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________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [७] + गाथा ॥१५५|| दीप अनुक्रम [३८७] “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं ) ------------ अध्ययन [ २ ], उद्देशक [३], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - .......... - मूलं [७] + गाथाः || १५५...|| [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ ~ 270~ - हा परिणमेजा त जहा मार्ग पति पाओ, जाव णं णगं पयलंति पातुओं ताव णं अत्यं पाहिजति पोग्गलनियोरुबाइयाओ, जाव णं अत्यं बाहिनइ नियंव तावदुकले घरजा गनहि जा धरेागसहिताय से गोवलकलेजा अनीय सरीरावत्थं जाणं गोलजा अत्तीयं सरीरावत्यं तावणं दुबालसेहिं समएहिं दरनिचिट्ठे नवे बोंदी, जाय गं दुवालसहि दरनिबिडे बोंदि भजा ताणं परिखा से ऊसासनीसास, जब पहिलेना उसासनीसासे नाव मंद मंद उससेजा मंद मंद नीससेजा जाय गं एयाई इनिवाई भावंतर अत्यंतराई बिहारेखा नाय जहा महम्वत्थे केंद्र पुरिसेड वा इथिए वा चिलाए पिसायाए भारतीए असंबद वियना एवं सिया इत्वीय सिमान्तमोहमम्मणाला पुरिसे दिवे वा दिवा वेद वा अवरुद्र यागयजीवणे वा पप्पनजीवणे वा महासतेंद्र वा हीणसतेद वा सप्यु रिसेा वा जाव अपरे वा केई निदियाह महीमजाइए वा अझ सझसे आमनेमाणी उद्याना जाय संखेन भेदभिषेणं सरागेणं सरेण दिडीए या पुरिसे उड़ाया जिन असलेलाई अवस विणी उस्सग्विणीकोटिटलाई दो नश्यनिरिधा गवी कोसद्वितीयं कम्म कलिये आसितं निबंधन करेगा, सेऽवि णं समयं पुरिसन्स णं सरीरावयचफरिणामिमुह भजा गोणं करिलेला तंसमयं कम्मदिकाननानि अएयावसरम्मि उ गोयमा संजोगेणं संजुनेजा, सेऽविणं संजोए पुरिसायने, पुरिसेऽनि जे जुने से धन्ने संजु से अटा से भय एवं दुखाइ जहा पुरिसेवि में जे थे न जुज्ञे से धन्ने संजु से अपन्ने ? गोयमा जे गं से तीए इपीए पानाए कम्म चिड़ से णं पुरिससंग निकाल, ते तु निकाए कम्मेण सा बराई ने नारि सायं पट्टचा एगिदियनाए पृढवादीसुं गया समाणी अणतकालपरिषद्वेगवि णो पावेजा बेदियन्त एवं कवि बहुसेन अणताओ एगिदियन लविय बेदियन इंद्रियनं चरिदियनमवि केसेणं वेयइना पंदित जागया समाणी दुगित्पिर्य पंडरिष्ठं वेपमानी हाहाभूपकटुसरणा सिविणेवि अदिसोक्खा नियं संतानुवेनिया सुहिमश्वविज्जिया आजम्मं कुधाणिजं गरहणि निजि सिणि बहुकमत अगषासहि दरभरणा सोगपरिभूया चडाईए संसा, अन्नं चणं गोयमा जावइयं तीए पाइपीए निकाय कम्मदियं समजिय नावइयं इथियं जमिसकामे पुरिसे उक्कियर अतं कम्म निकाय समजा एते अहे गोपमा एवं युवाइ जहा पं पुरिसेऽवि णं जेनो संजु से गं धन्ने जे संजुज्जे से अपने मर्च (केस) पुरिसेसणं पृच्छा जानवासी गोषमा उहे पुरिसे नये तंजामाहमे अमे मजिसमे उनमे उत्तमुत्तमे सनमे १० तत्थ जे सनमे पुरिसे से र्ण पर्वगुम्भजवणसमुत्तमरूपलावण्ण कंतिफलियाएव इपीए नियंवा वाससपि डिजा णो णं मणसाचि में इि ११] तु से उत्नमुत्तमे से कवि तुहिनिहाएणं मणा समयमेकं अभिसे तहावि पीयसमए मर्ण संनिरंभिय अत्ताणं निदेला गरज. पुणी बीएणं मे इत्थीयं मनसापि असे जे से उत्तमे पुरिसे से अकवर्ण वा इथियं कामिनमाथि देखि अभिला जाव में जार्म वा अदा या इथीए समं विकम्मं समारेला १२ जणं भयारी कयमाणाभिग्गहे, जानो भारी नो तो निकले यणा. न उनि कामे असमविज्ञातस्स एयस्स णं गोयमा अस्थि थे कि तु संसारिणं नो निबंध १३ मे से निकलते सदि चिप इर्म समायरेजा, णो णं परकलतेर्ण, एसे य णं जइ पन्छा उम्ममयारी नो भवेजा तो गं जावसायविसेस में तारिसमंगीकाऊ अनंतसंसारियनणे भयणा, जओ णं कई अभिगयजीवापयन्थे इस आगमाणुसारेण साहूणं धम्मोपमदाबाई दानसीलवभावणामइए चम्मचे समजा से गं जइकवि नियमभंग न करेजा नओ सायपरंपरा माणुसनसुदेवत्ताए जाव ण अपरिवटियसम्मने सिमेण वा अभिगमेण वा जाव अट्टारसीगंगसहस्वारी भविताणं निरुद्धा सवदारे चियरमले पाय कम्मं वसानं सिज्झिना १४ जे यणं से अहमे से णं सपरदारासनमाणसे असमयं कृरवसाय वसियथिनेहि सारंमपरिहाइगु अभिरए भज्जा, गहाणं जे य से अमाह से महापावकम्मे साओ इस्वी ओ वाया मनसाय कंमुना तिविहंतिविद्वेषं अणुसमयममिसेज्जा तहा अर्थतज्सवसाय अज्झसिएहि चिनेहिं सारंभपरिहासने कागमेज्जा. एएस दोषि गोयमा अर्णसंसार १५ बजे से हमे ऽविणं से अहमाहमे पुरिसे तेसि च दोष अनंतसंसारिवणणं समवाये तो अहमे एगे अहमाहमे एतेर्सि दोह पुरावस्था के पचसेसे गोषमा जेणं से अहमपुरिसे से जहपि उ सपरदारासनमाणसे रासायनसिएहि चिनेहिं सारंभपरिहासतचित्ते महावि नं दिविखयाहि साहुनीहि अक्षय (हिंसावासनियाहि याहि गारपीहिं या सदि पियातिए समाणे यचियमसमायरेजा. जेवणं से अह्माहमे पुरिसे से णं नियजणणिषभिई जाय णं दिक्खियाहि साहूणीहिपि समं चिपमं समायरिजा. ते चेत्र से महापावकम्मे सबाहमाहमे समस्ताए से णं गीयमा पविसेसे नहा व जेणं से अमपुरिसे से अवर्ण का बोहि पावेजा, जे य उण से अमामे महापावकारी दिक्खियाहिंपि साणीहिपि समं चियमंत्र समायरिया से तोचि जनसंसारमाहिनिपाजा. एस णं गोयमा चितिए पविसेसे । १६। तत्थ में जे से समुत्तमे से छउमत्यवीरागे गये, जेणं तु से उत्तमुत्तमे से अणिनिपभिनीए जा उपसमगे या खाए या नाम निओनीए जेणंच से उनमे से अप्पमनसेज ए. एवमेएसि निरूपणा कुजा । १७ जे उण मिच्छदिडी मविऊ उभारी भवेज हिसारंमपरिगहाण विरए से मिट्टी गी णं सम्मदिडी, चिणं वेदयजीवापयत्यसम्माचाणं गीयमा नोणं उत्तमते अभिनंदनले पनि वा भइ जओ णं अनंतर मचिए दिषोसलिए विसए पत्येजा, अनं च कयादी विदिविधियाओ चिलिया न या परिसिजा नियाणकडे वा वेण्या | १८ जेवणं से निमज्झिमे से णं तारिमज्यायसायमंगीकिचाणं विरयाविरए दहचे १९ तहा गं जे से हमे सहा जेणं से जमाहमे सि तु एमने जहा इत्थी नहा ११२२ महानिशीथच्छेदसूर्य, ज्य-२ मुनि दीपरलसागर プロジ
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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