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________________ आगम (३४) “निशीथ” – छेदसूत्र-१ (मूलं) ---------- उद्देश: [१७] ------------------------- ------------ मूलं [१३२] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३४], छेदसूत्र - [१] “निशीथ" मूलं प्रत सूत्रांक [१३२] FORPOvyारकरप दीप अनुक्रम [१०३६] दगं मा निनोदगं या नुसोदर्ग वाजवादन या भुमोदगं या आयामं पा सोचीरं या अन्यकत्रियं वा सुदपियर्ड या भरणापोय अर्णबिलं अपरिग अबकन्तजी अनिवन्ध परिम्माहेब ५० सा. ३२१ अप्पणी आयरिबनाए लक्खणाई वागरेर वागरन वा सार१३३१० गाएज या बाएज या नोज बा अभिणएजमा हपहेसिव हस्थिगुलाला उमड- 4 सोहनायं वा करेड करने या सा ॥१३४१० मेरीसहाणि वा पलह वा मुस्वः या मुईग- या एवं नंदि० या शसरिया याउरिया उमग या मरस्य या सवय या पएस. या गोलहवा अजयराणि मानहगाराणि वित्याणि सदाणि कापसावपडियाए अभिसंचारेह असा बारसमसममेग या । १३५० मीणामहाणि गाविपतिः बाणा पीसममा बीणाइया तुबपीना या झोराहयक पा रंकूणस या अनयराणिया नहषगाराणि विनयाणि सदामि।१३६ सालसामिया कसतान बालनियावा गोहियामा मकरियया कामि० या महइ वासमालिया वा वालिया वा अनवराणि वानहगाराणि मुसिराणिका १३७१० संससदापि वा सवा वेणु वा खरमुहिः या परिलिक बाद या या अन्यराणि वा तहणगाराणि शुसिरामिक १३११३८० अध्याणि या कन्विहामि वा जाप इह पर इएस वा सदेस जान अन्नावरजेमाण या सा१४' सेवमाणे आवजा चाउम्मासिय परिहारहाणे उपाइयं ।१३९-१५२० सनस्समो उद्देसओ २७॥जे भित्र अणडाए नायं दुलहा दुरुसा1११ नायें किगह किणावेदकीयमाहा दि. जमान दुरूहा दुरुहर्म या सा-एवं जो चोदसमे उदेसे परिम्गगमा सो पत्रो जाव अगा , गयरं वदतिति माणिया ।२-५० बलाजो नार्य जले ओकसावेह ओ.सा . जनाभो नायले उकसावेत उकसा०1७1. ना उस्विरसादासम्म नार्थ पिलावर पिसापरिणावियं कटर नावाए दहादसा०1१०1० उदगामिणि या नार्य अहोगामिगि वाना एव्हा.मा११० जोषणवेलागामिर्माण कारजोषणकेलागावा नार्य दु०९०मा० १२०० नार्य आकसावा ओकसावेड पेवाड़ खणादा कड़वई०१३1० नार्वजानितएणवा परिफडएपना संगना बनाना चाहेइनासा।१४.नावाओ उदगं भायणेग वा पडिमाण वा मनेण या नावाउस्सिागंण पाउस्जिद उ.सा. १५. ना उनिगेण उवर्ग जासवमाणि उपस्या कजलमाणि येहाय हत्येग या पाएग वा आसन्धपतेण वा कुसपनेण वा महियाए वा चेलकपणेग वा परिपीहेड या सा-९६० नावामओ नावागयम्स असणं वा पहिगाहेदप० सा० '३० एनेण गमेण गापागञोजन्तगतस्सणावागतो पंकगयरस पावागतो बलगतस्स एवंज. याएपनि चनारियकारणविपनारि मनगएणविपनारिमाया ।२७-३२.प किग किनाव कीचमाहट विजमार्ण परिग्गाहर.सा, एवं चोदसमे उसे पतिमाहए जो गमो मणिमओ सोय उपि यग्येण गोपनी जाप वासापासं संवा संव.मानवरं निकोरणं नरिव'३१'सेवमाणे आपला चाउम्मासिय परिहारझर्ण उपाइय 1३३.८८।जहादसमो उदेसओ स्ट जेभियस वियह किया किणार की मार देजमाणं पतिमाहेर प.सालएवं पामिनि पामिचायति पामिचियमिनि 1२० परियति परियडायति परिबहियमिति 1310 अच्छेज अनिसई अभिहई।४.जे.भिक्यू गिलाणस्सऽहाए पर तिन्हं विषदनीगं पडिम्गाहेइ ५० सा1५/वियर महापामाणगाम ददददसा०11० वियर मालेगालावेद गालिय० २६।७1०पउहि समाहि समझाय फरेहकरेन यासानं पाए संझाए पग्थिामाए संमाए अपर मज्जादे अटरनेटाकालियमयस्स पर लिई पुष्ठागं पुष १०सा/दिहिवायरस पर सनष्टं पुष्डाणं पुष्ाद पु०सा ३६११०० अउसु महामहेसुसजमार्य करेह करेंत या सास-इन्दमहे खंदमहे जखम भयमहेशपमहापारिएएसजशकर करेल वासा.तं.सुगिम्तियापादिवए भासादीपा नवय(इन्दमह पा० कति यपा।१२. पोशिस सदाब उबाइगावेद उनासा1१३पाउफार्म सन्झायन करेनक.सा.y'1१1.असम्झाइए सायं करेइ क.सा॥१५अप्पणी असन्माइए सज्झार्य को क० सा० १५२१६० हेहिलाईसमोसरगाई अवाएना उबविताई समोसरणाईया या या सागरनब बचचेराई प्रवाएना बरिमसुर्य बाएव वा बासा० १६९९८अवनं पाएर या सा०।१९।०-वन न पाएननवा-सा/२0) जपनं गाएर वा० सा०।२११० पत्तं न पाएर नया सा- १२१५१२२शदोहपिल सरिसमा एक संचिकलाचेर एकमसचिलावे एकमाएड एकनवाएनया-सा. '२२१।२५आयरिबउवमाएहि अविदिशं गिरं माइया आईसा०।२४० अनउ-2 वधियं वा मारस्यिय बा बाएइवा. या सा-२५/० पडिया पर सा०।२६१० एवं पासत्य।२७-२८ा ओस । २९-३०॥ कुसीन।२१-२२। नितिय ३३-३४३ संसनं '२४३' । मेरमाणे आयजद चाउम्मालियं परिहारहाणं उग्पाइयं । ३५-३६॥ एगुणीसइमो उदेसी १९॥ जे भिमय मासिवं परिहारहाण परिसे बिना आलोएजा अपकिउंचियं आलोएमास मासिपं परिनिपं जाएमागसादरोमासियं एवंहारपत्मरेसममा पो जाय इसममा समना एगलसोबहनोविजाप सामेवं सकय एगलो साहणिना जाए प पडवगाए पलिए निविसमाणए पडिसेचिजा साविकसिया तत्वेन आरहेया सिया '३०९१-२२०० इम्मासिय परिहारहाण पडुलिए अणगारे अंतरा दोमासिब परिहारद्वाग (२४०) ९६०निशीथ दसु उसी-२० मुनि दीपरनसागर /05 VIRA अत्र उद्देशक: २० आरब्धः ~118~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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