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योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश
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यंत्र-लांगल-शस्त्राग्नि-मूसलोदूखलादिकम् ।......
दाक्षिण्याविषये हिंस्र नार्पयेत् करुणापर. ॥७७॥ अर्थ--- पुत्र आदि स्वजन के सिवाय अन्य लोगों को यंत्र (कोल्हू), हल, तलवार आदि हथियार, अग्नि, मूसल, ऊखली, आदि शब्द से धनुष्य, धौंकनी. छुरी आदि हिंसाकारक वस्तुएं दयालु श्रावक नहीं दे। अब प्रमादाचरणरूप चौथे अनर्थदण्ड के विषय में कहते हैं
कुतूहलाद् गीत-नृत्य-नाटकादिनिरीक्षणम् । कामशास्त्रप्रसक्तिश्च यू तमद्यादिसेवनम् ॥७८।। जलक्रीड़ाऽन्दोलनादि विनोदो जन्तुयोधनम् । रिपोः सुतादिना वैरं, भक्तस्त्रोदेशराटकथा ॥७६॥ रोगमार्गश्रमौ मुक्त्वा स्वापश्च सकलां निशाम् ।
एवमादि परिहरेत् प्रमादाचरणं सुधीः ॥१०॥ अर्थ-कुतूहलपूर्वक गीत, नृत्य, नाटक आदि देखना; कामशास्त्र में आसक्त रहना; जूआ, मदिरा आदि का सेवन करना, जलक्रीड़ा करना, झूले -दि का विनोद करना, पशुपक्षियों को आपस में लड़ाना, शत्रु के पुत्र आदि के साथ भी वर-विरोध रखना, स्त्रियों को, खाने-पीने की, देश एवं राजा को व्यर्थ की ऊलजलूल विकथा करना, रोग या प्रवास की थकान को छोड़ कर सारी रातभर सोते रहना; इस प्रकार के प्रमादाचरण का बुद्धिमान पुरुष त्याग करे।
व्याख्या-कुतूहलपूर्वक गीत सुनना, नन्य, नाटक, सिनमा आदि देखना. कुतूहलवश इन्द्रिय-विषय का अत्यधिक उपभोग करना। यहा मूल में 'कुतूहल' शब्द होने में जिनयात्रा आदि प्रसगों पर प्रासगिक खेल-तमाशे देखे जांय तो वह प्रमादाचरण नहीं है। वात्स्यायन आदि के बनाये हुए कामशास्त्र या कोकशास्त्र को बारबार पढ़ना, उसमें अधिक आसक्ति रखना, तथा पासों आदि से शतरज या जूआहेलना, मदिरापान करना, आदि शब्द से शिकार खेलना; उमका मांस-सेवन करना इत्यादि, व जलक्रीड़ा करना ; यानी तालाव, नदी, कुए आदि में डुबकी लगा कर स्नान करना, पिचकारी से जल छींटना आदि तथा वृक्ष की शाखा से झूला बांध कर झूलना, आदि शब्द से व्यर्थ ही पत्तं आदि तोड़ना तथा मुर्गे आदि हिंसक प्राणियों को परस्पर लड़ाना ; शत्रु के पुत्र-पौत्रादि के साथ वैरभाव रखना ; किसी के साथ वैर चल रहा है तो उसका किसी भी प्रकार से त्याग न करना ; बल्कि उसके पु.-पात्र आदि के साथ भी वर रखना ; ये सब प्रमादाचरण है । तथा मक्तकथा-'यह पकाया हुआ मांस या उड़द के लड्डू आदि अच्छे व स्वादिष्ट हैं ; "उसको अच्छा भोजन कराया; अतः मैं भी वही भोजन करूगा' ; इस प्रकार भोजन के बारे में घंटों बाते करना भक्तविकथा है। स्त्रीकपा- स्त्री के वेश, अंगोपांग की सुन्दरता या हाव-भाव की प्रशंसा करना ; जैस- य.र्णाटक देश की स्त्रियाँ कामकला में कुशल होती हैं, और लाटदश की स्त्रियाँ चतुर और प्रिय होती हैं, इत्यादि स्त्रीकथा है। देशकथा-'दक्षिणदेश में अन्न-पानी बहुत सुलभ होता है, परन्तु वह स्त्रीसंभोगप्रधान देश है। पूर्वदेश में विविध वस्त्र, गुड़, खांड चावल,