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________________ आगम (३८/१) “जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [१५] ------------- ---------------- भाष्यं [९७०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प" मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [१५]] आदिम्गहणेणं पुण राज्य पक्खिय तहेव चाउमासे । संवच्छरिए यतहा अतियारा होति बोबा ॥२॥ सासु य वितियपए देसणणाणवरणावराहेसु । आउसस्स तदुभयं सहसकाराणा चेच ॥मू०१५॥३॥ पटम उस्सम्गपदं अववादपयं तु विविययं होति। सवग्गणेणं पुण सावराहा मुयशा ॥४॥ सणणाणचरिते जे अवराहातु होस्ति गीतत्थे। कारणजयणाजुत्ते एवं जयंतस्स जे उमये ॥५॥जह तिक्लउदमनेगे चिसमम्मिचिजश्मि तो। कुणमामोवि पयतं अचसो जहपावए पडणं ॥६॥ तह समणसुविहियाचं सापयत्तेणची जयंतागं। कम्मोदयपचाइया विराहणा कस्साहवेजा ॥७॥ एरिसजवणाजुले तस्स विलोहीय तनुभयं होति। सहसाविहोइ बनुभयं आवणे सणाईसु ॥८॥ताभयकार सम विवेगदारं A अयो पक्क्वामि। कस्स पुण विवेगो ? तत्व इमा होति गाहातु॥९॥ पिंडोबहिसेजादी महिय कडजोगिणोषयुत्तेगं । पच्छा गायममुख सुबो चिहिणा चिमिचती ॥मू०१६॥९७०॥ E'पिंडि संघाए' धातू पिंडो संघाओं मण्णए तन्हा। सोह सचिताई गवणयमेवो पुणेकेको॥१॥ पुढवीजाउकाएलेऊयाऊवणस्पती येवा इंदियतेवियचउरो पंचिदिया येव ॥२॥ एकेको पुण तिषिहो पुढचीमादी सचित्तमादीओ। सत्तावीसपमेयो पिंडेस समासतो होवि ॥३॥ ओहिय जोकणहिलो उवही दुविहीं समासतो होति। होर विभागेण पुण जह श्रमनिओ ओहजुनीए॥४मणति सिमा बसही आदीसहेण होति डगलादी। ओसहमेमजाणिय बाबीसदेच गहियाणि ॥५॥ कडजोगी गीयत्यो जे मुल होति जो उ गहि-ज बत्यो। पिंडेसणपाणेसणवत्थेसणसेजमावीणं ॥६॥ अहया छेक्सुयादीमुत्तस्थाहिमितो तु गीयस्थो। गहित तेषुषयुत्तेण जात पच्छा असुदं तु ॥७केण असुब? भणति उम्मअम्पायणेसणाबीहिं। अहवापि संकियादी सो मुजाति विहि चिनिचतो ॥ ८॥कालवाणाऽतिच्छियमणुग्गवत्यमियगहियमसढो उाकारणगहिरिए भलादिविनिचणे सुबो । मू०१७ ॥९॥ पदमाऐ पोरिसीए पदिगाहेताण असणपाणाडी। जो तायमनकामे कालातीतं धर्म होति ॥ ९८०॥जदोषणा परेण आणियनीय असणयाणादी। एयवाणातीत सो सट असतो बड़कामो॥१॥ विगहाकिड्डाबीहिं होति सदो एस होति असदो तु। मेलम्णवानहत्ता होमन सागारिया तत्व ॥२॥ पंडिलजमावा बा तेणाहि(दि)मयंपनत्य होनाहि। एमादीकोहि जसदो तू होणायडो॥३॥ एमादी जसदोज विही विनियों होति सुद्धो उ। अणुवित अत्यमिओषा गहियं असदेणिम योच्छ ॥४॥ गिरिराहमेहमाहियापसु. स्थापरिओं होज बा सविया । उम्मयबुद्धी साहू एमेव य होवऽणस्थमिए ॥५॥ पञ्छा मायमणुगाय आइप अत्यमित्रों एस इणि तु। एयण्णायंमिऽसदो सुद्धो तु पिड़ी बिगिचतो ॥६॥ आयरिए य गिलाणे पाहुणए लमग बाल पुढे या एतेसटा गहिसत होती कारणम्महि ॥७॥विहिपरिभुत्तुवरिय विही विनिचन्त होति सूर्य ताएये विवेगवारे एत्तो पोमच्छामि बोसा ॥८॥गमणागमणविहारे सुयंमि सावजसुविणयाविसु या गावाणविसंवारे पायच्छितं वियोसग्गो।मू०१८॥९॥ वसही गुस्मूला वा गमणं अग्णय पुणवागम। एवं गमणागमणं विहारसज्झायभूमी तु॥९९०॥ तो समायणिमित्तं गमर्म अपत्य होज साहुस्स। गमणागमणविहारं णात होति एनं तु ॥ १॥ समितिविसुद्धिणिमिन एथं पच्छिन्न | होति उस्सगो। होति सुतं सुतणाणं उसगमादि णात ॥२॥ पट्सवणुदिसणे या समुदिसणे तय होतऽनुमाए। कालपटिकमणम्भि य सुपस्स एवं तु उस्सम्गो ॥३॥ पाणतिपायादीचा साक्जो सुमिणतो तु णानयो । आदिग्गहणेणं पुण अणवनउपसत्याएरॉपि गा चस्सदरगाहणाओ एस्सउणा दुणिमित्त गहिया उ। पढमक्यादीएम य सबेमु विसोहि उम्सगो ॥५॥णाचा चउबिहा तू समुरणाविक विग्णि उणदीए। उजाणी ओयाणी तिरिच्छमामी भवे तश्या ॥६॥ जंघडा संघहो णामी लेयोचारिं तु लेखुवरि । बाहोड़पाइओ खलु णविसंतारेगमादीजो ॥७॥णाबाबीहि पएहि जाप तु उडुपाबि संतरतो तु। सत्य तु पच्छित जतणाजुत्तस्स उस्सम्यो ॥भत्ते पाणे सपणासणे य अरहतसमगसेनासु। उबारे पासपणे पणवीस होन्ति उसासा ॥१९॥९॥ मत्त पाण कंठं सपणं सेजा उहोति मातबा। बास उवेसन' धातू उकविसणं आसणं होति ।१०००॥'अरह पूयाए' धातू पूवामरिहंति नेगर अरिहता। अरिहंति बंदण नमसणं चतम्हा तु अरिहंता ॥१॥कोहाई उ अरी ऊ हर रथ काम हो अहनिह। अरिणो करब ईता लम्हा उहति अरिहंता ॥२॥ बयणं सेज पहिस्सय भत्तादी जान होति सेना ऊाहत्यसयाउ परेणं गमनागमणम्मि सबस्य ॥३॥ समितिविदिणिमितं जयनाजुत्तस्स होति उस्सगो। पचीस उस्मासा उचारमयो तु वोच्छामि ॥४॥ उच्चारती उचार परसवती वेण होति परसवर्ण । सन्या काय कमसो आप इमो हो सबत्यो ॥५॥ उच्चरति कार्य तू जम्हा तेणं तु होति उच्चारो। पायं सवती जन्हा नन्हा नू होति पासवर्ण ॥६॥ परिठविएसएमु हत्यसया आरतो परतो वा। सोही काउस्सम्यो पनुनी होति उसासा ॥७॥ हत्यसतवाहिरातो गमणागमणारएस पणवीस । पाणिवहावि सुमिणए सतमहसतं चउत्पम्मिमु.२०॥८॥गाइव पदम कंठ पाणबहे सुमिणसने रातो। कतकारिबाबिएसुं विसोहि सास सतमेग॥९॥ एक मुसाचादाविस उत्सम्मो जाम होति णिसिमतं । सतमुस्सासाण भवे जहमतं पुण पउत्पम्मि ॥१.१॥ देसिय गाय पक्लिय चाउम्यासे बोब बरिसे या सतम तिणि सना पंच सतध्वनर सहसं ॥ ०२१ १०५५ जीतकल्पभाष्य - मुनि दीपरागर अनुक्रम [१५]] अत्र विवेकाह एवं कायोत्सर्ग-प्रायश्चित वर्णयेते ~175
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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