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योगशास्त्र:पंचम प्रकाश
को पटपटा रहा हो या शरीर को मोड़ कर हिला रहा हो तो रोगी को मृत्यु होगी। यदि कुत्ता मुंह फाड़ कर लार टपकाता हुआ आँख बन्द कर और शरीर को सिकोड़ कर सोता हआ दिखाई दे तो रोगी को निश्चित ही मृत्यु होगी।' बब दो श्लोकों के द्वारा कौए का शकुन कहते हैं
यद्यातुरगृहस्योवं, काकपक्षिगणो मिलन् । त्रिसन्ध्यं दृश्यते नूनं, तदा मृत्युरुपस्थितः ॥१८६॥ महानसेऽथवा शय्यागारे काका. क्षिपन्ति चेत् ।
चर्मास्थिरज्जु केशान् वा, तदाऽऽसन्नैव पंचता ।१८७।। अर्थ- यदि रोगी मनुष्य के घर पर प्रभात, मध्याह्न और शाम के समय अर्थात् तीनों सध्याओं के समय में कौओं का झुंड मिल कर कोलाहल करे तो समझ लेना कि मृत्यु निकट है । तथा रोगी के भोजनगृह या शयनगृह पर कौए चमड़ा, हड्डी, रस्सी या केश अल दें तो समझना चाहिए कि रोगी को मृत्यु समीप ही है।' अब नौ श्लोकों द्वारा उपश्रुति से काल-निर्णय बताते है
अथवोपश्रु तेविद्याद् विद्वान कालस्य निर्णयम् । प्रशस्ते दिवसे स्वप्नकाले शस्तां दिश श्रितः ॥१८॥ पूत्वा पंच नमस्कृत्याऽचार्यमंत्रेण वा श्रुती । गेहाच्छन्न तिर्गच्छेत् शिल्पिचत्वरभूमिषु ॥१८९॥ चन्दनेनार्चयित्वा मां, क्षिप्त्वा गन्धाक्षतादि च । सावधानस्ततस्तत्रोपच तेः, शृणाद् ध्वनिम् ।१९०॥ अर्थान्तरापदेश्यश्च, सरूपश्चेति स विधा। विमर्शगम्यस्तत्राद्यः स्फुटोक्तार्थोऽपरः पुन. ॥१९॥ यथेष भवनस्तम्भ, पंच-पडभिरेव दिनः । पक्षर्मासरथो वर्षभङ क्ष्यते यदि वा न वा ॥१९२। मनोहरतरश्चासीत , किं त्वयं लघु भङ क्ष्यते । अर्थान्तरापदेश्या स्याद्, एवमादिरूपत्र तिः ॥ ९३॥ एषा स्त्रीः पुरुषो वाऽसौ, स्थानावस्मान्न यास्यति । दास्यामो न वयं गन्तुं, गन्तुकामो न चाप्ययम् ॥१९४॥ विद्यते गा कामाऽयम् अहं च प्रेषणोत्सुकः । तेन यस्यात्यसो शीघ्र, स्यात् सरूपेत्युपतिः ॥१९॥