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कार्यसिद्धि-सिद्धि-विषयक प्रश्नों के उत्तर पवन चलता हो, उसी ओर स्त्रियों को बिठाने पर वे वश में होती हैं। इसके अतिरिक्त मौर कोई कामण-जादू-टोना नहीं है।
अरि-चौराधमांद्याः, अन्येऽप्युत्पात-विग्रहाः।
कर्तव्याः खलु रिक्तांगे, जय-लाभ-सुखाथिभिः ॥२४॥ अर्थ-जो विजय, लाभ और सुबके अभिलाषी हैं। उन्हें चाहिए कि वे शत्र, चोर कर्जदार तथा अन्य उपद्रव, विग्रह आदि से दुःख पहुंचाने वालों को अपने रिक्तांग की ओर अर्थात् जिस ओर की नासिका से पवन न चले, उसी तरफ बिठाएं। ऐसा करने से वे दुःख नहीं दे सकते । तथा
प्रतिपक्ष-प्रहारेभ्यः, पूर्णागे योऽभिरक्षति ।।
न तस्य रिपुभिः शक्तिः, बलिष्ठरपि हन्यते ॥२४४॥ अर्थ- रात्र ओं के प्रहारों से जो अपने पूर्णाग से (पूरक वायु वाले अंग) रक्षा करता है, उसकी शक्ति का विनाश करने में बलवान शत्र भी समर्थ नहीं हो सकता है । तथा
वहन्ती नासिका वामां, दक्षिणां वाऽभिसंस्थितः। पृच्छेद् यदि तदा पुत्रो, रिक्तायां तु सुता भवेत् ॥३४॥ सुषुम्णा-वायु भागे द्वौ, शिशु, रिक्त नपुंसकम् ।
संक्रान्तौ गर्भहानिः स्यात्, समे ममसंशयन् ॥३४६॥ अर्थ-उत्तरदाता की बाई या वाहिनी नासिका चल रही हो, उस समय सम्मुख खड़ा हो कर गर्भ-सम्बन्धी :श्न करे तो पुत्र होगा, और वह रिक्त नासिका की ओर खड़ा हो कर प्रश्न करे तो पुत्री का जन्म होगा, ऐसा कहना चाहिए । यदि प्रश्न करते समय सुषुम्णानाड़ो में पवन चलता हो तो दो बालकों का जन्म होगा, शून्य आकाशमंडल में पवन चले, तब प्रश्न करे तो नपुंसक का जन्म होगा। दूसरी नाड़ी में संक्रमण करते समय प्रश्न करे तो गर्भ का नाश होता है और सम्पूर्ण तत्व का उदय होने पर प्रश्न करे तो निःसंदेह मेमकुशल होता है। गर्भज्ञान के विषय में मतान्तर कहते हैं
चन्द्र स्त्रीः, पुरुषः सूर्ये, मध्यभागे नपुंसकम् ।
प्रश्नकाले तु विज्ञ समिति कश्चित् निगद्यते ॥२४७॥ अर्थ-कई आचार्यों का कहना है कि चन्द्रस्वर चले तब सन्मुख रह कर प्रश्न करे तो पुत्री, सूर्यस्वर में पुत्र और सुषुम्णानाड़ी में नपुंसक का जन्म होता है। वायु के निश्चय का उपाय बताते हैं
यदा न ज्ञायते सम्यक, पवनः संचरन्नपि ।
पीतश्वेतारुणश्यामनिश्चेतव्यः स बिन्दुभिः ॥२४॥ अर्थ-यदि एक मण्डल से दूसरे मण्डल में माता हुमा पुरन्दरादि पवन जब मलो