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________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक २४९९] “पंचकल्प" - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------------- भाष्यं [२४९९] --------------------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य मम पीती जमावणुक्समेनपदोसणेवंण संमुंजे ॥८॥नाणचरणे स्याण एसपदेसो उपण्णिाओ सत्या।सं गणहरेहिं गहिये तो ते सुतनाणपुरिसा उ॥९॥कि कारणं अण्णा ? संभो. गविही उ एस साहुर्ण । भण्णा नाणादीर्ण परिवहढी एच होहिति तु ॥२५०० ॥ अण्णोऽष्णस्स समासे नाणमहीहितिजं च तं गहिता । होहिंति घिरा चरणे काहिति गिलाणकि 15 ॥१॥ जति संभोगगुणा ते ता सो कीस ग परिमुगति। मण्णति सरिसहिगेहिं व संभोगो ण पुण होणेहिं ॥२॥ अस्थि पुण केह पुरिसा निमंतिगेण पमाय कुवंति। आहारजयहि सेजा जुत्तो समुंजणायंघो।..१७१॥३॥ आहारादीतिय उम्गममादीजसुद्धगहणेणे । जे कुति पमाद तेसिसंचासदोसेन ॥४॥अणुमोवणपचतिओ माबंधो होहिनिति तेणं तुाणपिकीर संभोगो तेविय चगि(निगला बरं होता ॥५॥णणु रागदोसियत से जण एग एगऽसंमोगे?। मण्णति ण रागदोसा सुणसू जे कारण एवं ॥६॥ संमुंजणा विसुद्धा उनम्गह कुणा नाणचरणाण। संभुजमा असुबा परिसद वियाचाहि॥७॥ भोगेण पमाएर्ण तदोसाणं त हो समग्णा । एवं चरितभेदो कि पुण सो कुवति पमा ॥८॥ पूधारसपटिवदो मुब असुर्व करेह संमोग। अहवापि अजाणतो संभोगविहीए गुणवोसे ॥..१७२॥९॥ पूजाहेत पमादी सेवनि रसहेउगं च तस्सेवी । नाणादिलदकायं कुणह असुदं तु सो एवं ॥२५१०॥बारस मूलपदा खलु संभोगविहीय पणिया सुते। जत्तो पावादाणं मणितं हुदाण उक्सेपो ॥१॥ उबहिसुतमत्तपाणे, अंजलीपरगहे इय। पायणाय णिकाए य, अम्भुहान सियाचरे ॥ल०१६१॥२॥किइकम्मरस य करणे, पेयायचकरणेहय। समोसरण समिसेजा, कहाए य पधणे ॥ळ०१६२॥३॥ एते चारस भेदा संभोगविहीय समक्खाया। पावादार्ण तेसुथ इमेहिं ठाणेहि णायल०१६२॥४॥रागहोसाणुमओ जो संभोगं तु पालए पतं । सोहो गायबो तस्क्ले वो विसंभोगो ॥५॥ अहव इमेहि कारणेहि नियमा मवे विसंमोगो। संभोगविहिजो त चिवरीय आयरिजाहि॥६॥ उपरिम मज्झिम हेहिम संभोगड्डाणगं तिहा विभए। पडिसेहे पडिसेहो समणुण्णे होड समगुण्यो ।...१७३॥ ७॥ उपरिमएत्ति अहागढ मज्झिममा होति अप्पपरिकम्मा। सपरिकम्मा हिडिम संभोगविही तिहा एसो॥८॥ अहाकहा मिलति अहाकडेसु, भत्तं च पाणं तह घोषणं या। जहाकडा गच्छति हिटिमेसण हिहिया उम्भ अहाकडेसु ॥९॥ मज्झिमिता हिहिमते एम्मान हिद्विमा उपरिमेसुं। एसो तिविहोउ भवे संभोगविही समासेणं ॥२५२०॥ पडिसह पडिसहो सपरिकम्मं तु होड पटिप तस्स पुणो पडिसेहो उवरिछे मेलणा जाउ॥१॥ पडिसेहो वेदतुवरि उपरितो हिडिमे अणुण्णाओ। अह पटिसेहि अणुष्णा हॉति इमा त मुणेया ॥२॥ जो पडिसिद्ध एवं आयरती तस्स होइ पडिसेहो। पडिसेहो विगुत्ती अवितहकरणे अणुणा उ ॥३॥ केरिसएणं तु सम संभोगो तेसि होइ काययो । अहवाचिण कायचो' भण्णइश इणमो निसामेहि ॥४॥णचि एस मंदधम्मे ण मिहत्येसुन चेव अजाय। वायत्तरीविभत्तोऽवितरे पडिसेहणं जाणे...१७४॥५॥ दिनइ पेप्पइयवहा केसिपीण दिजए ण पेप्पर उाणपिरिणति पतित पनि दिनति पविउ घेपा नू॥६॥ संविम्गसंजयानं दिजइ पेप्पड य पढमभंगो उा संजतिनम्मे दिनविणपि पेप्पा कारणे नितिओ ॥१.१६४॥७॥ गिहिणनिस्थियाण पवि दिजा पेन्याई उनवरं च। नचि दिजति नवि पेपद पासस्थादीण सम्बेसि ॥१.१६५॥८॥ बावत्तरीविभत्तत्ति एस बारसविहो उसंभोगो। उहि गणित्रो बापतारि संभोगाणं पुणेयना ॥९॥बावत्तरी उ एसा एगतिगचउपचठकसंगणिया। जाचक्ष्य हॉति मेदा वेसु विसुबेसु संभोगो ॥२५३०॥ पडिसेहो असुदेसु कापो संभोग एस बक्लाओ । अहुणा उलिगकर्ण बोच्छामि जहाणपुपीए॥१॥जो युधिवक्ताओ जिणवेराणं तु बोहवी कप्पो । रुदणहकक्खमादी सोचेच हपि णायबो॥२॥ इति एस लिंगकप्पो पोम पडिसेवणाएँ कप्यं तु जारिसय सेविति सुबममा समासेर्ण ॥३॥गहणपरिझुंजणाए निवापाए तहेव बापाए।वापाए दुषगहणं निवापाएय नियमहर्ण ।..१७५॥४॥ पडिसेवणा उचिहा महणे परिझुंजणे य नायत्रा। एकेकाविय पिहा निवाचाते य बापाते ॥५॥ वाचासम्मी सुदं गेह असुदं च एतयमहर्ण। परिभुजनीवि एवं निचापातम्मि वोच्छामि ॥६॥ उमाममादीमुई गेण्हनि परिमुंजती य तियमेयं । अह पुण को पापातो' पकवणा नस्सिमा होइ॥७॥ असिवे ओमोदरिए राबडे भए आगादे । एकायतुगम. बादाय बाघाते नियधाते य ॥८॥ सुबमसुदंच जाहिं अहवा सबित्तमीसग वाचि । एतेसि दोहं तू मापाते गहण भोगे य॥९॥णिवाघाए छल्हषि अमिताणं तु गहण कायार्ण गहिबस्स य परिमोगो तसेच य होड़ कायको ॥२५४०॥ परिभोगे वाचाते गहिए पड़ा तु होज ने णात। जहाहाकांनी ताहेय तयं ण परिभुजे ॥१॥ वाचाते सेवतो अफिचमेयं तु चिंतए साहा होडतहा निजरतो जो पुण इणमो समायरति ॥२॥ पूजारसपडियदो ओसण्णाणं वाणुयत्तीय। चरणकरणं निगृहतितं जाणऽणुयत्तियं समणं ।।...१७६॥३॥ पूजारसहेवा बेईजह किनमेष एवं तु ।मा मे ण देहिति पुणो जह एसोऽकियकारित्ति ॥ ४॥ अहवा ओसवाणं तु अणुयत्तीय चेति को दोसो। आहाफम्मादीसु? गवरं मा कीरउ सयं तु ॥५॥सो गृहति चरणादी एवं तुच्छ सुतस्स साम । वम्हा उपहलेजा मुई मम्गंतुकिंचाणं ॥६॥णिस्साणपदं पीहइ अणिस्सविहरतयं ण रोएति। तं जाण मंदधम्म इहलीगगसर्ग समणं ॥७॥ अहवा उम्मग्गो खलु णिस्साणं तु पीहए जो उ। तस्स उठेवसुतत्यं ण कई दोसा इमे तहियं ॥८॥ पंचमहायमेदो उकायवहो य तेणऽणुणाओ। (२७८) PA२११२ पञ्चकन्यभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर दीप अनुक्रम [२४९९] ~259~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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