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आगम
(३६)
“व्यवहार” – छेदसूत्र-३ (मूलं) ---------- उद्देश: [३] ------------------------ ------------- मूलं [१७] ----------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३६], छेदसूत्र - [3] "व्यवहार" मूलं
प्रत
सूत्राक [१७]
15. विदो आलापमा '२५६।१६-१७। भिक्प् य गणामी अचम्म ओहाया विणि संवच्छराणि धारेत्तए पा।१८ एवं गणापयोपयत्त अनिक्सिवित्ता औहाएजा जापजीपाए, | निक्विवित्ता विणि संवचाराई-१९-
२एवं आपरिए उवमाएवि'२७५१।२१-२२ भिक्खू प बहुसाए ममागमे बहलो बहुजागाबानागाडेसु कारणेसु माइमुसाबाई असुई पाचजीची जावजीचाए तस्स तप्पत्तिय नोकप्पड आयरिपत्र गाजाच गमावच्छेयपत्री वा उदिसित्तएबा धारेसएबाा२शएवं गणावच्छेदएवि०पारेत्तए वाा२४ाआयरियावज्झाएवि।२५/ बहरे भिवपुणो बहुस्सुपा बज्मागमा बहुसो जीनाए तेसिवपत्ति नोकप्पड़ जाच उरिसित्तए मा पारेसए ना।२६॥ एवं गणावच्छेदयावि, पारेत्तए वा।२७ एवं आयरियउवमायावि, घारेत्तए पारिवा बहने मिक्सुणो महवे गणानछेड्यापहवे आपरिचउपसाचा बहुस्सुया पागमा बहुसोलापरिपतं पा उपज्झायत्तंचा पत्तिया येरतंबा गणपरतंचा गणाबच्छेदपतंचा उरिसितए वा धारेसएका ३६५।२९॥ तो उदेसो ३॥नो कप्पा आयरियउक्झायस्स एनामिया हेमन्तमिन्हासुचरितए । कप्पाजावरिषउपज्झायरस अपवीयस्स हेमन्तगिन्दास चरितए।शनो कप्पड़ गणापच्छेदयस्स अप्पषीयस्स हेमन्तगिम्हामु चरितए।३।कया गणावच्छेदचस्स अपवयमा हेमन्तगिम्हासु चरित्तए। नो कप्पा आपरिषउपज्झायस्स अप्पनियता वासासासं वत्यष्ट।५। कण्या आयरिबउबमायस्का अम्पायरस पासापास बत्त्याए ।६।नो कप्पाइ गणावच्छेद्यस्स अप्पसदयस्स वासाचासंबत्यए।किया गमावच्छेडयरस अपचडत्यस्स पासाबास बस्याए '६५' से गामंसिमा नगरंसिवा जाप संनिवेसिवाणं आपरिषउवमायाणं अपरियाण बर्ण गणावमोइयाणं अप्पतायाणं कप्पा हेमन्तागिम्हास परिसए असमर्थ निस्साए।९।से गामंसि चा जाच संनिससि वा गहूर्ण आयरियउपमाया अन्याया गमा वायाणं अपच उत्थाणं कप्पा वासावासं चरित्तर असमर्थ निस्साए '१६२११०१ गामाणुगाम ददनमागे मिरज पुरजो कर निछरेजा से आहब बीमुम्भेजा अस्थि या इत्य बचे कई उपसंपनणारिहे (कप्पड़) से उपसंपनियो सिया, नस्थि याइस्य बने के उपसंपामणारिहे अप्पयो कप्पाए असमसे कप्पाइ से एगराइयाए पडिमाए जणं जगणं दिसं अनेसाइम्मिया विहरति सणं सम्णं दिसं उवलितए, नो से कप्पइ तत्य विहारवत्तिर्य वत्पए, कप्पड से कारणपत्तियं वत्याए, तंसिंचनकारणसि निद्विपंसिपरो वाना-पसाहि अजो! एगरायचा दुरायं वा एवं से कप्पा एगरायं वा दुरायं वा पत्याए, नो कप्पड एयराबाओ वा दुरायाजो वा परं वत्यष्ट, जे तत्व एमराबाबो वा दुराबाओ ना पर बसाइ से संतरा छेएमा परिहारे या ।११। वासाचास पजोसविए भिक्खूछेए वा परिहारे वा '२६२।१२। आधरिपउबल्झाए गिलायमाणे अनयर पएना-ममंसिर्ण कालगर्यसि समाणंसि जयं समुफसियो, सेय समुच्तणारिहे समुफसियो, से बनो समुसणारिद नो समुसिया, अस्थि या इत्य अमे केइ समुसणारिहे से समुसियो, नस्थि या इत्य अन्ने के समुसणारिह से चेष समुः। कासियो, तैसि चणं समुकिलुसि परो परजा दुस्समुकिट ते अजो!, निक्लिपाहि, तस्स निक्सिपमाणस नवि के छेए वा परिहारे वा, जे ते साहम्मिया अहाकम्पेण नो अति ससि सि वप्पत्तिय गेए वा परिहारे वा '२९०।१३। आयरिबउक्जमाए मोहायमाणे. ओहावियंसिक अयं समुसियो जाब सरेसि सि सप्पत्तिय ए वा परिहारे पा'३०३।१४ापरियउपसाए सरमाणे परं चउरायचराबाओ कप्पागं भिक्षु नो उपहावेड, कप्पाए अस्थि थाई से केद्र माणणिजे कप्पाए, मरिय पाई से केहए या परि-H हारे वा, नवि बाई से फेड माणनिजे कष्पाए से संतरा ठेए वा परिहारे बा । १५/जायरियजरमाए असरमाणे परं चउराधाओबा पंचरायाओ कप्पामेछए या परिहारेबा।१६॥ आयारियउबझाए सरमाणे या असरमाणे वापरं दसरायकच्चामो कपागं निपटुंनो उपहावेह, कम्पाए अस्थि यासे केद्रमाणणिज्नेकपाए नस्थि याई से कह ए वा परिहारे या नस्थि याई सेकेड मागणिकप्पाए संवच्छर तस्स तप्पचियं नो कापाकापरिवर्स चा जाच मनापोयतं वा उरिसित्तए पा.११५१अमिक्खुब गणाओ अचम्म अर्थ गण उपसंपजित्तार्ण बिहरेना, वे च के साइम्मिया पासित्ता पएजा 'जलो! उपसंपमित्तार्ण विहरसिजे सत्य साराइगिए संवएगा, अहमत! कस्स कप्पाए,जे साथ बहुसए संवएना, जवा से भगवं वारयाद तस्स आणाउववायषयणनिहसे चिहिस्सामि ३४६ ११८ामहरे साहम्मिया इमोजा एगयो अभिनिचारिय चरितए, नो र कन्या धेरे अमापुच्चित्ता एमयजओ अभिनिचारियं चरित्तए, कन्चाई धेरे आपुच्चित्ता एमयमओ अभिनिचारियं चारित्तए, बेरा य से वियरेजा एवई कम्पा एगतओ अभिनिचारियं चरितए, येरा यई नो वियरेजा एवं ईनो कप्पड एगयओ अभिनिचारियं परित्तए, जे तत्व बेरेहिं अविडम्ने एगपत्रओ अमिनिचारियं चरति से संतरा छेए वा परिहारे वा । १९॥ परियापपिढे मिक्खू जाच चउरायपशरायाओ घेरे पासेजा सचेव आलोयणा सचेच पदिकमणा सब जग्गाहस्स पुराणुजरना चिड, अहालन्दमावि ओग्गहे।२०। परिवाचबिहे भिक्यू परं चडायपरायाजो मेरे पासेजा पुणो आलोएमा पुगो पटिकमेना पुणो यपरिहारस्स उववाएगा, मिक्खुमावस्स अहाए दोचापि ओग्गहें अनुन्नवेयो सिया कप्पति से एवं ९७३ व्यवहाराम, उसी
मुनि दीवनसागर
अनुक्रम
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अत्र उद्देशक: ४ आरब्ध:
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