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________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [8] + गाथा |||| दीप अनुक्रम [3] Sexscev “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ ( मूलं ) DARKSTA - • उद्देशक [-], - मूलं [१] + गाथा ||१|| - --- "महानिशीथ" मूलं अध्ययन [ १ ], - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ....... ....आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] - ॐ नमो तिवस, ॐ नमो अरहंताणं सूर्य मे आउसंतेगं भगवया एवमक्वायं इह खलु छउमत्यसंजमकिरियाए बट्टमाणे जेणं केई साहू वा साहनी वा से णं इमेण परमननसारसम्भूयत्यप महा में मा अणुसमयमहष्णिसमणालसत्ताए सययं अणिविष्णे अणूण (गण) परमसदासंगरामागए विनियाने अणिगृहियवलपिरियपुरिसकारपरकमे जगिलाणीए बोसट्टचतदेहे सुणिच्छिए एगम्मचिने अभिनवणं अभिरमा १ णो णं रामदोसमोसियायनाणावणाणेगप्पमायइरिससायागारवरोऽज्झाणविगहामिच्छन्नाविरहदुजोगजणाययणसेवणाकुसीलादिसंसग्गीसुण भक्लाणकलह जातादिमयमच्छरामरिसममीकार अहंकारादिअणेगनेयभिष्णतामसभावकलुसिएणं हियएवं हिंसालियचोरिकमेहुणपरिहारंभसंकप्पादिगोयर जज्जावसिए पोरपड महारादपणचिणपावकम्ममललेवसलिए अबुदासदा । २ एकमुतणिमिसणिमिसमंततरमवि स विरतेजा जहा ३ उचलते सबभावेण चिरते व जया भवे सत्य सिए आया, रागेतर मोहरजिरे ॥ १॥ तथा संवेगमावणे, पारलोइयत्तणि एगोणेसती समं. हा म कल्प गच्छ ॥ २ ॥ को धम्मो को बज नियमो को तवो मेऽणुविडिओ कि सीलं धारिये होग को पुण दाणो पर्याच्छिओ ? ॥ ३ ॥ जस्साणुभावजोऽण्णत्य हीणममुत्तमे कुठे सग्गे वा मणुयलोए वा सोक्खं रिद्धिं जहं ॥ ४ ॥ अहवा किंच विसाए? सर्व जाणामि अन्तियं दुधरियं जारिलो वाऽहं जे मे दोसा प जे गुणा ॥ ५॥ घोरंधयारपायाले गमिस्सेऽहमणुत्तरे जन्य दुक्खसहस्सा ऽणुभविस्सं चिरं वह ॥ ६ ॥ एवं सवं चियाणते, धम्माधम्मं सुहा जायेगे गोयमा पाणी, जे मोहाऽऽयहियं न चिए ॥ ७॥ जे यावाऽवहियं कुजा करथई पारलोइयं मायाडंभेण तस्सावी, सयमवी (पी) तंन भाव ॥८॥ आया ममेव अन्तार्ण, निउणं जाये जहट्टियं आया चैव दुष्पि धम्मदिय ॥ ९ ॥ जं जस्साणुमयं हि सो तं ठावे सुंदरपए। सद्द्द्ल नियतणए तारिस कुरेवि मा बिसि ॥ १० ॥ अततीयाऽसमिया सलवा (यज) णिनो कप्पयंतऽप्पणण, दुई क्कायचे मणसि य संजय तेचते निहोस तं च सिडे बनगयकले पक्खचायं विमुचा विक्ततपाचं कलुसियहियये दोजाहिं गई ॥ १ ॥ परमत्वं तत्तसिद्धं सम्भूयत्यपसाह नभणियाणुहाणेणं, ते आया जिए सकं ॥ २ ॥ सु नर्म भये धम्मं उत्तमा उपसंपया उत्तमं सीलधारित उत्तमा य गती भवे ॥ ३ ॥ अत्येगे गोयमा पाणी, जे एरिसमवि कोडि गए ससा चरवी धम्मं, आयहियं नावमुज्झई ॥ ४ ॥ ससो जवि कट्टुग्गं पोरं वीरं तवं परे दि वाससपि ततोऽवी तं तस्स निष्फलं ॥ ५ ॥ सपि भन्नई पात्रं, जे नालोइयनिंदियं न गरहियं न पण्डितं कथं जंजय भाषियं ॥ ६ ॥ मायाममत महापच्छन्नपाच्या अयजमणाचारं च साई कम्मसंगहो ॥ ७ ॥ अजमं अहम् च निसीताविय सकसत्तमसुद्धी य, सुकयनासो तद्देवय ॥ ८ ॥ दुइगमणऽणुत्तारं दुक्खे सारीरमाणसे अच्छि य संसारे, विग्गोषणया महंतिया ॥ ९ ॥ केसिं विरुरुवतं दारिदय (रं) दोहगया हाहाभूयसवेयणया परिभूयं च जीवियं ॥ २० ॥ निधिण नितिंत कुरतं निदय निकिवयायियजित गूढहियत्तं वकं विवयचित्तया ॥ १ ॥ रागो दोसो य मोहो व मिच्छतं घणचिकर्ण संमग्गणा तय, एजस्सित्तमेव ॥ २ ॥ जाणाभंगमवोही व सत्ता व भवे भवे। एमादी पाचसहस्स, नामे एगडिया बहू ॥ ३ ॥ जे सहियहिययस्स, एगस्सी बहु भवंतरे सगोवंगसंपीओ, पसांति पुणो पुणो ॥ ४ ॥ से दुि समक्लाए, सहदे सहमे य चायरे एकेके तिविहे ए. पोरुम्गुग्गतरे तहा ॥ ५ ॥ पोरं चउविहा माया, पोरगं माणसंजया माया लोभो य कोही य, घोरुगुग्गयरं मुणे ॥ ६ ॥ समवायरमेएणं, सप्पमेयंपिमं मुणी अइरा समुद्धरे लिप्यं, ससाको णो वसे वर्ण ॥ ७॥ खुडलगिलि अहिपीए. सिद्धत्यय सिही संपलये लयं पनि पुढे बिजोटई ॥ ८ ॥ एवं तमुतणुयरं पावसमशुद्धियं भवभवंतरकोडी, बहुसंतावपदं भवे ॥ ९॥ नयवं सुदुद्धरे एस. पावसह उद्धरिपि ण याणती, बहवे जहमुदरि ॥ ३० ॥ गोयम निम्मूलमुद्धरणं, निययमेतस्स भासियं सुदुद्धरस्सावि साइरस, सगोवंगभेदिनी ॥ १ ॥ सम्मदंसणं पढमं सम्मं नाणं विज्जियं तच सम्मा रितं एभूयमिमं तिगं ॥ २ ॥ खेती भूतेवि जे जित्ते (जीए), जे गूढेऽदलणं गए। जे अस्थी ठिए केई, जेऽस्थिमज्झ (भं) तरं गए ॥ ३ ॥ सर्वगोचंगसंखुते, जे सम्भंतरबाहिरे सांति जेण सती ते निम्मूले समुद्धरे ॥ ४ ॥ ह ना कियाहीण, या अाणतो किया पासंतो पंगुलो दो यात्रमाण अंधओ ॥ ५ ॥ संजोगसिद्धी अउ गोयमा फलं न एगचकेण रहो पयाइ अंधो य पंगू य वणे समिया, ते संपत्ता नगरं पचिट्टा ॥ ६ ॥ नाणं पयासय सोहओ संजोय गुप्तिकरोतिषि समाओगे गोयम मोक्खो न अण्णा ॥ ७ ॥ ता णीसाडे भवित्ताणं, समसाविवजिए। जे धम्ममणुचेना, सबभूकंपना ॥ ८ ॥ तस्स तम (सं सफल होगा, जम्मजमंतरेसुवि। विलास (प) रिदीप लभेजा सास सुहं ॥ ९ ॥ सामुदरिङका मेणं, खुपसत्धे सोहने दिने तिहिकरणमुहते नक्खते, जोगे लग्गे ससीपले ॥ ४० ॥ कायडायविलक्वमणं, दस दिने पंचमंगलं परिजवियष्वऽसयं(पहा), दुवरं अट्टम करे ॥ १॥ अममतेन पारिता काऊणाविलं तो पेय साहू व बंदिता करिज संतमरिसिये ॥ २॥ जे केंद्र तु संलते, जस्सुवरि चितिये जस्सय कथं जेणं, पडि वा कथं नये ॥ ३ ॥ तम् सहसतिबिहे, बायां मनसा य कम्मणा। णीस सबभावेण दार्ड मिच्छामिदुकडं ॥ ४ ॥ पुणोवि बीयरागाणं, पडिमाओ यालए। पत्ते संपुर्ण वंदे, एगग्गो भतिनिम्नरो ॥ ५ ॥ वंदित्तु चेइए सम्म, उमत्तेन परिजये। इमं सुदेषयं विणं, लक्खा पाए ॥६॥ उपसंतो सब्दमात्रेणं, एमचित्तो सुनिन्छ। आउत अब्यवखितो रागरइअरइयजिओ ॥४७॥ अण्अम्ओ उडण्अम् अउम्मओ अण्डा रणजम् अउम्ण्जम्ओ स्म्म्हणसउण्अम् अउम्ण्जम्ओ ससबलदण्अम् अउम्णम्ओ सम्बउसहिल ईण्यम् अम्जम्ओ अण् अम् अद् आणस् अरण्यम् अउम्ण्अम्ओ भगवओ अरहओ महइमहावीरवद्धमाणस्स धम्मतित्यंकरस्त अम्णम् सम्वधम्मवित्वकराणं अउम्णम् सम्यसिद्धाणं अरम्णम् सव्वसाहूणं अउम्णम् भगवतो महणजणस्स अमणमओ भगवजो सुयजणस्स अम्णम्जो भगवओ १११५ महानिदसूत्र अस मुनि दीपनगर अत्र प्रथमं अध्ययनं “ शल्यउद्धरणं” आरभ्यते ~ 263 ~ Steve
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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