SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (३८ / १) प्रत सूत्रांक [१] दीप अनुक्रम [3] "जीतकल्प” छेदसूत्र -५/१ (मूलं) भाष्यं [ ४४ ] मूलं [...]] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३८/१], छेदसूत्र [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं ➖➖➖➖➖➖➖➖ - - ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ का सिर गच्छति मज्झगतो एस ओही उ ॥ ४॥ मज्झतगयस्स व ओहिष्णाणस्स को पविसेसो ? पुरतो अंतगाएणं जीवण संला वा ॥ ५ ॥ पुरतो जागति पासति एस विसेलो उ मज्झतमओ एवं तु मग्गतोही पासगतो चेन बोद्धव ॥ ६॥ अणुगामिओ उ ओही एमेसो वणितो समासेणं एलो उ अणणुगामी ओहिष्णाणं इमाऽऽहं ॥ ७॥ जह णाम कोइ पुरिसो एग महं अगणिठाण कार्ड जे तस्सेव व पेरने परिघोलण हिँडमाणो तु ॥८॥ तं चैव अगणिठाणं तस्य गतो पासती ण अण्णत्य एवं जत्पुष्पल तत्प ठितो जाण पासइवि ॥९॥ नवि जान अन्यत्यासंखमले उ जोयणे जो उ ओही तु जयगुगामी समासतो एसमनखातो ॥ ५० ॥ साहिं पसत्यएहिं सुवदमानचारिसे। उवस्वरि सुते समंततो वदए ओही ॥ १ ॥ तत्थ जहणादी तू जाव] उ उक्कोस ओहिणाणं तु ते परिणामे गाहाहिं इमं तु वच्छामि ॥ २॥ जावतिया तिसमयाहारगहमर पणजीवस ओगाहणा जहण्णा जोहीलेतं जणं तु ॥ ३ ॥ सबअगणिजीवा निरंतरं जन्तियं भरे खेतं सदिसागं परमोही खेत गिदिट्टो ॥ ४ ॥ अंगुल मावलियाणं भागमले दोतु संखेजा। अंगुलमाबलियतो आलिया अंगुल ॥ ५॥ इत्यम्मि मुहतो दिवसतो गाउयग्मि बोदशो जोयण दिवसपुहुत पक्वतो पणवीसाए ॥ ६ ॥ मरहम अदमास जंबूदरीचे व साहिजो मासो वासं तु मणुयलोए वासपुचरुयगमि ॥ ७॥ संखेजम्मि उकाले दीवसमुद्दा उ होति संखेजा कालम्मि असंखेजे दीवसमुदावि महया ॥८॥ काले च बुट्टी कालो मइयों खेबुडीए बुद्धीऍ दक्षजव मजिता खेलकाला उ ॥ ९ ॥ सुमो व होति कालो ततो मयस्यं वति खेत्तं । अंगुलीमेने जोसपिणी जो संजा ॥ ६० ॥ तिसमपहारादीनं गाहाणऽदृष्ट्वा सरूवं तु वित्परयो वा जह देहाऽऽवस्सए भणियं ॥ १ ॥ एवं तु इदमाणी ओही समासओ समस्याओ तो परिहार्य ओहाणं इर्म होति ॥ २॥ अवसठाणेहिं अपसत्येहि वमाण चारिते संकिस्समाण चित्ते समंततो हायते जोही ॥ ३ ॥ परिवयमाणो ओही अंगुलमार्ग तु संखया अंगुलमेव तं हृत्य घणू जोजणे तह व ॥ ४ ॥ जोअनसर्व सहस्सं संयमला व जान लोगे तु (तं)। पासित्ताण पडेना ओहीणानंद पडिवाती ॥ ५ ॥ से कि अपडिवात ओहिणानं तु ? जो अलोगस्स आगासपाएसं तू एगमची पासती जान ॥ ६ ॥ अस्संजाय लोए पमाणमेत्ताई टोगखंडाई जाणइ पासति यतहा खेतोही एसमखातो ॥ ७ ॥ एसो अप्पादिवादी ओही तु समासओ समखातो सर्वपेतं चहा दयादि समासतो वो ॥ ८॥ रूपी दो विसतो वोही खेचतो इमाऽऽहं अंगुल असं स्वभाग उद्योग [इ] चोच् ॥ ९॥ अखेरजाई जोगे पमाणमेसाई लोगखंडाई जागड पासति व तहा खेत्तोही एसमखातो ॥ ७० ॥ कालतो ओहिनाणी असेल भागे तु आप लीए सजणं जाणति पासति या सो उ नियमेणं ॥ १ ॥ उस्सप्पिणिओसपिणिकालमतीत अणागतं चेव उद्योग विजाणति पास या एस कालोही ॥ २॥ भावतो ओहि भावे भागं च जाणति पासति य तहा भावोही एसमस्यातो ॥ ३ ॥ ओही भवपवतियो वयोवसमियो य वणिओ दुविहो तस्स उ बहू विगप्पा दवे खेते व काल्दी ॥ ४ ॥ ते मणपजवणाणं दुहिं तु समासतो समखातं उज्जुमती चिम (उ)लमती दवादि चउविदेकं ५ ॥ दवाओं उज्जुमती तू अणतपसे जगतलंधा ऊ जाण पासति ते विवितिमिर तु विलमती ॥ ६ ॥ खेचत उज्जुमती तुहेलोगे जाच स्थणपुढची जाण पासति उपरिमले सुपपरे तु ॥ ७॥ एते वय अन्महिने विलनराएउ मुगइ पासति । सुद वितिमिस्तराए विलमती उज्जमविणो ॥ ८॥ उज्जुमती उडे ऊ जोतिसियाणं तु जाय सबुचरिं जाणइ पासह ते थिय वितिमिरसुद्धे तु विलमती ॥ ९ ॥ गिरि उज्जुमती तु उदहिदुए तह य दीव अदहिए। पंचिदियजीवाणं सण्णीपजत्तयाणं तु ॥ ८० ॥ माने मणोगहगए सहे जाणइ मणिमाणे तु तेन यनिमलवरे नितिमिसुदे तु विलमती ॥ १ ॥ [पर] विसेस तु इमो अढाइ अंगुलेहिं खेतं तु तिमि अहितं चितिमिर तुलमती ॥ २ ॥ कालतों उज्जुमती तू जहण उकोसएवि पलियस भागमसंखेजइम अतीत एस्से व फालदुए ॥ ३ ॥ जाम पास ते तू मणिजाणे सजिवाणं ते वय विलमती वितिमिरसुदे तु जाण ॥४॥ भापतों उज्जु मती अनंता मुणति पासति । सति भावाणं ते वरमगंतभागे ॥ ५॥ ते स विमती नियुतर वितिमिरे तु भावतया जाणति पासति य नहा मणपजवणाण घरभेयं ॥ ६ ॥ तं मणावा जेण विजानाति सणिजीवाणं द मणिजमाने मण माणसं मार्च ॥ ७॥ जाणति पिजणोऽपि फुडमागारेहिं माणसं भावं। एवमात भने दपगासिए अस्थे ॥ ८ ॥ मणवाणं पुण जनमणपरिचितितत्यपागडणं माणुसखेत्तविद्धं गुगपचतितं परिसक्तो ॥ ९॥ उज्जुमती लिमती जे बहती सुतंगवी धीरा। मनपज्जपणाणत्ये जाणसु यवहारसोहिकरे ॥ ९०॥ कलिले पसाओ जह होति कमेण वह इमो जीवो आवरणे शिजते विमुज्झती केवल जान ॥ १ ॥ केवल संभिरणं तू लोगमलोग तु पासती नियमावं गरि ण पासति भूर्त भई भविस्सं च ॥ २ ॥ सहि जियपदेहि, जुगवं जाणति पासई दंसणेण व गाणे पहुंची अम्भमरस वा ॥३॥ अंबरे व तो संतो १०११ जीतकल्पायं - गुति दीपरत्नसागर ~ 157 ~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy