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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [०२००]
दीप
अनुक्रम
[०२०० ]
“पंचकल्प” – छेदसूत्र- ५ / २ ( भाष्य )
भाष्यं [०२०० ]
.... आगमसूत्र [ ३८ / २], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...
सेगा जोग्गा ॥ ९ ॥ बाले बुड्ढे नपुंसे व जड्डे की य वाहिए। तेणे रायावगारी य, उम्मते य असणे ॥ २१॥ २००॥ दासे दुडे य मूढे य, अणत्ते जुंगिनेद्र य ओषदए य भयए, सेहणिफेडितेति ॥ २२ ॥ १ ॥ गुडिणी वालवच्छाय, पद्मावतुं न कप्पए एसि परूचणा दुबिहा, उस्मानचायसंजुता ॥ २३ ॥ २ ॥ कारणमकारणे अहच कारण जयणेतरा पुणो दुविहा। एस परूवण दुविहा एतो बालादि वोच्छामि ॥ ३ ॥ तिविहो य होति बालो उकोसो मज्झिमो जहण्णो य एतेसि तिष्हंपी पत्तेय परुवर्ण बोच्छे ॥ ४ ॥ सतडुगमुकोसो उप्पण मज्झो य चतुतिय जहणणो एवं नयनिष्कण्णं समायज होति गय भेदा ॥५॥ जहणो जहणसभावो मज्झसभावो तहेब कोसो एवं मज्झिम तिणी उकोसावी भवे तिष्णि ॥ ६ ॥ छिंदमछिंदता तिनिपि हरितादि वारिता संता पुणरविय छिंदमाणा जति दिन गुरुण बण्णेन ॥ ७ ॥ उकोसो दट्ट्र्ण मज्झिमतो ठाति वारितो संतो जो पुण जहणालो हत्ये गहिओवि गवि ठाति ॥ ८ ॥ दाहिणकरम्म गहितो नामकरणं स छिंदती ताई मंडलम व धरितो चिट्ठा एवं भणितो तु ॥ ९ ॥ जह मणितो तह तुठितो पढमो बीएण फेटियं ठाणं तहओ न ठाति ठाणे अह सम्भ (व्यति विस्सरं रूपति ॥ २९० ॥ एवेसि बालाणं पव्याक्तिस्सिमं तु पच्छित्तं तिव्हपि कमेणं तू कोच्छामी आणुपुथ्वी ॥ १॥ अ तीसा बीसा उवीसाचेय तिविहवालम्मि तव छेद बीस पढमे बिति मिस्सा ततिय छेदाती ॥ २ ॥ उणत्तीस दिवसे सिक्खावितस्स मासियं लहुर्य ॥ उकोसम्म बाले सोचे असिक्ख गुरुगो ॥ ३ ॥ अण्णे अउणत्तीस गुरुजो सिक्ले असिक्सि चउलहुया पुणरवि अउणती लडुगा सिक्खेवरे गुरुगा (गुरुगा सिक्खे य उहुगा ) ॥ ४ ॥ अपने अउणती गुरुगा सिक्ने असिक्सि उडुगा (अण्णे उ अउणतीस सिक्खाविंतस्स होति पच्छित्त) उडुगा सिक्लम्मि य असिभिल गुरुगा अउणतीसं ॥ ५ ॥ अण्णे सिक्खासिक्खे उम्गुरु तब छेद छग्गुरू चैव मूलऽणव पारंचिगं च एकेक तत्तो ॥ ६ ॥ अहवा सो चेव तवो छेदादी मासमादिया होति सिक्खार्जितमसिक्ले मूलेकदुगं तहे ॥ ७॥ अहवा सो तो छेदोपणगादि जान उम्मासा सिक्वाविंतमसिक्ले लहु गुरु एकेक उगृतीसा ॥ ८ ॥ मूलण च तओ पारंचियमेव होति एकेकं सिक्लासिक्खपणारा उकोसे होति वालेते ॥ ९ ॥ अहवा सो चेव गमो दिहिं सिक्खितरवजिए होति मासादितवच्छेदा मलाईचा दिनेकेकं ॥ २२० ॥ एमेव मज्झिमेऽवी नवरं दिवसा तु बीस बीस तु एमेव जहणणेऽवी उबीबीस दिवसा तु ॥ १ ॥ अहवा मझे मीसा जहणछेदादि अन्नपरिवाडी तबछेदेगंतरिया मज्झि जहणे तु भयणाए ||२|| मज्झमि वीस लहुआ सिक्वमसिक्सस्स मासिओ उदो वीण छेद लहुओ सिक्स सिक्से गुरुग तवो (गो जो ) ॥ ३ ॥ अदोनी एवं तयछेदेगंतरा तु यष्या जा उम्मासा ताब तु परजो मूलादि एकेकं ॥ ४॥ अणावीस जगे सिक्खाक्तिस्स मासिओ] छेदो। सो थिय जतिक्खि गुरुओ जा उग्गुरु तिष्णि परज तु ॥ ५॥ अहवा ण होइ छेदो ठाणे चिप मूल तह य अगवट्टो पारंचिए य तनो एवं भयणा जहणस्स ॥ ६ ॥ अहवा पढमे छेदी सहिवसे चैव हवई मूलं वा एमेव होति बीए तइए पुण होति मूलं तु ॥७॥ किं कारण सोधेसा? दोसा तहियं हमे समक्खता पाच ते तु उड्डा हाई मुणेच्या ॥ ८॥ [भस्त वयस् फलं जयगोले चैव हाँति उकाया णिसिमन्तमंतराए चार जजसो य पटिबंधों ॥ २४ ॥ ९॥ लोगो बेली पेच्ह इणमो भवईण तू फलं तु गोलवितो ही सो जिनिए मुकी ॥ २३० ॥ मत्त जिसि ममामाणे दिले तू रातिभतभंगो तु हव अदितम् तराइ बेड लोगो य ॥ १ ॥ चारपाला हु इसे जेबालाई तु एवं भंति लोगे जायति अजसो अहो इमे गिरणुकंपत्ति ॥ २ ॥ तेग व परिबंधे पडिमा पनि कहिंचि विहरति । जे दोस णीयासे ते पावतेय अच्छा ॥ ३ ॥ ऊपड़े पत्थ चरणं पव्वावितोऽवि भस्सई चरणा मूल्यबराहिणी खलु णारभते पाणिओ चे ॥ ४ ॥ उपायमग्पार्थ पाऊणं व तयोकम्मं एमेव उद उहि जिनवादसविए दिखा ॥२५॥५॥ उग्पायमणुग्पातो मासो पर उब उहि तवेसी एमेन उम्मिहोचिय दो सेसाण एकं ॥ ६ ॥ एवं पायच्छितं गाउ ण परवानएनओ बालं वर पावती जिण चोरसपुच्चअतिसेसी ॥ ७ ॥ ने जाणि गुणागुण बहुगुण पाऊण ते दिवखति के पुण जिणमादीहि दिक्विय बाला ? इमे सुणसु ॥ ८ ॥ सत्थाए अनिल मणओ सिनंभषेण पुच्यविदा अतिसेसिणा व बतिरो उम्मासो सीहरिणानि ॥ ९ ॥ एते अव्यवहारी जह पच्चाविती गच्छवासी तु एवं इच्छं गाउं भण्णनि इणमो जिसामेहि ॥ २४०॥ उसने व महाकुले जातीय व सनिसिजतरे अाकारणजाते वाले पचणाया ॥ २६॥ १॥ पाएँ] परिणए बिलकुले त बाल होजाहि मा सकि
॥ २ ॥ णामय नहीं देव(घेर) गमादी मयम्मि संतमि जणवादरक्खतो सारखे जाणवलाई ॥ ३ ॥ एवं सचितराणवि अज्ञायविटिटिबंध परिणीए कर्ज करेमि सचिवो जदि से पन्चायतह बालं ॥ ४ ॥ एतेहि कारणेहिं पचाविज्ञाहि गच्छवासी तु पावियाणसि इमेण विहिता सारवणा ॥ ५॥ अन्ते पाणे घोषण सारणया वारणा निओजण्या चरणकरणसज्झायं गायत्रो पयते ॥ २७ ॥ ६ ॥ निहुरेहिं आउं पुस्सति देहम्मि पाटचं मेहा अच्छति जन्य गणज्जति सट्टादिसु पीहगाडीया ॥ ७ ॥ ठावेनिसालवाडा पडले हृणमादिसारणमभिक्वं वारिजए अभिक्तं हरियादी छिंदमाणी व ॥ ८ ॥ सामायारि सर्व सज्झायं चेव ऊ पयलेणं गाहिजति सो एवं जयणा एसा तु वास्स ॥ ९ ॥ (२६७)
१०६८ पकल्पभा
मुनि दीपरलसागर
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