________________
अन्धकार द्वारा उपसंहार
संप्रापि योगशास्त्रात्, तद्विवृतेश्चापि यन्मया सुकतम् ।
तेन जिन-बोधिलाम-प्रणयी भव्यो जनो भवतात् ॥२॥ अर्थ- इस योगशास्त्र और इसकी विकृति-(व्याल्या) की रचना से मैंने बो कोई भी सुकृत (पुण्य) उपाजित किया हो; उससे भव्यजीव जिन-बोधिलाम के प्रणयी-प्रेमी बनें, यही शुभभावना है।
इस प्रकार परमाहत भीकुमारपाल राजा की विमासा से माचार्यको हेमचन्द्राचार्य-सूरीश्वररचित 'अध्यात्मोपनिषद्' नामक पट्टबद्ध अपरनाम 'योगशास्त्र' का स्वोपविवरणसहित द्वादशम प्रकाश सम्पूर्ण हमा।