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योगशास्त्र : प्रथम प्रकाश
अब सर्वप्रथम मोक्ष के हेतुभूत ज्ञानयोग का स्वरूप बतलाते हैं
ज्ञान-योग
यथावस्थितता वानां संक्षेपाद् विस्तरेण वा। योऽवबोधस्तमत्राहुः सम्यग्ज्ञानं मनीषिणः ॥ १६ ॥
अर्थ
जो तत्व जैसो (यथा) स्थिति में हैं, उन तत्वों के स्वरूप को संक्षेप से या विस्तार से अवबोध या जानने को मनीषियों (विचारकों) ने सम्यग्ज्ञान कहा है।
व्याख्या जिनका स्वरूप नय, निक्षेप और प्रमाण आदि से सिद्ध है, वे तत्व कहलाते हैं। वे तत्व जीव, अजीव, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष-रूप हैं। उनका वास्तविक बोध (ज्ञान) किसी को संक्षेप से और किसी को कर्म क्षयोपक्षम के कारण विस्तार से होता है। वह इस प्रकार है - जीव, अजीव, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष ; ये सात तत्व' पडित-पुरुषों ने बताए हैं।
जीवतत्व उनमें से जीव के दो भेद है-मुक्त और संसारी । सभी जीव अनादि-अनंत ज्ञान-दर्शन-स्वरूप होते हैं । कर्म से सर्वथा मुक्त जीवों का स्वरूप एक सरीखा होता है। वे सदा के लिए जन्म-मरणादि क्लेशों और दुःखों से रहित हो जाते हैं; तथा अनन्त दर्शन-ज्ञान-शक्ति और आनन्दमय-स्वरूप बन जाते हैं।
संसारी जीवों के त्रस और स्थावर ये दो भेद हैं । इन दोनों के भी दो भेद हैं - पर्याप्त और अपर्याप्त । पर्याप्तियां ६ प्रकार की होती हैं-(१) माहारपर्याप्ति, (२) शरीरपर्याप्ति, (३) इन्द्रियपर्याप्ति, (४) श्वासोच्छ्वास-पर्याप्ति, (५) भाषापर्याप्ति और (६) मन:पर्याप्ति । एकेन्द्रिय जीव के चार, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय (विकलेन्द्रिय) जीवों के पांच तथा पंचेन्द्रिय जीवों के छह पर्याप्तियां होती है । एकेन्द्रिय स्थावर-जीव के ५ भेद हैं-पृथ्वीकाय, अप (जल) काय, तेऊ (अग्नि) काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय । इनमें से प्रथम चारों के सूक्ष्म और बादर दो-दो भेद होते हैं । और वनस्पति के प्रत्येक और साधारण दो भेद होते हैं । प्रत्येक वनस्पति बादर होती है और साधारण वनस्पति के सूक्ष्म और बादर ये दो भेद होते हैं। दो, तीन, चार और पांच इन्द्रिय वाले सजीव कहलाते हैं ; वे चार प्रकार के हैं । इनमें पंचेन्द्रिय जीवों के दो भेद होते हैं :-(१) संशी और (२) असंज्ञी । जो शिक्षा उपदेश, आलाप आदि समझते हैं या जानते हैं, वे संशी कहलाते हैं और जिसके मन-प्राण न हो, वे असंज्ञी पंचेन्द्रिय कहलाते हैं। स्पर्श, जीभ, नासिका, गांख और कान; ये पांच इन्द्रियां हैं। स्पर्श, स्वाद, रस, गंध, रूप और शब्द ये क्रमशः इनके पांच विषय हैं । कृमि, शंख, कौड़ी, सीप, जोंक आदि अनेक प्रकार के द्वीन्द्रिय जीव होते हैं । चींटी, खटमल, जू, मकोड़ा आदि त्रीन्द्रिय जीव होते हैं। टिड्डी, पतंगा, मक्खी, मच्छर, भौरे, बिच्छू आदि चतुरिन्द्रिय जीव होते हैं । शेष तियंच-योनि में हुए जलचर, स्थलचर,
१-अधिकांश आचार्यों ने 'पुण्य' और 'पाप' ये दो तत्त्व और मिला कर नौ तत्त्व माने हैं।
-संशोधक