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योगशास्त्र : पंचम प्रकाश
दृष्टं श्लिष्टं प्रहैतुष्टः सौम्यरप्रेक्षितायुतम् ।
सज्जस्यापि तदा मृत्युः का कथा रोगिणः पुनः॥२०॥ अर्थ-शनैश्चरपुरुष के समान आकृति बना कर फिर निमित्त देखते समय जिस मक्षत्र में शनि हो, उसके मुख में बह नक्षत्र स्थापित करना चाहिए। उसके बाद क्रमशः आने वाले चार नक्षत्र दाहिने हाथ में स्थापित करना, तीन-तीन दोनों पैरों में चार बाएं हाथ में, पांच वक्षस्थल में, तीन मस्तक में, दो-दो नेत्रों में और एक गुह्मस्थान में स्थापित करना चाहिए। बाद में निमित्त देखने के समय में स्थापित किये हुए क्रम से जन्मनक्षत्र अथवा नाम-नक्षत्र यदि गुह्यस्थान में आया हो और उस पर दुप्टग्रह की दृष्टि पड़ती हो अथवा उसके साथ मिलाप हो तथा सौम्य ग्रह की दृष्टि या मिलाप न होता हो तो निरोगी होने पर भी वह मनुष्य मर जाता है ; रोगी पुरुष की तो बात हो क्या अब लग्न के अनुसार कालशान बताते हैं
पच्छायामय लग्नास्ते, चतुर्थदशमस्थिताः।
प्रहाः क्रूराः शशी षलाष्टाचत् स्यात् तदा मृतिः ॥२०१॥ अर्थ-आयुष्य-विषयक प्रश्न पूछने के समय जो लग्न चल रहा हो, वह उसी समय मस्त हो जाए और कर ग्रह चौथे, सातवें या दसवें में रहे और चन्द्रमा छठा या आठवां हो तो उस पुरुष की मृत्यु हो जाती है । तथा
पच्छायाः समये लग्नाधिपतिर्भवति ग्रहः ।
यदि चास्तमितो मृत्युः, सज्जस्यापि तदा भवेत् । २०२॥ अर्थ-आयु-सम्बन्धी प्रश्न पूछते समय यदि लग्नाधिपति मेषादि राशि में गुरु, मंगल और शुक्रादि हो अथवा चालू लग्न का अधिपति ग्रह अस्त हो गया हो तो नोरोग मनुष्य को भी मृत्यु हो जाती है । तथा
लग्नस्थश्चेच्छशी सौरिः, द्वादशो नवमः कुजः ।
अष्टमोऽकंस्तदा मृत्युः स्यात् चेत् न बलवान् गुरुः ।२०३॥ अर्थ-यदि प्रश्न करते समय लग्न में चन्द्रमा स्थित हो, बारहवें में शनि हो नौवें में मंगल हो, आठवें में सूर्य हो और गुरु बलवान न हो तो उसको मृत्यु होती है । तथा
रविः षष्ठस्तृतीयो वा, शशी च दशमस्थितः। यदा भवति मत्युः स्यात, तृतीये दिवसे तदा ॥२०४॥ पापप्रादयात. तुर्ये वा द्वादशेऽथवा ।
दिशन्ति तद्विदो मृत्यु, तृतीये दिवसे तवा ॥२०॥ अर्थ-उसी तरह प्रश्न करने पर सूर्य तीसरे या छठे में हो, और चन्द्रमा बसवें में हो तो समझना चाहिए; उसकी तीसरे दिन मृत्यु होगी। यदि पापग्रह लग्न के उदय से चौथे या