Book Title: Yogshastra
Author(s): Padmavijay
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 594
________________ योगशास्त्र:अष्टम प्रकाश मरन का बन्धन खत्म हो जाता है और वह परमानन्द के कारणरूप अव्ययपद-मोक्ष को प्राप्त करता है। नासाने प्रणवः शून्यम् अनाहतमिति त्रयम् । ध्यायन गुणाष्टकं लब्ध्वा ज्ञानमाप्नोति निर्मलम् ॥६०॥ अर्थ-नासिका के अग्रभाग पर प्रणव 'ॐ' शुन्य '.' और अनाहत 'ह' इन तीन (ॐ.. और ह) का ध्यान करने वाला अणिमादि आठ सिद्धियों को प्राप्त करके निर्मलनान प्राप्त कर लेता है। शंख-कुन्द-शशांकाभान् त्रीनमून ध्यायतः सदा । समप्रविषयज्ञान-प्रागल्भ्यं जायते नृणाम् ॥११॥ अर्थ-शंख, कुन्द और चन्द्र के समान उज्वल प्रणव, शून्य और अनाहत इन तोनों का सदा ध्यान करने वाले पुरुष समस्त विषयों के ज्ञान में पारंगत हो जाता है । तपा द्विपार्वे प्रणवतन्वं प्रान्तयोर्माययावृतम् । 'सोऽहं' मध्ये विमूर्धानं अहंलो कारं' विचिन्तयेत् ॥६२॥ अर्थ-जिसके दोनों ओर दो-दो ॐकार है, आदि और अन्त में (किनारे पर) ह्रींकार है, मध्य में सोऽहं है, उस सोऽहं के मध्य में अहम्ली है। अर्थात् 'ही' ॐ ॐ सो मह म्ली है ॐ ॐ ह्रीं' इस रूप में इस मत्र का ध्यान करना चाहिए। कामधेनुमिवाचिन्त्य-फल-सम्पादन-समाम् । अनवद्यां जपेद्विधां गणमृद्-वदनोद्-गताम् ॥६३॥ अर्थ-कामधेनु के समान अचिन्त्य फल देने में समर्थ श्रीगणपर-भगवान के मुत से निर्गत निदोष विद्या का जाप करना चाहिए। वह विद्या इस प्रकार है-"ॐ जोग्गे मग्गे सच्चे भूए भब्वे भविस्से अन्ते परले जिणपासे स्वाहा।" षट्कोणेप्रतिचके फट् इति प्रत्येकमक्षरम् । सव्ये न्यसेत् 'विचक्राय स्वाहा' बाहोऽपसव्यतः ॥६॥ भूतान्तं बि. संयुक्त तन्मध्ये न्यस्य चिन्तयेत् । 'नमो निणाणं' इत्या : ' बष्टय बहिः ॥६५॥ अर्थ-पहले षट्कोण यंत्र का चिन्तन करे। उसके प्रत्येक खाने में अप्रतिवर्क फट' इन छह अक्षरों में से एक-एक अक्षर लिखे । इस यन्त्र के बाहर उलटे क्रम से 'विचकाय स्वाहा' इन छह अक्षरों में से एक-एक अक्षर कोनों के पास लिखना, बाद में 'ॐ नमो जिजाणं, ॐ नमो मोहिणिणाणं, ॐ नमो परमोहिजिणाणं, ॐ नमो सम्बोसहिजिणाण, ॐ नमो अनतोहिणिणाणं, ॐ नमो कोखीणं, नमो बीयबुद्धोणं, ॐ नमो पयाणुसारीणं, ॐ 'नमो संपिासोमाण, ॐ नमो उन्जुमई, ॐ नमो बिउलमईगं, ॐ नमो बसपुन्बीणं, ॐ नमो चबसवाणं, ॐ नमो अलैंगमहानिमित्त-कुसलाणं, ॐ नमो बिउबाढिपत्ता,

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