत्तो ॥८॥ अमावणसरीरो पदगंधी ण भवते सरीरस्स। खतमविण कुच्छ कच्छसि परिकम्मणविय कुषति ॥९॥पाणिपडियाहधारी एरिसया णियमसोमणेयवा। अतिसेसे बुच्छामि अण्णेऽपि समासतो तेसि ॥१४५०॥ दुविह अतिसेस तेसि णाणानिसयो तहब सारीरो। णाणातिसतो ओही मणपजय नदुमयं चेव ॥१॥ आभिणियोहियणाणं सुतणाणं पेपणाणमनिसेसो । निमन्त्री अभिष्णवचा एसो सारीरमइसेतो ॥२॥रयहरणं मुहपोनी जहणोवहि पाणिपत्नयस्सेसो । उकोस निषि कप्पा स्यहर मुहपोनि पणगेनं ॥३॥ णवहा पटिम्गहीणं जहष्णमुकोस होति बारसहा। नेसिऽनेयाणि चिथ अइरेगो पायनिजोगो॥४॥ उबट्टणसणमजणा बननयणदंतसोमा या एते उघाया खन हनि जिणकापलिंगस्स ॥ ५॥ उबहवाइयाई उवगरणं पेपरकप्पीणं। मइयों लिंगकप्पा गेलनाईहिं कहि ॥६॥ कमम्मि गिलाणाइसु उबरणमाइया अणुचाया। गणो चउम्गणी या कारणओ होइ उबही 3 ॥९०१०२॥ रुदणहकास्वणि(ण)यणो मुंदो दुविहोपही समासेणं । एसो तु लिंगकप्पो कारणचासि नाण्णवरो टालोय खर कत्तरीय मुंड तिषिहं न हो। थेरा। असिवादिकारणेहि कुज विषजास लिंगस्त ॥९॥ निरूहयलिंगमेरे गुरुगा कापड य कारणजाते। गेटमरागलोए सरीखेयाचडियमादी॥१४६७ ॥ वासनाणेणाविहुभेदो लिंगल्स तं अण्णानं। चाउम्मासुकोस सनारि राइदिय जहन ॥१॥ एयं तु दवलिंग भावे समणनणं नु णाय । को उ गुणो दवलिंगे ? भण्णनि दणमा सुणाम पोडं ॥२॥ सकार पंदण णमं-14 स पूजा कहणा य लिंगकप्पम्मि। पत्लेयबुदमादी लिंगे उउमथ नो गहर्ण ॥..५२॥३॥ बत्थासण सकारो बंदण अभुट्टणं तु गाया। पणिवादो नु णमसण संतगुणकिनणा पूया या बट्टण दन्टिग कुर्वतवाणि दमादीवि। लिंगमि अविजी णो णजति एस विरतोनि ०१-३॥ ॥ सहितो समणलिगेणं, धम्म संम(ज)तो भये। अलिंग बेनि ने कीस, जाणतो ण | करे नुमं? ॥६॥ पत्नयबद्धो जाय उ गिहिलिंगी जब अण्णलिंगी। देवाविना ण पूनिमा पुर्ज होहिनि कुलिंग॥७॥ण यण पुच्छति कोती केरिसओ होइ तम्भ धम्मोति?ण:य सडिंगविहर्ण छउमस्या जाणे पिरोनि ॥८॥ एसो तु लिंगकप्पो अहुणा बोचहामि उवहिकप्पं तु । जो जस्स भवे उवही जिणधेराणं जहाकमसो॥९॥ ओहे उनम्गहे या दुविहोर उबही न होनि णाययो । ओहोवही तु निष्ह ओबगहियो भने दोण्हं ॥१४७०॥ जिणकप्पे बेरकप्पे कप्पातीते य विष्हमोपो तु। थेराणमुषग्गहिओ साहणे संजतीणं च ॥१॥ वारस चोहस पणुचीस व य एको य णिस्वही चय। जिणधेरअनपत्यद्धतिस्थकरनित्यकरे ॥२॥ पाणीपडिगाहीता पहिगहधारी य होति जिणकप्पे । धेरा पडिगहधरा कप्पाडीया उal भजियचा ॥३॥ वियनियचाउकयगए णच दस एकारसेव चारसगं । एते अह किप्पा उचहिम्मिपि होति जिणकप्पे ॥४॥ जया दुर्गच पणगं उचहिम्स उहानि दोनिवि चिकप्पा। पाणिपटिग्गहियाणं अपाउयसपाउयाणं च ॥५॥स्यहरणं मुहपोती एवं दुर्ग अपाउयंगाणं । स्वहरणं मुहपोती निनिय पच्छाद इतरेसिं ॥६॥ उराहधारीणपिय दुपिहो उपही समासओ होति। गवविह दुवालसचिहो अपाउयसपाउयानं च ॥७॥ पत्तं पत्ताधो पायट्टवणं च पायकेसरिया। पहलाई रयत्नाणं च गोचडओ पायणिजोगो ॥८॥स्यहरणं मुहपोनीट गवहा एसो अपाउयंगाणं । इयरेसि एसेष य अतिरेमा तिमि पच्छामा ॥९॥ एते चेच दुबारस मत्ता अतिरेग चोलपट्टी या एसो य चोदसपिहों उपही सलु धेरकप्पम्मि ॥१४८॥ अजाणं एसेप य चोलस्थाणम्मि णवरि कमदं तु अतिरेग अंगलग्गा इमे उसने मुणेयवा ॥१॥ उम्महणंतग पट्टो अढोग चलणिया व पोदया। अभितर पाहिनियंसनीय नह | कंचुए चेव ।।२। उचिट्य पेकच्छिय संघाडी व संधकरणी या ओहोबहिम्मि एते अजाण पणावीस तु ॥३॥ सन य पडिग्गहम्मी स्यहरण व होति मुहपानी। एसो तुणपविकप्पो उपही पनेयबुदाणं ॥४॥ एगो तिस्थगराणे मिक्सममाणाण होह उवही उणि परं णिरुपहि ऊ जावजीचाए तिस्थगरा ।।स.१०४॥५॥ जिणा चारसरुवाई. थेरा चो. इसरूविणो। अजाणं पण्णवीस तु, अतो उड्ढे उचगहो॥ ६॥ एसो उनहीकप्पो समासओ बनिओ जहाकमसो। संभोगकापमहणा समासतो में णिसामेह ॥ ७॥ संभोगपरूषणया | सिरिधर सिर(न)पाढे य संभुत्ते। दसणनाणचरिने तवहे उत्तरगुणेसु॥..९३॥८॥ओहअभिग्राहदाणमाहणे अणुपासणा य उपचाए। संचासम्मिय उद्दो संभोगविही मुणेयशो ॥५॥ उवही मुब मनपाण, अंजलीपगहे या दावणा य निकाए य, अम्भुहाणेलियावरे ॥..९४॥१४९०॥किडकम्मरस य करणे, वेषापचकरणे इय । समोसरण सपिणसेजा, कहाए
य पर्वधना ॥..९५॥१॥ उगम उपाएसण निवेय परिकम्मणा य परिहरणा । संजोगविहिरिमना उचहिम्मिवि होनि उडाणा ॥२॥ वायण पुचड़ण परिपुण्ड चिन परियणा य का कहणा य । संजोगविहिविभत्ता सुबठाणे होनि ठट्टाणा ॥३॥ उम्गम उपाएसण लोयण संभुंजणा मिसिरणाय । संजोगविहिपिभना य भनवाणे य उडाणा ॥४॥ बंदिय पणमिय
अंजलि गुरुजालोये अभिमाहि णिसेजा। संजोगविहिविभत्ता अंजलिकम्मेवि उहाणा ॥५॥ सेनोवहि आहारे सीसगणाणुप्पयाण सज्झाए । संजोगविहिविभत्ता दावणाएवि उडाणा भा॥६॥ सेजोचहि आहारे सीसगणाणुप्पयाण सज्झाए। संजोगविहिविभत्ता निमंतजाएनि उहाणा ॥ ७॥ अम्भुहासण जंजलि किंकर अमासकरणमपिभनी। संजोगविहि१०९३पशकल्पमाप्यं -
मुनि दीपरतसागर
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