Book Title: Yogshastra
Author(s): Padmavijay
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 581
________________ पार्थिवी, आग्नेयी, वायवी, वारुणी और तत्त्वभू धारणाएँ ५६५ सिहासन है, जिस पर बैठ कर कर्मों का समूल उन्मूलन करने में उचत अपने शान्त आत्मा का चिन्तन करना चाहिए । इस प्रक्रिया को 'पाथिवी धारणा' कहते हैं । अब छह श्लोकों द्वारा आग्नेयी धारणा कहते हैं - विचित्यत्तथा नाभो कमलं षोडशच्छदम् । afratri महामन्त्रं, प्रतिपत्रं स्वरावलीम् ॥१३॥ रेफबिन्दुकलाक्रान्तं महामन्त्रे यदक्षरम् । तस्य रेफाद् मिशनंधू मशिखां स्मरेत् ॥ १४॥ स्फुलिंगसन्तति ध्यायेत् ज्वालामालामनन्तरम् । ततो ज्वालाकलापेन वहत् पद्मं हृदि स्थितम् ॥१५॥ तदष्ट कर्मनिर्माणमष्ट पत्रमधोमुखम् । वहत्येव महामन्त्रध्यानोत्थः प्रबलानलः ॥१६॥ ततो देहाद् बहिर्ध्यायेत् व्यत्र ं वह्निपुरं ज्वलत् । लांछित स्वस्तिकेनान्ते, वह्निबीजसमन्वितम् ॥ १७॥ देहपद्मं च मन्त्रवित पुरं बहिः । कृत्वाऽऽशु भस्मसाच्छाम्येत्, स्यादाग्नेयीति धारणा ||१८|| अर्थ - तथा नाभि के अन्दर सोलह पंखुड़ी वाले कमल का चिन्तन करना । उसकी कर्णिका में महामन्त्र 'अहं' की स्थापना करना और उसकी प्रत्येक पंखुड़ी पर क्रमश: 'अ. आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, लृ, लृ, ए. ऐ, ओ, औ, अं, अः' इन सोलह स्वरों की स्थापना करनी चाहिए। उसके बाद रेफ, बिन्दु और कला से युक्त, महामन्त्र के हैं अक्षर है, उस रेफ में से धीरे-धीरे निकलने वाली धूम - शिखा का चिन्तन करना चाहिए, फिर उसमें से अग्नि की चिनगारियों के निकलने का चिन्तन करना। बाद में निकलती हुई अनेक अग्नि-ज्वालाओं चिन्तन करना । उसके बाद इन ज्वालाओं से हृदय में स्थित आठ पंखुड़ी- (बल) वाले कमल का चिन्तन करना, उसकी प्रत्येक पंखुड़ी पर अनुक्रम से १ - ज्ञानावरण, २- दर्शनावरण, ३ - वेदनोय, ४- मोहनीय, ५ – आयु, ६- नाम, ७- गोत्र और ६ - अन्तराय, इन आठ कर्मों की स्थापना करनी चाहिए। यह कमल अधोमुख होना चाहिए। 'अहं' महामन्त्र के ध्यान से उत्पन्न हुई महाप्रबन्धरूपी अग्नि अष्ट- कर्मरूपी अधोमुखी कमल को जला देती है, ऐसा चिन्तन करना। उसके बाद शरीर के बाहर त्रिकोण ( तिकोन) अग्निकुण्ड और स्वस्तिक के चिह्न युक्त अग्निबीज 'रकार' सहित चिन्तन करना । तत्पश्चात् शरीर के भीतर महामन्त्र के ध्यान से उत्पन्न हुई अग्निज्वाला और बाहर की अग्निकुण्ड को ज्वाला से देह और आठ कर्मों का चिन्तन कर कमल को तत्काल भस्म करके अपने आप अग्नि को शान्त कर देना चाहिए। यह आग्नेयो धारणा है । महामन्त्र सिद्धचक्र में स्थित बीजरूप 'अहं' जानना । अब दो श्लोकों से वायवी धारणा कहते हैं

Loading...

Page Navigation
1 ... 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635