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विविध बासन और उनके लक्षण
___ अर्थ-(१) पर्यकासन, (२) वीरासन, (३) बजासन (४) पद्मासन, (५) भद्रासन (६) दण्डासन (७) उत्कटिकासन (८) गोदोहिकासन () कायोत्सर्गासन आदि आसनों के नाम हैं।" अब क्रमशः प्रत्येक आसन का स्वरूप कहते हैं
स्याज्जंघयोरधोभागे, पादोपरि कते सति ।
पर्यड को नाभिगोत्तान-दक्षिणोत्तर-पाणिकः ॥१२५॥ अर्थ---'दोनों जघाओं के निचले भाग पैरों के ऊपर रखने पर तथा दाहिना और बांया हाथ नाभि के पास ऊपर दक्षिण और उत्तर में रखने से 'पर्यकासन होता है।
शाश्वत जिन-प्रतिमाओं का और श्री महावीर भगवान् के निर्वाण-समय में इसी प्रकार पर्यकासन होता है । पतंजलि ने जानु और हाथ लम्बे करके सो जाने की स्थिति को पर्यकासन बताया है।" अब वीरासन का स्वरूप कहते हैं
वामोऽह्रिर्दक्षिणोरूर्ध्व-वामोपरि दक्षिणः ।
क्रियते यत्र तद्वीरोचितं वीरासनं स्मृतम् ॥१२६॥ अर्थ- 'बांया पर दाहिनी जांघ पर और दाहिना पैर बांयी जांघ पर जिस आसन में रखा जाता है, वह वीरोचित आसन, वीरासन कहलाता है।
यह आसन तीर्थकर आदि वीरपुरुषों के लिए उपयुक्त है, कायरों के लिए यह आसन नहीं है। कुछ लोग वीरासन को पर्यकासन के समान दो हाथ आगे स्थापन करने की स्थिति-सा बता कर पद्मासन भी कहते हैं । एक जांघ पर एक पर रखा जाए उसे अर्धपद्मासन कहते हैं।' अब वज्रासन का लक्षण कहते हैं
पृष्ठे वज्राकृतिभूते दोया वीरासने सति ।
गृह्णीयात् पादयोर्यत्रांगुष्ठो वज्रासनं तु तत् ॥१२७॥ अर्थ-पूर्वकथित वीरासन करने के बाद बच को आकृति के समान दोनों हाथ पीछे रख कर, दोनों हाथों से पैर के अंगूठे पकड़ने पर जो आकृति बनती है। वह बवासन कहलाता है। कितने ही आचार्य इसे वैतालासन भी कहते हैं । मतान्तर से वीरासन का लक्षण कहते हैं
सिंहासनाधिरूढस्यासनापनयने सति ।
तथैवावस्थितिर्या तामन्ये वीरासनं विदुः॥१२॥ अर्थ-कोई पुरुष जमीन पर पैर रख कर सिंहासन पर बैठा हो और पोछे से उसका सिंहासन हटा दिया जाए ; उससे उसको जो आकृति बनती है, वह 'वीरासन' है। सिद्धांतकारों ने कायाक्लेशतप के प्रसंग में इस आसन को बताया है।
पंतजलि ने एक पैर से खड़े रहकर दूसरा पैर टेढ़ा रख कर अधर बड़े रहने को वीरासन बताया है। अब पद्मासन का लक्षण कहते है