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आगम
(३८/१)
रुककर
प्रत
सूत्रांक
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूल) ---------- मूलं [१] ------------ ---------------------- भाष्यं [१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य
कियपवयणप्पणामो पुच्छं पच्छित्तदाणससेष । जीयम्यवहारगयं जीपस्स विसोहणं परमं ।। मूलं १॥१॥ पवयण दुवालसंग सामाइयमाइविं. सभाष्य) श्रीजातकल्पसूत्रम्स
नाविरमंपो जायेशपटियं नाणं जहवा पाय पसत्य पहाण क्यच पवयण नेणा अहव पपत्तयती नाणाई पपयर्णम नेणं ॥३॥ जीवाइपयत्या वा उपदसिजति जत्थ संपुण्णा। सो उचएसो पचयण तम्मि करेत्ता णमोकार या योच्छं पक्वामित्ती पच्छित्तं वसह एव उपरि तु। वण्नेहामि सवित्थर किं भणियं होनि पचिठन ? ॥५॥ पाच लिंदनि जम्हा पायपिछनि भण्णते तेणं । पायेण बावि चित्तं सोहयई तेण पच्छितं ॥६॥ पणगादी आपत्ती णिनिगहमाथि एत्थ दाणं तु । संखेव समासोति व ओहोलि व हानि एगट्ठा ॥ ७॥ किं अत्थी अण्णेऽवी चवहारा जेण जीतगहणं तु?। मण्णति चउरइत्यऽण्णे आगममादी इमे सुणम् ॥८॥ पंचविहो ववहारो दुग्गइभवमूरएहि पञ्चत्तो। आगम सब आणा धारणा य जीए य पंचमए॥९॥ आगमओ पवहारो सुणहजहा धीरपरिसपण्णत्तो। पचक्खो य परोक्खो सोविहारविहो मणेयहो॥१०॥ पक्खोऽविय दापिहो इंदियजो चेच नोयइंदियजो । इंदियपचक्खोऽचि व पंचसु विसएमु णायवो ॥१॥ जीवो अक्सो त पति जं बट्टा तं तु होति पचक्ख । परओ पुण अस्वस्सा बह(च) होइ पारोक्वं ॥२॥'अस पावणे' उ धाऊ अक्सो जीवो उ भष्णए णियमा । जवावयए भावे गाणेणं तेण अक्लोत्ति ॥३॥'अस भोयणम्मि' अहवा सबवाणि भोगमेतस्स। जागती जम्हा पान्लेड य नेण अक्खोनि ॥४॥ कसिंचि इंदियाई अक्खाई तदुबलादि पष्चक्खं । तं तुण जुज्जति जम्हा अग्गाह्ममिदियं विसए॥५॥ रूवादीविसयाणं जीवो खल ईदिएहिं उब. लभगो। जम्हा मग तम्मि जीवे प इंदिया उवलभे चिसयं ॥६॥ तम्हा विसयाणं खलु अग्गाहगमिवियं भवद सिद्ध । जं इंदिएहि नजइ तं नाणं लिंगियं होड़ ॥ ७॥ लिंग चिंध निमिनं कारणमेगट्ठियाई एयाई। जाणाइ दिएहि जीवो धूमेण अमिग ॥८॥ एवं खुईदिएहि नजद लिंगियं तये नाणं । तम्हा सिखं अक्खो न इंदिया पंच सोयाई॥९॥ एत पसंगाभिहित जह कण्हा इंदियाई पचवं । अहणा उईदिएहिणातूणं वचहरे इणमो ॥२०॥ सोईदिएण सोउं तस्सवअण्णस्स बावि पडिसेर्व । चखिदिएण दट्ठं पडिसेवितमण. या॥१॥धुवादि गंधवासे मुनिंगलियावियं व उहवियं। कंदाइ वखर्जतं गंधोवि रसोवि तत्येव ॥२॥ फासेणऽभनियमादि फासतो अप्पमासि णाऊणं । इंदियपचरखेर्ण इयणाऊणं बयहरनि ॥३॥णोडदियपक्खो ववहारो सो समासतो तिविहो। ओहि मणपज्जवे या केवलणाणे य पथक्लो ॥४॥अच्छउ ता ववहारो ओहीमादीण लक्खणं तिष्ठं । संखेवो उ | एवं अस्मन्नत्यं इमं बोच्छ ॥ ५॥ तत्थोहिणाण पदम सामित्ताकमविसुदिओ होइ। तो तं वोच्छ बहुविहं केत्तिय भेया भवे तस्स ॥६॥ संखादीआओ खल ओहीनाणस सापय डीओ। काई भवपनाया खओचसमिया य कायोऽपि ॥ ७॥ किह संखातीयाओ पगडी ओहिस्स? भण्णए जम्हा। अंगुलअसंखभामा आरम्भ पएसवीए॥८॥ उक्कोसेणमसखा
जा योगा हॉनि खेतमाणेणं। काले वाऽऽवलियाए असंखभागाउ आरम्भ ॥९॥ समउत्तरवड्डीए उकोसेणं असंख जाव भये। ओसप्पिणिउस्सप्पिणिसमयपमाणा भवे पगडी ॥३०॥ माय होति असलाजो ओहिण्णाणस सापगडीओ। संखातीतम्गहणा न केवलं हॉतिऽसंखेज्जा ॥१॥ ता होति अर्णताओ पोग्गलकायस्थिकायमहिकिच । संखातीतंति ततोऽसस
अणना य गहिया ह॥२॥ सो पण ओही विहो भवपञ्चाइयो खओक्समिओ या देवाण णारयाण य णियमा भवपच्चयो ओही ॥३॥ उप्पजमाणओ खलु भवपचइओहि जत्तियो निसओ। सा ओभासति ण 3 बढी णेव हाणी उ॥४॥ गणपमायो ओही गम्भजमणुतिरिय संखमाऊण। कम्माण खयोवसमे तयवरणिजाण उप्पजे ॥५॥ अवहीं मनाययो परिमितदात जाणते जे(न)। मुत्तिमदा विसयो ण खलु अरुवीस दस ॥ ६॥ अचंतमणुवलदा ओहीणाणस्स हॉति पचक्खा। ओहीणाणपरिणया दशा असमत्वपजाया ॥७॥
न पुण ओहीणाणं समासतो विहं इम होइ। अणुगामि अणणुगामी बदतय हीयमाणं च ॥८॥ पडिवाति अपडिवाती छविहमेवं तु होति विणेय। अणुगामिओ उ दुविहो अंनगनो चित्र मजगतो ॥५॥ अंतगतोऽपि य तिविही पुरतो तह मम्गतो य पासगो। पुरतो पुण अंतगतं इमं तु बोई समासेणं ॥ ४० ॥ जह कोई तु मणुस्सो उक चुडुलिं व दीव मणि
वाऽऽदी। काउं परओ गच्छर पनाइयंतो वजह पुरिसो ॥१॥मगत अंतगतो ऊ तह चेव य पवार मम्मतो काउं| अणुकदमाणु गच्छति अंतगतो मम्गतो एस ॥२॥ पासमत. ऊतगतो ऊ चइलादि तहेव जाच तु मणिं तु । परिकइदमाण गच्छति अंतगतं एतमिह भणितं ॥ ३॥ जो से कि मागतो? जह पुरिसो (पुरिसो जो) को चलिमादीणि। १०१० जीतकल्पभाष्य- मूलQueir arharuraभूकत्र
मुनि दीपरत्नसागर अत्र मंगल-आदि प्रास्ताविक-गाथा प्रस्तुयते
अनुक्रम
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