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________________ आगम (३९) “महानिशीथ” – छेदसूत्र-६ (मूल) -------अध्ययन [६], ------------- उद्देशक -,---------- मूलं [२] +गाथा:||१६८||------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||१६८|| न्निज संसयं ॥आतावेस जो होउ सो होउ, किंपियारेण एत्य मे अभिनंदामीह पानं, सबदोक्स(स)विमोक्तणि दाता पडिगो जिणिदस्स, सयासे जाने क्लई। भुषणेसं जिणवरं वाय, गणहरसामी पयहिओ ॥९॥परिनियंमि भगवंते, धम्मतिथंकरे जिणे। जिणाभिहियसुत्तत्वं, गणहरो जा पहनाई ॥१७॥तावमालावर्ग एवं, पक्वाणमि समागये। पुढवीकाइगमेग जो, वाचाए सो असंजओ॥१॥वा इसरो पिचिंतेई, सुहमे पुढविकाइए। सनत्य उदकिनति, को ताई रक्सिडं तरे? ॥२॥हलईकरेइ अत्साणं, एस्य एस महायसो। असदेयं जणे सहल(यले), किमत्येवं पक्क्सई? ॥३॥ अचंतकदवर्ट एवं वाखाणं तस्सवी फुट। कण्ठसोसो पर लाभे, एरिसं कोणचिहए। ॥४॥ता एवं विप्पमोचन साम किंचि मझिम । जवानं या कहे धम्मं, ना लोउऽम्हा ण उहाई ॥५॥ अहया हा हा अहं मूढो, पाचकम्मी णराहमो। णवरं जाणाणुचिट्ठामि, अमोऽहती जणो ॥ ॥ जेनेयमलनाणीहि. साहि पवेदिय। जो एहिं अनहा पाए, तस्स अहोण बजा(विज)ई ॥आताहमेयस्स पच्छित्त, पोरं महतुकरं परं । लहु सिग्य सुसिम्पयर, जाप मधून मे भये ।। आसायणाकर्य पात्र, आर्सजेण बिकुत्र(किंत)ती दिव याससयं पुन्न, अह सो पच्छित्तमाचरे ॥९॥ तारिस महापोरं पायश्चित्तं सर्यमई। कार्ड पत्तेयववस्स. सयासे पुणोपि गओ ॥१८०ातत्यावि जा सुणे पक्खा, तापऽहिगारमिमागयं । पुदवादीण समारंभ, साह तिबिहेण बजए॥१॥ बढमूढो हुत्य जोईता,इसरो मुखमम्भुओ।चितेत जहिस्य जाए. कोणता समारभे?॥२॥ पुढबीए ताव एसेन,समासीणोविचिदई अम्गीए रवयं साधाइ.(सर्व बीयसमुम्भव)॥३॥ अन्नंच विणा पाणेणं, खणमेकं जीवए कहता किंपिनं पचासेस, जं पत्यमत्वंतिय ४ाइमस्सेय समागच्छे, ण उणेयं कोह सदहे। ता बिहउ नाय एसेत्य, वरं सो चेव गणहये ॥५॥ अहवा एसोन सो मझ, एकोवि भणिय करे। अलिया एवंविह धम्म, किंचुसेर्ण तंपिय॥६॥साहिजई जोसुपे किचि, ण तुणमचंतकत्यई। अहवाचितुतायेए, अयं सयमेव वागरं आसुहंसहेणं जं धम्म, सबोविअणुइए जणोनि कालं कडपडसाज, धम्मस्सिति जाव चिंता ॥८॥धडहडितोऽसणी ताच, शिवडिओ तस्सोपरि। गोयम! निर्ण माओ ताहे. उवपनो ससमाएँ सो ॥९॥ सासण(मण्ण रायनाणसंसम्मपतिणीयताए ईसरो। तस्य दारुणं दुरसं, नरए अणुमपिट चिरं ॥१९॥ दहागओ समुदंमि, महामच्छो भयेउणं। पुणोषि सत्तमाए य, तित्तीस सागरोचमे ॥१॥ दुविसहं दाकर्ण दुस, अणुहविऊणिहागओ। तिरिवपक्खीसु उवपन्नो, कागत्ताएस ईससे ॥२॥नओवि पदमियं गतुं, उसहिता इहागओ। दुइसाणो भवेत्ता, पुणरचि पडमियं गजओ ॥३॥ उमहिला तओ बहई.. खरो होउ पुणो मओ। उववन्नो रासहत्ताए, उम्भवगहणे निरंतर ॥ ४॥ ताहे मणुस्सजाईए, समुप्पन्नो पुणो मजो । उपचन्नो गणपरत्नाए. माणुसतं समागओ॥५॥ तओऽनि मरिसमुपन्नो, मजारने स ईसरो। पुणोषि निरए गंतुं. (इह) सीहतेणं पुनो मओ॥६॥ उवजिउंचउत्थीए, सीहतेग पुणोऽपिह। मरिऊगं पडस्चीए, गंतु इह समागमओ आतओवि नरयं गंतुं, चकियत्तेण इसरो। तओवि कुट्टी होऊर्ग, पदुक्खादिमो मजो॥८॥ किमिएहि खजमाणस्स, पन्नासं संवच्छरे। जाऽकामनिजरा जावा, तीए देवेसुक्वजिउँ॥९॥ नओ इह नरीमन, लवूर्ण सत्तमि गओ। एवं नरगतिरिच्छेसु, कुच्छियमणुएम ईसरो॥२००॥ गोयम ! सुदरं परिभमिर्ड, पोरदुस्खमुक्तिओ संपा गोसालओ जाओ, एस सजेवी. 122 सरजिओ॥१॥तम्हा एवं बियाणेत्ता, अचिरा गीयरये मुणी । भवेजा विदिवपरमस्ये, सारासारपरिन्नुए ॥२॥ सारासारमपाणेत्ता, अगीयस्थत्तदोसओ । वयमेत्तेणाविरजाए, पावर्ग जे समनियं ॥३॥ तेणं तीए अहलाए, जा जा होही नियंतणा। नारयतिरियकुमाणुस्से, ने सोचा को थिई लभे? ॥४॥ से भय ! का उण सा रजिया किंवा तीए अगीयो. सेणं वयमेनेनपि पावकम्म समलियं जस्सण विवागर्य सोऊणं णो थिई लभेना, गोषमा! णं इहेव भारहे वासे मदो नाम आयरिओ अहेसि, तस्स व पंचसए साहणं महाणुभागाणं दुवालसलए निम्गंधीण, नत्थ य गच्छे पउत्थरसिव जोसावणं तिवंडोषितं च कविउवम् विग्यमोनूर्ण चतत्य न परिभुजा, अभयारणानामाए अनिवाए पुश्कयामहपाचकम्मोदएर्ण सरीरमं कुडचाहीए परिसडिकणे किमिएहि समुरिसिउमारवं. अहान्नया परिगलंतपूइलहिस्तणू त रजनिय पासिया ताओषसंजाओ भणति जहा हलाहला दुकरकारने! किमेयंति,नाहे गोयमा! पडिभणिय तीए महापायकम्माए भग्गलक्खणजम्माए जजियाए, जहा एएण कासुगपाणयेण आविजमाणे विगई मे सरीरगति, जावेयं पलवे तान गं समुहियं हिमयं गोयमा समसंजईसमूहस्स, जहा गं निवजामो कासुगवाणगंति, तओ एगाए तत्थ चिनियं संजईए-जहाणं जइ संपर्य चेव ममेयं सरीरगं एगनिमिसम्मतरेणेव पडिसडिऊण खंटरवंटेदि परिसडेजा तहावि आफासुगोदगं इत्य जमेण परिभुंजामि, फासुगोडगं न परिहरामि, अच-कि सबमेयं कासुगोदगेर्ण इमीए सरीरग विणई, सबहाण सबमेयं, जाओ णं पुषकयअसुहपावकम्मोदएणं सबमे विहं हवइत्ति सठ्ठयर चिति पयत्ता, जहाण भो पेच्छ २ अशाणदोसोवाड्याए दढमूदाहिययाए वियतलनाए जमीए महापा. वकम्माए संसारपोरदुक्खदायगं केरिसं दुषयणं गिराइयं, जं मम कविवरसुपिणो पविसेजत्ति, जओ भवंतरकएणं असुहपावकम्मोदएणं जंकिंचि दारिदबुक्सदोहग्गअयसम्म क्साणकुटाइबाहिकिलेससन्निवार्य देहमि संभवा न जन्नहत्ति, जेणं तु एरिसमागमे पढिना, तंजहा-को देव कस्स देजइ विहियं को इस हीरए कस्स है। सयमप्पणो (२८८) ११५२ महानिशीपच्छेदमूर्य, renul-5 मुनिटीपसागर दीप अनुक्रम [११०४] ~300~
SR No.035027
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 27 Maransamadhi Prakirnak Mool evam Sanskrit Chhaya Nishith Bruhatkalp Vyavahar Dashashrutskandh Mahanishith 5 Chhedsutrani Moolam Jitkalp Moolam evam Bhashyam Panchkalp Bhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages330
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size99 MB
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