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योगशास्त्र : पंचम प्रकाश ___ अर्थ-उसी तरह १७ दिन तक एक ही नाड़ी में वायु चलता रहे तो ३४८ दिनों में दो बारह २४ कम ३४८-२४= ३२४ दिन में मृत्यु होतो है । तथा
पवने विचरत्यष्टादशाहानि तथैव च।
नाशोऽष्टाशीतिसंयुत्ता, गते दिनशतद्वये ॥१०॥ अथ-इसी प्रकार अठारह दिन तक पवन चलता रहे तो ३२४ दिनों में से तीन बारह ३६ कम ३२४-३६=२८८ दिन में मृत्यु होती है । तथा
विचरत्यनिले तहद दिनान्येकोनविंशतिम् ।
चत्वारिंशधते वाटे, मत्युदिनशतद्वये ॥१०६॥ अर्थ-पूर्ववत उन्नीस दिन वायु चलता रहे तो २८८ दिनों में से चार बारह=४८ कम २८८ - ४८- २४० दिन में उसकी मृत्यु होती है।
विशति-दिवसानेकनासाचारिणि मारुते ।
साशीतौ वासरशते, गते मृत्युन संशयः ॥१०७ । अर्थ-यदि बीस दिन तक एक ही नाड़ी में पवन चलता रहे तो २४० दिनों में से पांच बारह= ६० कम अर्थात् २४० - ६० : १८० दिन में निश्चित रूप से मृत्यु होती है ।
एक-द्वि-त्रि-चतुः-पंच-दिन-षटक-क्रमक्षयात् ।
एकविंशादिपंचाहान्यत्र शोघ्यानि तद् यथा ।१०८॥ अर्थ-इक्कीस से ले कर पच्चीम दिन तक एक सूर्यनाड़ी में ही पवन बहता रहे तो पूर्वोक्त १८० दिनों में से क्रमशः एक, दो, तीन, चार और पांच षट्क कम करते जाना चाहिए। इसका स्पष्टीकरण करते है
एकविंशत्यहं त्वर्कनाडीवाहिनि मारुते ।
चतुःसप्ततिसंयुक्त, मृत्युदिनशते भवेत् ॥१०९॥ अर्थ-पूर्वोक्त पोष्णकाल में यदि इक्कीस दिन तक सूर्यनाड़ी में पवन चलता रहे तो १८० दिनों में से एक षट्क कम यानी १८० - ६=१७४ दिन में उसकी मृत्यु होती है।
द्वाविंशतिदिनान्येवं, स द्विषष्ठावहःशते ।
षडदिनोनः पंचमासस्त्रयोविंशत्यहानुगे ॥११०॥ ___अर्थ-इसी प्रकार बाईस दिन तक पूर्ववत पवन चले तो १७४ दिनों में से दो षटक-१२ दिन कम यानी १६५ दिन तक जीवित रहेगा। और तेईस दिन तक उसी प्रकार पवन चले तो १६२ दिनों में से तीन षटक अर्थात अठारह दिन कम करने से छह दिन कम पांच महीने में अर्थात् १६२-१८- १४४ दिनों में मृत्यु होती है। तथा
तथव वायौ वहति, चतुतिवासीम् । विशत्यभ्यधिके मृत्युभवेद् दिनशते गते ॥१११॥