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अनवादक की ओर से प्रशस्ति
श्रमण भगवान् महावीर की शासन-परम्परा मे ७३वे पट्ट पर सवेगी शाखा में तपोगच्छा विपति परमपूज्य प्रात.स्मरणीय न्यायाम्भोनिधि पजाबदेशोदारक आचार्य श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वरजी (मात्मारामजी) महाराज हुए है। उनके दो पद्धर बाचार्य हुए-भीमद्विजयकमलसूरीश्वरजी म० पजाबी और श्रीमद्विजयवल्लभसूरीश्वरजी म० । पजाबकेसरी भारतदिवाकर आचार्यदेव श्रीमद्विजयवल्लभसूरीश्वरजी म. के अनुपम पट्टधर मरुधरोद्धारक श्रीमद्विजयललितसूगेश्वरजी महाराज, श्रीमद्विजयउमंगसूरीश्वरजी म., श्रीमद्विजयविद्यासूरिजी म०, भाचार्य श्री विजयसमुद्रसूरीश्वरजी म. तथा श्री विजयविकासचन्द्रसूरीश्वर जी म०; ये ५ पट्टधर हुए। इनमे से श्री विजयललितपुरीश्वरजी म. के पट्टधर ज्योतिष्मार्तण्ड महान तपस्वी श्रीमद्विजयपूर्णानन्दसूरीश्वरजी महाराज के पट्टधर एक तो श्रीविजयहीकारसूरीश्वरजी म. और दूसरे अनेक तीर्थोद्धारक शासनसेवी आचार्य श्रीमद्विजयप्रकाशचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज है; जिनके लघुशिष्य मुनि पद्मविजय ने श्रीहेमचन्द्राचार्य-विरचित स्वोपविवरणसहित योगशास्त्र-बारह प्रकाशो का हिन्दी अनुवाद स्व० बाचार्यदेव श्रीमद्विजयवल्लभसूरिजी म० के २१ वे स्वर्गारोहण के दिन चातुर्मासकाल मे सं० २०३० बाश्विन कृष्ण ११ शुक्रवार, ता०-११-१०-७४ को जाममाणवड़ मे श्रीशान्तिनाथ भगवान् के मन्दिर के पास आयम्बिलभवन मे पूर्ण किया।
कोई भी जिज्ञासु इस ग्रन्थ का अध्ययन कर इसमे बताये गये मार्ग के अनुसार प्रवृत्ति करके बनादिकाल से भूले हुए आत्मस्वरूप को प्राप्त करेगा, तो मैं अपना प्रयास सार्थक समस्गा।
इसी शुभाशा के साथ
-मुनि पद्मविनय