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योगशास्त्र :पंचम प्रकाश
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अर्थ-जिसको अपने आयुष्य का निर्णय करना हो, उसे अपना नाम ॐकार सहित षट्कोण-यन्त्र के मध्य में लिखना चाहिए। यंत्र के चारों कोणों में मानो अग्नि की सैकड़ों ज्वालाओं से युक्त 'रकार' को स्थापना करना चाहिए। उसके बाद अनुसार पहित अकार आदि 'अं, आ, इ, ई, उ ,' छह स्व रों से कोणों के बाह्य भागों को घेर लेना चाहिए। फिर छहों कोणों के
बाहरी भाग में छह स्वस्तिक स्वा स्वा
लिखना चाहिए। बाद में स्वस्तिक और स्वरों के बीच-बीच में छह
स्वा' अक्षर लिखे। फिर चारों अ.र विसर्ग सहित यकार' की स्थापना करना और उस यकार के चारों तरफ वायु के पूर से आवृत संलग्न चार रेखाएं खींचना । इस प्रकार का यन्त्र बना कर पैर, हृदय, मस्तक और सन्धियों में स्थापित करना। उसके बाद सर्योदय के समय सूर्य को ओर पीठ करके और पश्चिम में मुख करके बैठना और अपनी अथवा दूसरे की आयु का निर्णय करने के लिए अपनी छाया का अवलोकन करना चाहिए । यदि पूर्ण छाया दिखाई दे तो एक वर्ष तक मृत्यु नहीं होगी, यदि कान दिखाई न दे तो बारह वर्ष में मृत्य होगी, हाथ न दीखे तो दस वर्ष में, अगुलियां न बोले तो आठ वर्ष में, कान दीखे तो सात वर्ष में, केश न दोखे तो पांच वर्ष में, पार्श्वभाग न दीखे तो तीन वर्ष में, नाक न दीखे तो एक वर्ष में, स्तक या ठुड्डी न दोखे तो छह महीने में, गर्दन न दीखे तो एक महीने में, नेत्र न दीखे तो ग्यारह दिन में और हृदय में छिद्र दिखाई दे तो सात दिन में मत्यु होगी। और यदि दो छायाएं दिखाई दे तो समझ लेना कि मृत्यु अब निकट ही है। यंत्रप्रयोग का उपहार करके विद्या मे कालजान करने की विधि बताते हैं
इति यन्त्र-प्रयोगेण, जानीयात् कालनिर्णयम् ।
यदि वा विद्यया विद्याद, वक्ष्यमाणप्रकारया ॥२१६॥ अर्थ-इस प्रकार यन्त्र प्रयोग से आयुष्य का निर्णय करना चाहिए या अथवा आगे कही जाने वाली विद्या से काल जानना चाहिए। सात पलोकों द्वारा अब उस विद्या को कहते हैं -
प्रथमं न्यस्य चूडायां, 'स्वा' शब्दम् 'ओं च मस्तके । 'क्षि' ने हृदये '
पंच, नाभ्यम्जे हाऽक्षरं ततः । २१७॥