Book Title: Yogshastra
Author(s): Padmavijay
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 606
________________ योगशास्त्र : वथम प्रकाश अर्थ- जब धर्मध्यान में प्रवृत्ति होती है, तब आत्मस्वरूप क्षायोपशमिक आदि भाव होते हैं। आदि शब्द कहने से औपशमिक और क्षायिक भाव होते हैं, किन्तु पौदर्गालक रूप औदयिक भाव नहीं होता। कहा है कि "अप्रमत्त संयत, उपशान्तकवाय और क्षीणकवाय गुणस्थान वालों को धर्मध्यान होता है ।" धर्मध्यान के समय में क्रमशः विशुद्ध तीन लेश्याएं होती हैं। वह इस प्रकार - पीतलेश्या, इससे अधिक निर्मल पद्मलेश्या और इससे भी अत्यंत विशुद्ध शुक्ललेश्या । चारों धर्मध्यानों का फल कहते हैं ११० अस्मिन् नितान्त - वंराग्य- व्यतिषंगतरंगिते । जायते देहिनां सौख्यं, स्वसंवेद्यमतीन्द्रियम् ॥१७॥ अर्थ - अत्यन्त रायग्रस से परिपूर्ण धर्मध्यान में जब आत्मा एकाग्र हो जाता है, तब जीव को इन्द्रियों से अगम्य आत्मिक सुख का अनुभव होता है। कहा है कि "विषयों में अनासक्ति, आरोग्य, अनिष्ठुरता, कोमलता, करुणा, शुभगंध, तथा सूत्र और पुरोष की अल्पता हो जाती है। शरीर की कांति, सुख को प्रसन्नता, स्वर में सौम्यता इत्यादि विशेषare योगी की प्रवृत्ति के प्रारंभिक फल का चिह्न समझना चाहिए । अब चार श्लोकों से पारलौकिक फल कहते हैं - त्यक्तसंगास्तनुं त्यक्त्वा, धर्मध्यानेन योगिनः । प्रवेयकावि स्वर्गेषु भवन्ति त्रिदशोत्तमाः ॥ १८ ॥ महामहिमसौभाग्यं शरच्चन्द्रनिभप्रभम् । प्राप्नुवन्ति वपुस्तत्र लग्भूषाम्बर - भूषितम् ॥ १९ ॥ विशिष्ट - वीर्य-बोधाढ्यं, कामार्तिज्वरवजितम् । निरन्तरायं सेवन्ते सुखं चानुपमं चिरम् ॥२०॥ इच्छा - सम्पन्न - सर्वार्थ-मनोहारि - सुखामृतम् । निर्विघ्नमुपभुञ्जानाः गतं जन्म न जानते ॥ २१॥ अर्थ- समस्त - पर- पदार्थों की आसक्ति का त्याग करने वाले योगी पुरुष धर्मध्यान के प्रभाव से शरीर को छोड़ कर प्रवेयक आदि वैमानिक वेवलोक में उत्तम वेवरूप में उत्पन्न होते हैं। वहाँ महामहिमा (प्रभाव), महान् सौभाग्य, शरद् ऋतु के निर्मल चन्द्रमा के समान कान्ति से युक्त, दिव्य पुष्पमालाओं, आभूषणों और वस्त्रों से विभूषित शरीर प्राप्त होता है । थे विशिष्ट प्रकार के वीर्य (शरीरबल, निर्मल बोध व तीन ज्ञान) से सम्पन्न कामपीड़ारूपी वर से रहित, विघ्न-बाधा-रहित अनुपम सुख का चिरकाल तक सेवन करते हैं। इच्छा करते ही उन्हें सब प्रकार के मनोहर पदार्थ प्राप्त होते हैं और निर्विघ्न सुखामृत के उपभोग में वे इतने तन्मय रहते हैं कि उन्हें इस बात का पता नहीं लगता कि कितने जन्म बीते या कितनी आयु व्यतीत हुई ? उसके बाद

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