________________
आगम
(३८/१)
“जीतकल्प” – छेदसूत्र-५/१ (मूलं) ---------- मूलं [३५...] ------------
------------- भाष्यं [१४६५] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/१], छेदसूत्र - [५/१] "जीतकल्प” मूलं एवं जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्यं ।
प्रत
अहि ग सा माणजो किड तामम्मि उदाहरण चाडलिघुत्ते मुरलिया व दवाव दिशा में
सूत्रांक
[३५]]
श्रीप
घातो व म(सं)गो वा ॥५॥ संबंधे संघपेसो एनो बोच्छामि संथर्व वयणे। पुधि पच्छा व तहा संघणणं कणति दाताए ॥ ६॥ गुणसंथवेण पूर्व संतासतेण जो धणेजाहि। दातारमदिन ग्णम्मि सो वयणे संथयो पुधि ॥ ७॥ सो एसो जस्स गुणा पयरति अवारिया दसदिसासु । इहरा कहासु सुवति पचक्र अज विद्रोति ॥८॥ गुणसंधबेस पच्छा संतासतेण जो धुणे. जाहि । दातारं दिण्णम्मी सो पच्छासंथयो क्यणे ॥९॥ विमलीकय णे चक् जहत्यसो वियरिया गुणा तुज । जासि पुराणे संका इवाणि णीसकिय जायं ॥ १४७० ॥ तत्वचि भदगपंता दोसा तह र होति णायचा । भणिएस संधवो तू विजामते अतो वोच्छं ॥१॥ विजामंते चतुला आवती दाण होति आयामं । पिजामंतविसेस उलिंगेऽहं समासणं ॥२॥ विजामंतबिसेसो विशिस्थी पुरिसों होति मंतो तु। जहब ससाहण विजा मंतो पुण पढियसिद्धोतु ॥३॥ विजाए उणिवस्तिर्ण जह कोई भिन्ड्वासयो पन्तो। साहग पिडियागं अहथि
राहायो इमो तत्व ॥४॥इय पंतभिच्छ्वासो साहण ण देति तस्य भणएको । जड इच्छह विजाए पपगुलवत्थाणि दामि ॥५॥ पेच्छामोतिय भणिए गंतुं विजाभिमंतिओ बेति। किमिची पतगुरूवल्याणि दिगण साहरणं ॥ ६॥ अण्णाह य सा भाणी किह ते दिण्णांत भत्तपाणादा । तो बात नगा रट्टा कण हित कण मुद्दा मि? ॥ ७॥ पडिविज थमणादी सो या अण्णो व से करेजाहि । पाचाजीची मावी कम्मणकारी य गहणादी ॥८॥ मम्मि उदाहरणं पाडलिपुत्ने मुरुंडराइस्स । उप्पण्ण सीसवेदण पालित्तयकहण ओमने॥॥ जह जह पदेसिणि जाणुयम्मि पालित्तयो भमाडेत्ति। तह तह सीसे विषणा पणसति मुझंडरायस्स ॥१४८०॥ मंतेणं अभिमंतिय तह व दवाव दिन कोई तु । सत्यपि तेथिय दोसा पडिमनादी इमे होन्ति ॥१॥ पडिमंतभणादी सो वा अण्णो व से करेजाहि। पापाजीवी माथी कम्मणकारी य गहणादी ॥२॥ विजामताभिहिया जहुणा बाच्छामि चुष्णजोगादी। बसिकरणादी चुण्णा अन्तवार्णजणादीया ॥३॥ पुणे जोगे चउलहु जापत्ती दाणमेध आयामं। णिदरिसणं दुण्हंपी उशिजेड समासेणं ॥४॥ दिहतो चुण्णजोगे जह कुसुमपुरम्मि कति आपरिया। जंघाचलपरिहीणा ओमे सीसस्स तु रहन्मि ॥५॥ कहयंति चुपणजोगा अंतदाणादि तस्थ दो सहडा। पमाणठिय णिसामे अवधारे अंजण एक॥ ६॥ पीसजियानि साहू गुरुहिं देसंत खुद्दाग णियत्ता। आयरिएहि य मणिना दुइछ कयं जं णियत्ता भे॥७॥ भिक्खे परिहार्यते थेराणं ओमें तेसि देताणं । कि ओम गुरुणं न कुवामो? लुइट सामन्थे ॥८॥ कुणिमो अंतवार्ण दवे मेलेनु अनियंजणथा । सह भोज चंदगुते ओमोदस्थिाएं दोव्बाई ॥९॥ चाणकपुष्छ इहालपुण्ण दारपिहणं तु धूमो या बटुं कुच्छ पसंसा थेरसमीचे उपालंभो ॥१४९०॥ एवं वसिकरणादिसु चुपण वसीकोनु जो तु परं । उपाएती पिंडं सो होती चुण्णपिण्डो तु॥१॥जे चिनमन्तदोसा तेभियनसिकरणमादिचुष्णेहि। एगमणेगपयोस कुजा पस्चारयो बानि ॥२॥ मणिएस पुग्णपिण्डो जहुणा बुच्छामि जोगपिट तु। नहियं जोग अणेगा इणमो तु संपपपरसामि ॥३॥ सूभगदोभगकरा जोगा आहारिमा यति इयरे या आघसधूवचासो पायपाठेवाविणो इतरे ॥४॥ तत्थाहरणं णमो अणहारिमपाइलेवजोगम्मि। आनीरगविसयम्मी जह कत सुण ताबसेहिं तु॥५॥णदिकव्हवेण्णदीवे पंप सथा तावसाण णिवसंलि । पचदिषसेसु कुलपद पालवे लिंप पाए तु ॥६॥ पाउगदुरूद सलिछप्परेण उत्तरिड एनि गरंति। आउन लोग पृया पबक्सा लेते देवत्ति ॥ ७॥ जण सावगाण खिसण नाहियं न बहरसामिमाउलया। आयरियाजसमिता नेसि च गिवेदिय तेहिं ॥८॥ तेहि मणिया य पचहते मातिहाणि पापलेवेणं। णतिमुत्तरति सगिहे उसिणोएण धोबह नं॥९॥ तेहि य सगिर्द णे पाय बना चोयऽणिच्छमाणाणं। किं जाणति लोगोनी दियं विगएण बहुपलयं? ॥१५००। पडिल्लाभिय बर्चना णिपुरणदिकूल मिलिय समिया या विम्हिय पंच सता तावसाण पञ्चज साहाय॥१॥ एमादीजोगेहि आउद्यावेनु एसली पिंड । सो णवि कप्पे एनो मोच्छामी मूलकमंतु ॥२॥ दुनिहं तु मूलकम्म गम्भादाणे तहेच परिसाडे। हुविहेचि मूलकम्मे पब्उिन होति मूल नु ॥३॥ जादाणं जहिगरण परिबंधो छोभगाविदोला या पाणवह सारणम्मि छोभग पटिणीय उटाहो ॥४॥ इय मूलकम्मेणं पिडो उपादिश्री ण कम्पनि नु। उपातणेस भणिया गवसणा चेव य समना ॥५॥ एवं नुनविहस्सा उम्मम उपायणाविमुदस्स। गणपिसोहिपिसुद्धस्स होनि गहणं तु पिएम्स ॥६॥ उम्गमदास गिहीतो उपायण होइ समण उत्थाणा। गहणेसणाए दोसे आयपरसमुहिए वोच्छ॥७॥ दोणिवि समणसमुत्था संकिन वह भावतोऽपरिणय या सेसा अडवि णियमा गिहिणो न समुहिए जाण ॥८॥ सा गहणेसण चनुहा णाम ठपणा य दधि भावे या दवे वाणरजूहं सर्व पत्ता विस्थस्या दवम्मिएस भणिता भावे महणेसणं तु बोच्छामि।दसहि पदेहि सुई संकितमादी इमेहि तु॥१५१०॥ संकिन मक्खिन णिक्खिन पिहिन साहरण दायगुम्मीसे। अपरिणय लिन्त उडिटय एसणदोसा दस हति॥१॥ संकाए पउभंगा पढमो गह य भोयणे चेच। चितिजो गहण ण भोयण तनिओ पुष सकिनो भोगे ॥२॥णीसंकिओतु चरिमे किह पुण संका हवेज जह कोई। मिक्स पविही सदम्मि हिरिमं मिक्स विगियेति ॥३॥ किष्णु सदा भिस्वा लहाण य तरति पनि ताहिये। हिरिम इति संकाए भुजति इह संकितो व ॥४॥ बीएण गहिय संकिय विगइन्वाने यणपरि संघाडे। २०३९जीतकल्पमाष्य -
मुनि दीपरनसागर
अनुक्रम
[३५]
~185