Book Title: Yogshastra
Author(s): Padmavijay
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 592
________________ योगशास्त्र षष्टम प्रकाश पंचवर्ण स्मरेन्मन्वं कर्मनिर्घातकं तथा । वर्णमालांचितं मन्त्रं ध्यायेत् सर्वाभयप्रदम् ॥४६॥ अर्थ-आठ कर्मों का नाश करने के लिए पांच अक्षरों वाले 'नमो सिसाणं' मन्त्र का तथा समस्त प्रकार का अभय प्राप्त करने के लिए वर्णमालाओं से युक्त 'ॐ नमो अहंते केवलिने परमयोगिने विस्फुरदुरू शुक्ल-ध्यानाग्निनिर्दग्धकर्मबोजाय प्राप्तानन्तचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मगलवरदाय अष्टादशदोषरहिताय स्वाहा" मन्त्र का ध्यान करना चाहिए। फल-सहित ही कार मन्त्र को दस श्लोक से कहते हैं ध्यायेत् सिताब्जं वक्त्रान्तरष्टवर्गों दलाष्टके । ॐ नमो अरिहंताणं इति वर्णानपि क्रमात् ॥४७॥ केसराली-स्वरमयों सुधाबिन्दु-विभूषिताम् । काणिकां कणिकायां च, चन्द्रादम्बात् समापतत् ॥४८॥ संचरमाणं वक्त्रेण, प्रभामण्डलमध्यगम् । सुधादीधिति-संकाशं, मायाबीजं विचिन्तयेत् ॥४९॥ ततो भ्रमन्तं पत्रेषु, संचरन्तं नभस्तले। ध्वंसयन्तं मनोध्वान्त, लवन्त च सुधारसम् ॥५०॥ तालुरन्प्रेण गच्छन्त लसन्त 5 लतान्तरे। लोक्याचिन्त्यमाहात्म्य, ज्योतिर्मयमिवाद्भुतम् ॥५१॥ इत्यं ध्यायतो मन्त्रं, पुण्यमेकापचेतसः । बाड मनोमलमुक्तस्य श्रुतज्ञान प्रकाशते ॥५२॥ मासः षभिः कृताभ्यासः स्थिरीभूतमनास्ततः । निःसरन्ती मुखाम्भोजात , शिखां धूमस्य पश्यति ॥५३॥ संवत्सरं कृताभ्यासः ततो ज्वाला विलोकते। ततः संजातसंवेगः सर्वजमुखपंकजम् ॥५४॥ स्फुरत्कल्याणमा त्म्यं सम्पन्नातिशयं ततः। भामण्डलगत साक्षादिव सर्वशमीक्षते ॥५५॥ ततः सिरातत्यानाः तत्र संजातनिश्चयः । मुक्त्वा संसारकान्तारम्, अध्यास्ते सिमन्दिरम् ॥५६॥ अर्थ-मुलके अवर जात पंचड़ियों वाले खेत-कमल का चिन्तन करे, और उन पंखुड़ियों में माठ वर्ग-(१) म, मा, उ, ऋ, ऋ.ल, ल, ए, ऐ, मो, मो, मे, मा

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