Book Title: Yogshastra
Author(s): Padmavijay
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 595
________________ विविध विचाबों, मंत्रों द्वारा पदस्थध्यान विधि और फल ५७८ ॐ नमो विन्माहराणं, ॐ नमो चारणाणं, ॐ नमो पणासमणाणं, नमो माणासगामी, ॐ सों सों श्रीं ह्रीं धृति-कीति-खि-लक्ष्मी स्वाहा। इन पदों से पिछले बलय की पूर्ति करे। फिर पंच परमेष्ठी-महामन्त्र के पांच पड़ों का पांच अंगुलियों में स्थापन करने से सकलीकरण होता है। 'ॐ नमो अरिहंताणं हां स्वाहा' अंगूठे में, ॐ नमो सिसाणं ह्री' स्वाहा' तर्जनी में, 'ॐ नमो आरियाणंह स्वाहा' मध्यमा में, 'ॐ नमो उवमायाणं है स्वाहा अनामिका में, 'ॐ नमो लोए सब्बसारण हो स्वाहा' कनिष्ठा अंगुलि में स्थापना करके यंत्र के मध्य में बिन्दुसहित ॐकार की स्थापना करे। इस तरह तीन बार अंगुलियों में बिन्यास करके यन्त्र को मस्तक पर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तरदिशा के अन्तर-माग में स्थापित करके जाप-चिन्तन करे । तया अष्टपत्रेऽम्बुजे ध्यायेद्, आत्मानं दीप्ततेजसम् । प्रणवाद्यस्य मन्त्रस्य, वर्णान् पवेषु च क्रमात् ॥६६॥ पूर्वाशाभिमूखः पूर्वम्, अधिकृत्यादिमण्डलम् । एकादशशतान्यष्टाक्षरं, मन्त्र जपेत् ततः॥६७॥ पूर्वाशाऽक्रमाववम् स्यान्यदलान्यपि । अष्टरावं जपेद् योगी, सर्वप्रत्यूहशान्तये ॥६॥ अष्टरात्रे 'तिमा, कमलस्यास्य वतिषु । निरूपति पत्रेषु वर्णानेताननुक्रमम् ॥६९॥ भीषणाः सिंह-मातंगरक्षःप्रभृतयः क्षणात् । शाम्यन्ति व्यन्तराश्चान्ये, ध्यानप्रत्यूहहेतवः ॥७॥ मन्त्रः प्रणवपूर्वोऽयं, फलमहिकमिछुभिः । ध्येयः प्रणवहीनस्तु निर्वाणपदकांक्षिभिः ॥७१॥ अर्थ--आठ पंबड़ी वाले कमल में मिलमिल तेन से युक्त आत्मा का चिन्तन करना, और ॐ कारपूर्वक प्रथम मन्त्र के (ॐ नमो अरिहंताणं) इन आठ वर्णो को क्रमश: मागे पत्रों पर स्थापन करना। प्रथम पंखुड़ी को गणना पूर्वदिशा से आरंम करना; उसमें स्थापित करना, बाद में यथाक्रम से शेष सात अक्षर स्थापित करना। इस अष्टाक्षरी मन्त्र का कमल के पत्रों पर ग्यारह सौ जाप करना । इस अनुक्रम से शेष दिशा-विदिशाओं में स्थापना करके समस्त उपद्रव को शान्ति के लिए योगी को आठ दिन तक इस अष्टालरी विद्या का जाप करना चाहिए । जाप करते हुए आठ रात्रि व्यतीत हो जाने पर कमल के अन्दर पत्रों पर स्थित अष्टाक्षरी विद्या के इन आठों वर्गों के कमशः दर्शन होंगे। योगी जब इन वर्गों का साक्षात्कार कर लेता है तो उसमें ऐसा सामयं प्रकट हो जाता है कि ध्यान में उपाय करते वाले भयानक सिंह, हाथी रामस और भूत, व्यंतर, प्रेत मावि उसके प्रभाव से शान्त हो जाते हैं । इहलौकिक फल के अभिलाषियों को 'नमो अरिहंताण' इस मन्त्र का कार सहित ध्यान करना चाहिए, परन्तु निर्वाणपब के इच्छुक को प्रणव (ॐ)-रहित मन्त्र का ध्यान करना चाहिए। (ॐ नमो अरिहंताणं) प्रणवयुक्त मन्त्र है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635